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सजीव और निर्जीव में क्या अंतर है? ( Sajeev aur Nirjeev me kya antar hai )

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इस लेख में सजीव और निर्जीव विषय से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी जैसे कि – सजीव और निर्जीव में क्या अंतर है? ( Sajeev aur Nirjeev me kya antar hai ) एवं विशेषताएँ आदि । तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “

सजीव और निर्जीव में क्या अंतर है? ( What is the difference between living and non-living )  

सभी सजीव और निर्जीव वस्तुएँ पदार्थ की बनी होती हैं । जिसे हम ” जीवन “ को देख या छू नहीं सकते हैं , लेकिन फिर भी हम सरलता से हम जीवधारियों को निर्जीव वस्तुओं से अलग पहचान कर सकते हैं । इसका मुख्य कारण यह है , कि जीवधारियों में पदार्थ का संघठन ऐसा होता है जिससे कि ” जैव ऊर्जा “ बनती है । इसी ऊर्जा के द्वारा जीवधारी कई प्रकार की जैविक क्रियाएँ करते हैं । जिसके कारण हम इन्हें आसानी से पहचान कर लेते हैं । 

सजीव और निर्जीव में अन्तर ( Difference between living and non-living )

सजीव और निर्जीव में अंतर निम्नलिखित तालिका में दी गई है ;

1. सजीवों को भोजन की आवश्यकता होती है । निर्जीवों को भोजन की आवश्यकता नहीं होती हैं ।
2. सजीवों में जनन का गुण होता है । निर्जीवों में जनन का गुण नहीं होता हैं ।
3. सजीव वृद्धि करते हैं । निर्जीवों में वृद्धि नहीं होती हैं ।
4. सजीव श्वसन कस्ते हैं । निर्जीव श्वसन नहीं करते हैं ।
5. सजीव कोशिकाओं के बने होते हैं । निर्जीव अणुओं से बने होते हैं।
6. सजीव स्वयं गति करते हैं । निर्जीव स्वयं गति नहीं करते हैं ।
7. सजीव उत्सर्जन करते है । निर्जीव उत्सर्जन नहीं करते हैं ।
8. सजीवों की मृत्यु होती है । निर्जीव की मृत्यु नहीं होती है ।

संगठनात्मक एवं क्रियात्मक विशेषताएँ ( Organizational and functional features )

जीवधारियों की संघठनात्मक एवं क्रियात्मक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं ;

( 1 ). आकृति एवं माप ( Shape and Size ) 

जीवों में , अपनी – अपनी जाति के अनुसार विभिन्न प्रकार की निश्चित आकृति एवं माप होते हैं । इसीलिए इन्हें अलग – अलग पहचान कर लेते हैं । 

निर्जीव वस्तुएँ आकृति एवं माप में अलग – अलग होते हैं । जैसे कि , जल की बूंद से लेकर विशाल महासागर तक या रेत के कण से लेकर विशाल पर्वत तक । 

( 2 ). रासायनिक संघठन ( Chemical Organization ) 

सजीव और निर्जीव वस्तुओं के बीच पदार्थ के रासायनिक संघठन में बहुत ही अंतर होता है । ” जीव पदार्थ ” मुख्यतः बड़े – बड़े कार्बनिक अणुओं का बना एक जटिल रासायनिक संघठन होता है ।

निर्जीव वस्तुओं का पदार्थ सरल और छोटे अकार्बनिक अणुओं का असंघठित मिश्रण केवल होता है । 

( 3 ). कोशिकीय संघठन ( Cellular Organization ) 

जीवों के शरीर में जीव पदार्थ एक या अनेक सूक्ष्म एवं कलायुक्त युक्त इकाइयों के रूप में होता है जिन्हें कोशिकाएँ ( cells ) कहते हैं । प्रत्येक कोशिका जीवन की एक स्वायत्त इकाई होती है । अनेक कोशिकाएँ एककोशिकीय जीवों के रूप में स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करती हैं , लेकिन बहुकोशिकीय जीवों में ये शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाइयों का काम करती हैं । 

निर्जीव वस्तुओं में पदार्थ का ऐसा संरचनात्मक संघठन नहीं होता है । 

( 4 ). उपापचय या मेटाबोलिज्म ( Metabolism ) 

शरीर की कोशिकाओं में अनेक रासायनिक एवं भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा , ग्रहण किए गए पदार्थों का निरन्तर रूपान्तरण होता रहता है । इसी प्रक्रिया का सामूहिक नाम उपापचय है ।

  • इसके एक पहलू – उपचय यानी ऐनबोलिज्म : इसमें वृद्धि एवं मरम्मत के लिए भोजन से प्राप्त पोषक पदार्थों से जीव पदार्थ के जटिल घटकों का संश्लेषण होता है ।
  • दूसरे पहलू अपचय यानी कैटैबोलिज्म : इसमें विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए जरूरी ऊर्जा के उत्पादन के लिए पोषक पदार्थों का दहन या जारण या अपघटन होता है । 

( 5 ). गमन एवं गति ( Locomotion and Moverment ) 

हमारे पूरे शरीर द्वारा स्थान – परिवर्तन को गमन तथा शरीर के अंग – प्रत्यंगों के हिलने – डुलने की क्रिया को गति कहते हैं । जड़ों द्वारा भूमि में धसे रहने के कारण , पेड़ – पौधों में गमन नहीं होता , लेकिन कुछ पेड़ पौधों में विशेष भागों की गति होती है । 

निर्जीवों में गमन एवं गति नहीं होती है ।

( 6 ). पोषण ( Nutrition ) 

जीवों द्वारा वृद्धि , मरम्मत एवं ऊर्जा – उत्पादन के लिए अपने वातावरण से आवश्यक पदार्थों को ग्रहण करते रहने कि क्रिया को पोषण कहते हैं । 

पोषण के लिए हरी वनस्पतियाँ वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड और मिट्टी से जल एवं लवण ग्रहण करके , सूर्य – प्रकाश की ऊर्जा की सहायता से , पोषक पदार्थों का संश्लेषण करती हैं । 

जन्तु इन्हीं पोषक पदार्थों को भोजन के रूप में ग्रहण करके , रासायनिक एवं भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा , इन पदार्थों को इतना बदल देते हैं कि इन्हें शरीर के भूतद्रव्य में खपाया जा सके । इसलिए जन्तुओं की पोषण क्रिया में ;

  1. ग्रहण ( food – ingestion ) , 
  2. पाचन ( digestion ) ,
  3. पचे पदार्थों का अवशोषण ( absorption ) ,
  4. स्वांगीकरण ( assimilation ) तथा 
  5. अपाच्य पदार्थों का निष्कासन यानी मलत्याग ( egestion ) , आदि क्रियाएँ होती हैं । 

निर्जीव वस्तुओं में ये सब क्रियाएँ नहीं होती । 

( 7 ). वृद्धि ( Growth ) 

सभी जीवधारीयों में एक निश्चित समय तक बृद्धि होती है ।

अन्तराधान वृद्धि ( Growth by intussusception ) : सभी जीवधारी पोषक पदार्थों को अपने भूतद्रव्य में खपाकर भूतद्रव्य की मात्रा बढ़ाते हैं । इससे शरीर की वृद्धि होती है । ऐसी वृद्धि को अन्तराधान वृद्धि कहते हैं । इसमें शरीर के माप में बढ़ोत्तरी के साथ – साथ इसकी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक जटिलता भी बढ़ती है । 

अभिवृद्धि ( Growth by laceretion ) : निर्जीव वस्तुओं का माप भी बढ़ सकता है , लेकिन दूसरे प्रकार की विधि से उदाहरण – नमक के संतृप्त घोल में नमक की डली डाल दें तो यह कुछ समय बाद बड़ी हो जाएगी , क्योंकि घोल का कुछ नमक धीरे – धीरे इसके ऊपर एकत्रित हो जाता है । ऐसी वृद्धि को अभिवृद्धि कहते हैं । 

( 8 ). श्वसन ( Respiration ) 

जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा का उत्पादन सभी जीवधारी , उपापचय के अन्तर्गत पोषक पदार्थों विशेषतः शर्कराओं का किण्वन द्वारा अपघटन करके या वायुमण्डल की ऑक्सीजन ( O2 ) द्वारा इनका ऑक्सीकर वहन या जारण करके करते हैं । इस जैविक क्रिया को श्वसन कहते हैं । 

अनॉक्सी या अवायवीय श्वसन : किण्वन द्वारा ऊर्जा – उत्पादन में ऑक्सीजन ( O ) की आवश्यकता नहीं होती है । इसलिए इसे अनॉक्सी या अवायवीय ( anaerobic ) श्वसन कहते हैं । 

ऑक्सी या वायवीय श्वसन : ऑक्सीकर दहन द्वारा ऊर्जा – उत्पादन को ऑक्सी या वायवीय श्वसन कहते हैं । 

( 9 ). उत्सर्जन ( Excretion ) 

शरीर की कोशिकाओं में उपापचय के अन्तर्गत पदार्थों के निरन्तर जारण तथा अन्य रूपान्तरण के फलस्वरूप जल , कार्बन डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजनीय बेकार पदार्थ बनते रहते हैं । ये पदार्थ शरीर के लिए अनावश्यक और हानिकारक होते हैं । इन्हें शरीर से बाहर निकालने की जैविक क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं । 

( 10 ). प्रतिक्रियाशीलता , अनुकूलन एवं समस्थापन या समस्थैतिकता ( Responsiveness , Adaptability and Homeostasis )  

क्योंकि प्रत्येक जीव को अपने वातावरण से निरन्तर पदार्थों का आदान – प्रदान करना होता है । इनमें ( जीवों में ) वातावरण में होने वाले भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तनों से प्रभावित होकर इन्हीं के अनुसार , अपनी क्रियाओं में परिवर्तन करके अपने संरचनात्मक संघठन एवं क्रियात्मक सन्तुलन को बनाए रखने की विलक्षण क्षमता होती है । वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को उद्दीपन ( stimuli ) कहते हैं । ये शरीर से बाहर के वातावरण में भी होते हैं जैसे कि , प्रकाश , ध्वनि , स्पर्श , ताप , दबाव , गुरुत्वाकर्षण , विद्युतीय , रासायनिक , आदि । और स्वयं शरीर के भीतर भी जैसे कि , भूख , प्यास , पीड़ा , आदि । इनके अनुसार जैव – क्रियाओं में होने वाले परिवर्तनों को अनुक्रियाएँ या प्रतिक्रियाएँ कहते हैं । जीवों की यह क्षमता उत्तेजनशीलता या प्रतिक्रियाशीलता कहलाती है । 

प्रतिक्रियाशीलता द्वारा अपनी सामान्य या नियमित दशा बनाए रखने को समस्थापन या समस्थैतिकता यानी होमियोस्टैसिस कहते हैं । 

वातावरण में स्थाई परिवर्तन होने पर जीवधारी इनके अनुसार , अपनी रचना एवं स्वभाव भी बदल सकते हैं , इसे अनुकूलन कहते हैं । 

( 11 ). प्रजनन ( Reproduction )

जीव स्वयं अपने शरीर और ” जीवन ” को बनाए रखने के लिए सभी जैविक क्रियाएं करते हैं । इसके अलावा जीवों में अपने जीन से अपनी ही जैसे सन्तान उत्पन्न करने ( प्रजनन ) का भी गुण होता है । इसी से  हर एक जीव – जाति का पीढ़ी दर पीढ़ी वंश चलता रहता है । 

( 12 ). जीवन – चक्र एवं मृत्यु ( Life – cycle and Death )

प्रत्येक पीढ़ी के सदस्य अगली पीढ़ी के सदस्यों की उत्पत्ति करके स्वयं क्षीण – शरीर एवं वृद्ध हो जाते हैं और अन्त में मृत होकर नष्ट हो जाते हैं । पीढ़ी – दर – पीढ़ी यही चक्र चलता रहता है । इसे ही जीवन – चक्र कहते हैं । 

( 13 ). जैव उद्विकास ( Organic Evolution ) 

सभी जीवों में परस्पर कुछ विभिन्नताएँ जरूर होती हैं । जैसी कि , हम सगे भाई – बहनों में भी देख सकते हैं । हजारों – लाखों वर्षों में , इन विभिन्नताओं के बढ़ते रहने के कारण , पुरातन जीव – जातियों से नई – नई जीव – जातियों का उद्विकास होता है । 

अतः जीव अपनी जाति का उत्पादक ही नहीं बल्कि अधिक विकसित , नई – नई जातियों का सृष्टा ( creator ) भी होता है । 

उद्दीपन ( Stimulus ) : जीव में अनुक्रिया आवाहन या उत्पन्न करने के लिए वातावरण में पर्याप्त तीव्रता का परिवर्तन ही उद्दीपन कहलाता है । 

( A change in environment of sufficient intensity to evoke a response in an organism is called stimulus )

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — सजीव और निर्जीव में क्या अंतर है? ( Sajeev aur Nirjeev me kya antar hai ) एवं विशेषताएँ आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद्…]

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