You are currently viewing उत्तर वैदिक काल की राजनीतिक स्थिति? | Raajaneetik sthiti

उत्तर वैदिक काल की राजनीतिक स्थिति? | Raajaneetik sthiti

उत्तर वैदिक काल की राजनीतिक स्थिति (Political condition of later Vedic period)

इस विषय में उत्तर वैदिक काल में राजनीतिक व्यवस्था के बारे जानकारी दी गई है । उम्मीद करता हूं कि यह लेख आपको जरूर पसन्द आयेगा और इस लेख को पढ़कर आप समझ पायेंगे। तो चलिए जानते है इस काल के राजनीतिक स्तिथि के बारे में —

राजनीतिक व्यवस्था में राजा का पद वंशानुगत (hereditary) होने लगा था । राजा ना केवल जन का प्रमुख था बल्कि वह एक निश्चित प्रदेश का स्वामी था। उत्तर वैदिक काल में हमें अनेक शक्तिशाली राज्यों का उल्लेख मिलता है । उदाहरण — काशी, कुरु, पांचाल, मगध, कलिंग, अवंती, विदर्भ इत्यादि इस युग में साम्राज्यवाद (imperialism) का विकास हुआ। ऋग्वैदिक कालीन कबीलों ने जनपद रूप ग्रहण किया था । सभा और समिति जैसी संस्थाओं का नियन्त्रण कम हो रहा था और ‘ राजा ‘ या ‘ राजन ‘ अधिक शक्ति सम्पन्न होने लगे थे ।

उत्तरवैदिक काल में बहुत से दार्शनिक राजा (philosopher king) भी सतारूढ़ हुए , जिनमें से प्रमुख राजा थे — विदेह के जनक , कैकेय के अश्वपति , काशी के अजातशत्रु और पांचाल के प्रवाहण, जाबालि आदि। इस काल में राजा मन्त्रियों और अधिकारियों की सहायता से शासन करता था । अधिकारी वर्ग को रत्निन (Ratnin) कहा जाता था । न्याय व्यवस्था में राजा का निर्णय महत्त्वपूर्ण हुआ करता था । सामान्य मुकदमे को घरेलू स्तर पर ही निपटाए जाते थे ।

इस काल में संग्रहित , भागदुध , सूत गोवितकर्तन जैसे अधिकारियों का अस्तित्व सामने आया , और प्रान्तीय शासन (provincial government) तथा पुलिस व्यवस्था भी सामने आई । राष्ट्र शब्द का प्रयोग सबसे पहले इसी समय यानी कि उत्तर वैदिक काल में ही हुआ था ।

Read Other—