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जीवन में शिक्षा का महत्व? (Jeevan mein shiksha ka mahatv)

जीवन में शिक्षा का महत्व? (Importance of education in life)

मानव जीवन में शिक्षा का महत्त्व मानव जीवन में शिक्षा का महत्व इस प्रकार है. —

व्यक्तिगत विकास के लिए (For personal development)

शिक्षा के द्वारा बालक में उन सद्गुणों को विकसित किया जाता है जिनके द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास किया जा सकता है। इस विषय में लॉक (Locke) का कथन है कि — ” पौधों का विकास कृषि के द्वारा एवं मनुष्य का विकास शिक्षा के द्वारा होता है।”

ड्यूवी (Dewey) ने लिखा है “जिस प्रकार शारीरिक विकास के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार सामाजिक विकास के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है।”

जब इस संसार में बालक आता है तो उसमें कुछ पाश्विक प्रवृत्तियाँ होती हैं। उस समय वह निःसहाय (helpless) होता है और अपने पालन पोषण के लिए पर्यावरण पर आश्रित होता है। बालक के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास के लिए शिक्षा आवश्यक है। शिक्षा बालक को एक योग्य नागरिक भी बनाती है।

समाज की प्रगति के लिए (For the progress of society)

मनुष्य समाज में ही जन्म लेता है तथा समाज में ही उसका विकास होता है। समाज ही व्यक्ति की सत्ता को मान्यता प्रदान करता है। समाज से अलग मनुष्य का कोई अस्तित्व ही नहीं है। रेमॉण्ट (Raymont) का यह कथन है कि “समाजविहीन व्यक्ति कोरी कल्पना है।” समाज की प्रगति के लिए ऐसे नागरिकों की आवश्यकता होती है जो समाज के सक्रिय सदस्य हों। इसी कारण व्यक्ति को इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए कि वह समाज का पुनःनिर्माण कर सके । शिक्षा व्यक्ति तथा समाज दोनों की दृष्टि से अति आवश्यक है । बिना शिक्षा के अथवा बिना शिक्षित सदस्यों के समाज का संचालन उचित रूप से नहीं हो सकता । समाज की अपनी आवश्यकताएँ होती हैं। उसकी परम्पराएँ तथा प्रथाएँ होती हैं। समाज का अस्तित्व इन्हीं परम्पराओं पर निर्भर होता है।

राष्ट्र की प्रगति के लिए (For the progress of the nation)

किसी भी देश की प्रगति के लिए शिक्षा आवश्यक होती है। देश में चाहे किसी प्रकार का शासन हो-साम्यवाद, समाजवाद, प्रजातन्त्र, राजतन्त्र या कुलीनतन्त्र उसकी सफलता शिक्षा पर ही निर्भर करती है। देश के नागरिकों को इस प्रकार से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि, वे शासन को अपना सहयोग दे सकें। भारत में आज जनतन्त्र है, लेकिन देश की अधिकांश जनता अशिक्षित (Uneducated) है। अतः जनतन्त्र को उतनी सफलता नहीं मिल पा रही है। जनतन्त्र की सफलता के लिए राष्ट्रीय एकता आवश्यक है। शिक्षा के अभाव में राष्ट्रीय एकता स्थापित नहीं हो सकती। अतः राष्ट्र की प्रगति उपयुक्त शिक्षा पर ही निर्भर करती है।

मानव कल्याण के लिए (For human welfare)

विश्व युद्ध के भयंकर परिणामों से हमें शिक्षा लेनी चाहिए । इसी के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) की स्थापना हुई । इस संस्था के निर्माण का उद्देश्य मानव-कल्याण (Human Welfare) है। परन्तु केवल किसी संस्था के द्वारा मानव का कल्याण नहीं किया जा सकता है । शिक्षा के द्वारा मनुष्यों में विश्व-बन्धुत्व की भावना जगायी जानी चाहिए। बालकों को इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए कि उनमें प्रेम, त्याग, सहयोग तथा सद्भावना जैसे गुणों का विकास किया जा सके । स्पष्ट है कि मानव-कल्याण के लिए शिक्षा आवश्यक है।

सभ्यता तथा संस्कृति के लिए (For civilization and culture)

सभ्यता तथा संस्कृति का जनक मनुष्य (Human) है। सभ्यता तथा संस्कृति का उन्नयन व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है। व्यक्ति अपनी उन्नति करता हुआ आगे की तरफ बढ़ने का प्रयास करता है। शिक्षा के अभाव से व्यक्ति उन्नति नहीं कर सकता। वह सभ्यता तथा संस्कृति का निर्माण नहीं कर सकता । जीवन को उन्नतिशील बनाने में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। व्यक्ति हर समय, हर स्थान पर सीखता रहता है। उसका सम्पूर्ण जीवन ही शिक्षा है। सभ्यता तथा संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए समाज शिक्षा की सहायता लेता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि व्यक्ति के स्वयं के विकास के लिए तथा समाज की उन्नति के लिए शिक्षा की परम आवश्यकता है। जीवन को सुसंस्कृत बनाने के लिए शिक्षा का योगदान अद्वितीय है। मनुष्य अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ है। उसकी श्रेष्ठता का आधार उसकी विवेक शक्ति है। शिक्षा ही उसको विवेक शक्ति प्रदान करती है। जीवन एक संघर्ष है, परन्तु शिक्षा जीवन को संघर्ष से मुक्त करके सुखी बनाती है।

शिक्षा ही मानव जीवन को सफल बनाती है। आज के युग में प्रत्येक व्यक्ति उन्नति करना चाहता है। शिक्षा ही व्यक्ति को उन्नतिशील बनाने में सहायक होती है। सभ्यता तथा संस्कृति के पथ पर बढ़ता हुआ युवक शिक्षा की सहायता से ही आगे बढ़ता है।

अत: शिक्षा का आज के जीवन में विशेष महत्त्व है। शिक्षा ही मानव जीवन को समुनन्त, सुसभ्य एवं सुसंस्कृत बनाती है। प्लेटो (Plato) का यह कथन सत्य ही प्रतीत होता है“शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य तथा कार्य मानव प्रकृति तथा चरित्र को प्रशिक्षित करना है।”

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