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उत्तर वैदिक काल की सामाजिक स्थिति? (Vaidik kaal kee saamaajik sthiti)

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उत्तर वैदिक काल की सामाजिक स्थिति? (Social condition of later Vedic period)

उत्तर वैदिक काल में समाज में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट दर्ज की गई । महिलाऐं अब अधिक स्वतन्त्र नहीं थीं । उन्हें ‘ सभा ‘ की सदस्यता से वंचित किया जाने लगा था । महिलाएँ परिवार में सम्माननीय थीं और धार्मिक कार्यों में भाग लेती थीं , लेकिन उत्तर वैदिक ग्रन्थों में पुत्री जन्म को अच्छा नहीं माना गया था । समाज में अनेक धार्मिक श्रेणियों का उदय हुआ , जो दृढ़ होकर विभिन्न जातियों में बदलने लगी और व्यवसाय आनुवांशिक होने लगे ।

उत्तर वैदिक ग्रन्थ (later vedic texts)

उत्तरवैदिक ग्रन्थ छान्दोग्य उपनिषद् में केवल तीन आश्रमों — ब्रह्मचर्य , गृहस्थ तथा वानप्रस्थ की जानकारी मिलती है । सर्वप्रथम जाबालोपनिषद् में चारों आश्रमों का वर्णन मिलता है । यानि इसमें संन्यास का भी वर्णन मिलता है । 25 वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्य आश्रम में रहते हुए विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे ।

गृहस्थ आश्रम (Grihastha Ashram)

गृहस्थ आश्रम में मनुष्यों को तीन ऋणों — देवऋण , ऋषि ऋण और पितृ ऋण से मुक्ति पाने का संस्कार करना पड़ता था । गृह निर्माण तथा वेशभूषा के तरीकों में अधिक परिवर्तन नहीं हुआ था । संगीत और नृत्य मनोरंजन के साधन हुआ करते थे । साथ ही नाटकों का भी मंचन होने लगा था , इसे शैलूष कहा गया है । वीणा वादकों के बारे में भी जानकारी मिलती है ।

तैत्तिरीय ब्राह्मण (Taittiriya Brahmin)

तैत्तिरीय ब्राह्मण के अनुसार , ब्राह्मण सूत का , क्षत्रिय सन का और वैश्य ऊन का यज्ञोपवीत धारण करते थे । श्वेताश्वर उपनिषद् रुद्र देवता को समर्पित है , जिसमें उनका शिव के रूप में वर्णन है । अथर्ववेद में मवेशियों की वृद्धि के लिए प्रार्थना की गई है । सबसे बड़ा और सर्वाधिक लौह पुंज अतरंजीखेड़ा से मिला है । पांचाल राज्य अपने दार्शनिक राजाओं और तत्त्वज्ञानी ब्राह्मणों को लेकर विख्यात था । व्रात्य और निषाद नाम के अनार्य जातियों की चर्चा उत्तर वैदिक ग्रन्थों में मिलती है । वे वैदिक संस्कृति का पालन नहीं करने के कारण ही अनार्य कहलाए ।

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