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सौरमंडल क्या है? (What is the solar system)
सौरमंडल सूर्य और उसका परिवार मिलकर सौरमण्डल का निर्माण करते हैं। जैसे कि ग्रह, उपग्रह, क्षुद्र ग्रह, उल्का पिंड आदि।
सूर्य (Sun)
यह एक तारा है और पृथ्वी के सबसे नजदीक का तारा है। यह सौरमंडल के केन्द्र में स्थित है। इसके खिंचाव बल के कारण सौरमंडल के खगोलीय पिण्ड सुव्यवस्थित अवस्था में होते हैं। इसके धरातल (प्रकाश मण्डल) का तापमान 6000°C है। और इसके केन्द्र का तापमान 15000°C है। इसका वायुमण्डल, जिसे वर्णमण्डल (क्रोमोस्फेयर) कहते हैं, लाल रंग का है। इसमें कुछ धब्बे पाये जाते हैं, जिन्हें सूर्य कलंक कहते हैं, जिनका तापमान 4500°C होता है यानि कि प्रकाश मंडल से 1500°C कम।
सूर्य ग्रहण के दौरान, सूर्य का जो भाग दिखाई देता है उसे सूर्य किरीट/कोरोना कहते हैं। इससे X-किरणें निकलती हैं। सूर्य पृथ्वी से लगभग 15 करोड़ किमी. दूर है। पृथ्वी पर सूर्य की किरणों को पहुँचने में 8 मिनट 19 सेकेण्ड लगते हैं। यह पूर्व से पश्चिम की तरफ घूर्णन करता है। यह मुख्य रूप से हाइड्रोजन (71%) और हीलियम (26.5%) गैसों से बना है। इसमें नाभिकीय संलयन द्वारा ऊर्जा का उत्पादन होता है। प्रॉक्सिमा सेंचुरी सूर्य का निकटतम तारा है, जो सूर्य से 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है।
प्रकाश वर्ष (light years)
प्रकाश के द्वारा एक वर्ष में चली गई दूरी को प्रकाश वर्ष कहते हैं। प्रकाश की चाल 3,00,000 किमी/ सेकेण्ड या 3 x 10 मी/सेकेण्ड होती है। पारसेक दूरी मापने की सबसे बड़ी इकाई है। 1 पारसेक 3.6 प्रकाश वर्ष सूर्य एवं चन्द्रमा के आकर्षण के कारण पृथ्वी पर ज्वार आते हैं।
ग्रह (Planet)
वे खगोलीय पिण्ड जिनका अपना ऊष्मा, ताप और प्रकाश नहीं होता है, ग्रह कहलाते हैं। ये संख्या में आठ हैं। ये अपने ऊपर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करते हैं। ये एक निश्चित पथ पर सूर्य का चक्कर काटते हैं, जिन्हें कक्षा कहा जाता है। ये कक्षाएँ दीर्घवृत्ताकार हैं।
घूर्णन कालः ग्रह अपने अक्ष पर घूमते हैं। एक घुमाव (घूर्णन) को पूरा करने में लगने वाले समय को घूर्णन काल कहते हैं।
सौरमंडल एवं पृथ्वी (Solar system and earth)
परिक्रमण कालः ग्रह अपने अक्ष पर घूर्णन करते हुए सूर्य के चारो तरफ घूमते भी हैं। सूर्य का एक चक्कर (परिक्रमा) करने में लगने वाले समय को परिक्रमण काल कहते हैं।
उपग्रहः वे खगोलीय पिंड जिनकी अपनी ऊष्मा. ताप और प्रकाश नहीं होता है और जो ग्रहों के चक्कर काटते हैं, उपग्रह कहलाते हैं। इन्हें चन्द्रमा भी कहा जाता है।
ग्रहों को निम्नलिखित दो भागों (वर्गों) में विभाजित किया जाता है:
ग्रह एवं उपग्रह सम्बन्धी तथ्य—
- सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों का आरोही क्रमः बुद्ध, शुक्र पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण।
- आकार के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रमः बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण, पृथ्वी, मंगल, बुद्ध शुक्र।
सबसे कम परिक्रमण कालः बुद्ध
सबसे ज्यादा परिक्रमण कालः वरुण
सबसे कम घूर्णन कालः बृहस्पति
सबसे ज्यादा घूर्णन कालः शुक्र
शुक्र सबसे ज्यादा गर्म ग्रह है क्योंकि इसके वायुमण्डल में 95% CO, गैस की मात्रा है। शुक्र को पृथ्वी की भगिनी (बहन) कहते हैं क्योंकि इसका आकार एवं द्रव्यमान पृथ्वी के बराबर है।
पृथ्वी को नीला ग्रह कहते हैं क्योंकि इसका दो-तिहाई भाग जल से ढँका हुआ है। मंगल को लाल ग्रह कहते हैं क्योंकि इस ग्रह पर लौह-ऑक्साइड की मात्रा पाई जाती है। सभी ग्रह पश्चिम से पूर्व (वामावर्त दिशा) की ओर घूमते हैं सिवाय शुक्र और अरुण के, जो पूर्व से पश्चिम (दक्षिणावर्त दिशा) की ओर घूमते हैं।
- सौरमण्डल का सबसे छोटा उपग्रह: डीमोस (मंगल का उपग्रह)
- सौरमण्डल का सबसे बड़ा उपग्रह: गैनमिड (बृहस्पति का उपग्रह ) टाइटन शनि ग्रह का उपग्रह है।
यम ( प्लूटो ): बौना ग्रह
पहले यह ग्रह माना जाता था परन्तु 2006 में इसको बौने ग्रह की श्रेणी में डाल दिया गया क्योंकि यह वरुण की कक्षा को काटता है। इसकी कक्षा दीर्घवृत्ताकार नहीं है। यह चाँद से भी छोटा है। अन्य बौने ग्रह हैं: सीरीस, शेरॉन, इरीस/जेना (2003 UB 313)
क्षुद्रग्रह / अवान्तर ग्रह
ये मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच पाए जाते हैं। ये ग्रह के ही भाग हैं, जो सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। ये लगभग 40,000 हैं।
धूमकेतु/पुच्छल तारा
यह धूल, बर्फ और हिमानी गैसों के पिंड हैं, जो एक लम्बी किन्तु अनियमित कक्षा में सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। ये सूर्य से बहुत दूर होते हैं। जब ये सूर्य के पास आते हैं तो गर्म होकर इनसे गैसों की फुहार निकलती है जो चमकीली पूँछ के समान प्रतीत होती है। इनकी पूँछ हमेशा सूर्य से दूर होती है। ये एक निश्चित समय बाद दिखाई देते हैं। हेली पुच्छल तारा 76 साल बाद दिखाई देता है और यह पहली बार 1986 में दिखाई दिया था।
उल्काश्म और उल्कापिण्ड (Meteorites and meteorites)
ये छोटे-छोटे आकाशीय पिण्ड हैं, जो धूल गैस के बने हैं। और ये पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी के वायु मण्डल में प्रवेश कर जाते हैं और वायुमण्डलीय घर्षण से चमकने लगते हैं। इन्हें उल्काश्म या टूटा हुआ तारा कहा जाता है। ये पृथ्वी पर पहले ही जल कर राख हो जाते हैं। पहुँचने से कुछ पिण्ड पूरी तरह जल कर राख नहीं हो पाते हैं और ये चट्टानों के रूप में पृथ्वी पर आ गिरते हैं। इन्हें उल्का पिण्ड कहते हैं।
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