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शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य? (Shiksha ke saamaajik uddeshy)

शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य? (Social objectives of education)

शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य के समर्थक समाज या इसके प्रतिनिधि ‘राज्य’ को व्यक्ति से विशेष रूप से श्रेष्ठ मानते हैं। वे इसको श्रेष्ठ आदर्श अलौकिक शक्ति मानते हैं। उनके अनुसार व्यक्ति और सामाजिक वातावरण में आपसी (mutual) क्रियाएँ होती रहती हैं। इन क्रियाओं के फलस्वरूप व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का निर्माण करता है। इस प्रक्रिया में समाज उसकी सहायता करता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक उद्देश्य राज्य को एक उच्च सत्ता के रूप में देखता है। व्यक्ति राज्य के नागरिक होते हैं।

अतः राज्य अपने नागरिकों से उच्च होता है। राज्य व्यक्ति से प्रत्येक प्रकार से श्रेष्ठ होता है और उसकी अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं तथा अभिलाषाओं पर राज्य का शासन होना अति आवश्यक है।

शिक्षा के उद्देश्य के समर्थकों के अनुसार (According to supporters of the purpose of education)

शिक्षा का उद्देश्य जीवन की सामान्य रूप से और राज्य की विशेष रूप से भलाई करना है। इस दर्शन को स्वीकार करने का परिणाम यह होता है कि समाज के सदस्यों के जीवन और भाग्य पर समाज का पूर्ण नियन्त्रण रहता है। इसी कारण समाज को यह अधिकार है कि वह अपनी उन्नति के लिए उनको आवश्यकतानुसार परिवर्तित करे।

राज्य ही यह निश्चित करता है कि व्यक्ति के लिए क्या उचित है? क्या अनुचित है? राज्य को अपने नागरिकों में इस प्रकार परिवर्तन करना चाहिए कि वे राज्य के कल्याण के लिए अपने को बलिदान कर सकें। शिक्षा ही वह शक्तिशाली साधन है जो इस उद्देश्य की पूर्ति कर सकती है। इसी कारण राज्य शिक्षा के लिए निश्चित विधि अपनाता है।

पाठ्य-विषय और प्रणाली का निर्धारण (Determination of curriculum and system)

राज्य पाठ्य-विषय और प्रणाली का निर्धारण अपनी आवश्यकताओं के अनुसार करता है। कोई नागरिक राज्य की सेवा किस प्रकार कर सकता है, अधिकारी ही इसका निर्णय करते हैं?

इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए व्यक्ति को प्रशिक्षण दिया जाता है। ऐसा करने में बालक की आवश्यकताओं और उसकी प्रकृति का कोई ध्यान रखा जाता है। प्रत्येक बालक के लिए पाठ्यक्रम और शिक्षण-विधियाँ एक-समान होती हैं। उनमें कठोरता होती है। बालक पर उनको ऊपर से थोप दिया जाता है।

अनुशासन का अर्थ होता है-दृढ़ता से पालन करना। बालक स्वतंत्र रूप से कोई काम नहीं कर सकता। अध्यापक के द्वारा बालक को पारितोषक और दण्ड अपनी इच्छा के अनुसार दिया जाता है।

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