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ग्रसनी और ग्रासनली के कार्य? ( Grasanee aur Graasanalee ke kaary )

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ग्रसनी और ग्रासनली के कार्य ( functions of pharynx and esophagus ) 

निगलन क्रिया ( Swallowing or Deglutition )

ग्रसनी और ग्रासनली भोजन का निगलन मुखगुहिका , ग्रसनी तथा ग्रासनली का संयुक्त कार्य होता है । इसमें भोजन के निवाले को मुखगुहा से आमाशय तक पहुँचाने की क्रिया होती है । 

मुखगुहा से आमाशय तक पहुँचाने की क्रिया निम्नलिखित दो चरणों में पूरी होती है ;

( 1 ). ऐच्छिक , मुखगुहीय चरण ( Voluntary , Oral phase ) 

इस चरण में जीभ पहले चबे हुए भोजन की लसदार लुगदी को एकत्रित करके इसका निवाला ( bolus ) बनाती है और फिर ऊपर उठकर ऊपरी तालु पर पीछे की ओर दबाव डालती है जिससे निवाला ग्रसनी के मुखग्रसनी ( oropharynx ) भाग में पहुँच जाता है । 

( 2 ). अनैच्छिक , ग्रसनीय चरण ( Involuntary , Pharyngeal phase ) 

ज्यों ही निवाला ग्रसनी में पहुँचता है , निगलन की शेष प्रक्रिया अनैच्छिक और प्रतिवर्ती ( reflex ) हो जाती है । निवाले के सम्पर्क में आते ही मुखग्रसनी की दीवार में उपस्थित संवेदांग ( receptors ) संवेदित हो जाते हैं । यह संवेदना मस्तिष्क के मेड्यूला में स्थित निगलन केन्द्र ( swallowing centre ) में पहुँचती है । इस केन्द्र से निर्गमित ( issued ) चालक संवेदना ( motor impulse ) के कारण , कोमल तालु तथा अलिजिह्वा ऊपर उठकर नासाग्रसनी ( nasopharynx ) को मुखग्रसनी ( oropharynx ) भाग से अलग कर देते हैं ।

इसी के साथ – साथ स्वरकोष्ठक या कण्ठ ( larynx ) भी आगे तथा ऊपर की ओर उठता है जिससे एपिग्लॉटिस या घाँटीढापन ( epiglottis ) पीछे तथा नीचे की ओर खिसककर कण्ठद्वार पर ढक जाता है । इस प्रकार , वायुमार्ग बन्द हो जाता है , लेकिन कण्ठग्रसनी ( laryngopharynx ) भाग तथा ग्रासनली के बीच स्थित ऊपरी या उच्च ग्रासनालीय संकोचक पेशी ( upper oesophageal sphincter muscle ) के शिथिलन से निगलद्वार चौड़ा फैलकर निवाले को ग्रासनली में जाने का मार्ग दे देता है । निवाले के ग्रासनली में जाते ही श्वसन मार्ग खुल जाता है और श्वसन पुनः प्रारम्भ हो जाता है । 

क्रमाकुंचन ( Peristalsis )

अनछिक निगलन की ग्रासनालीय प्रावस्था में भोजन का निवाला कण्ठग्रसनी से ग्रासनली द्वारा आमाशय में पहुँचता है । ज्याही निवाला ग्रासनली की दीवार के सम्पर्क में आता है , दीवार में एक ऐसी गति उत्पन्न हो जाती है जिससे निवाला ग्रासनली में तेजी से नीचे खिसकता हुआ 4 से 8 सेकण्ड में ही आमाशय में पहुँच जाता है । दीवार की इस गति को क्रमाकुंचन यानी तरंगगति ( peristalsis ) कहते हैं , क्योंकि इसमें दीवार की वर्तुल तथा अनुलम्ब पेशियों के एकान्तरित संकुचन एवं शिथिलन से दीवार के छोटे – छोटे खण्ड ऊपर से नीचे की ओर , एक लहर की भाँति क्रमवार फूलते और पिचकते हैं ।

ग्रसनी और ग्रासनली
ग्रासनली में क्रमाकुंचन का रेखाचित्र

स्पष्ट है कि, यह क्रमाकुंचन भी स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के नियन्त्रण में एक प्रतिवर्ती प्रतिक्रिया ( reflex reaction ) के रूप में होता है । इसका नियन्त्रण केन्द्र भी मस्तिष्क की मेड्यूला में ही होता है । ग्रासनली का यह क्रमाकुंचन ऊपरी ग्रासनालीय संकोचक पेशी ( upper oesophageal sphincter muscle ) के शिथिलन से शुरू होकर निचली यानी निम्न ग्रासनलीय संकोचक पेशी ( lower oesophageal or cardiac or gastro – oesophageal sphincter muscle ) के शिथिलन पर समाप्त होता है ।

जल तथा दूसरे तरल पेय तो 1 या 2 सेकण्डों में ही ग्रसनी से ग्रासनली में होते हुए आमाशय में पहुँच जाते हैं । ग्रासनली की दीवार में उपस्थित श्लेष्म ग्रन्थियाँ श्लेष्म का स्रावण करती हैं जिसमें कोई पाचक एन्जाइम नहीं होता है । श्लेष्म भोजन को चिकना बनाने के अलावा ग्रासनली की श्लेष्मिका को भोजन कणों के घर्षण ( abrasion ) और इसके ऊपर महीन स्तर के रूप में फैलकर इसे लार के पाचक एन्जाइमों के नुकसान से बचाता है ।  

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — ग्रसनी और ग्रासनली के कार्य? , क्रमाकुंचन आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद् ]

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