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आमाशय के कार्यों का नियमन? ( Aamaashay ke kaaryon ka niyaman )

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आमाशय के कार्यों का नियमन ( Regulation of Functions of Stomach ) 

आमाशय के कार्यों का नियमन कई तन्त्रिकीय तथा हॉरमोनी नियन्त्रण विधियों से होता है । इन विधियों को तीन परस्पर व्याप्त प्रावस्थाओं ( phases ) में बाँटा जाता है – शिरस्य , जठरीय तथा आन्त्रीय प्रावस्थाएँ । 

( A ). शिरस्य प्रावस्था ( cephalicphase ) 

इस अवस्था में भोजन को केवल देखने मात्र से या इसकी सुगन्ध या स्वाद से या मुखगुहा में इसके चर्वण से मस्तिष्क के मेड्यूला के नियन्त्रण में ऐसी प्रतिवर्ती प्रतिक्रियाओं ( reflexes ) की चालक प्रेरणाएँ स्थापित हो जाती हैं जिनके कारण जठर रस का स्रावण , आमाशयी दीवार की गतियाँ तथा जठर ग्रन्थियों की एन्टीरोएण्डोक्राइन ( enteroendocrine ) कोशिकाओं द्वारा गैस्ट्रिन ( gastrin ) नामक हॉरमोन का स्रावण शुरू हो जाता है । 

( B ). जठरीय प्रावस्था ( gastric phase ) 

यह आमाशय में भोजन के पहुंचने पर शुरू होती है । आमाशय की दीवार में मौजूद प्रसार संवेदांग ( stretch receptors ) इसके फैलने से तथा रासायनिक संवेदांग ( chemoreceptors ) भोजन की प्रोटीन्स से संवेदित होते हैं । ये संवेदनाएँ केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र में पहुँचती हैं । केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र से निर्गमित चालक प्रेरणाएँ प्रतिवर्ती प्रतिक्रियाओं के रूप में , आमाशय की दीवार की गतियों तथा श्लेष्म , जठर रस एवं गैस्ट्रिन हॉरमोन के स्रावण को तीन कर देती हैं । इस प्रावस्था के अन्तिम चरण में जब काइम की थोड़ी – थोड़ी मात्रा ग्रहणी ( छोटी आंत का अगला भाग ) में जाने लगती है तो जठर रस की अम्लीयता तथा आमाशय की दीवार का प्रसार कुछ कम हो जाता है । इससे आमाशय की गतियाँ एवं त्रावण क्रिया कम हो जाती है । 

जठर ग्रन्थियों द्वारा स्रावित गैस्ट्रिन ( gastrin ) हॉरमोन रुधिर में मुक्त होकर आमाशय की दीवार में पहुँचने पर निम्नलिखित कार्य करता है ;

( 1 ). आमाशयी क्रमाकुंचन को तीव्र करता है । 

( 2 ). जठर ग्रन्थियों की वृद्धि तथा स्रावण क्रिया को बढ़ाता है । 

( 3 ). कार्डियक संकोचक पेशी के संकुचन तथा पाइलोरिक संकोचक पेशी के शिथिलन को प्रेरित करता है । गैस्ट्रिन हॉरमोन के स्रावण की दर pH के बढ़ने , काइम में उपस्थित अधूरी पची हुई प्रोटीन्स तथा ऐल्कोहॉलों falcohols ) , कैफीन ( caffeine ) आदि कुछ रसायनों के प्रभाव से बढ़ जाती है । इसके विपरीत pH के घटने से इसके लावण की दर कम हो जाती है । यह पुनर्निवेशन नियन्त्रण ( feedback control ) आमाशय की कार्यिकी को सन्तुलित बनाए रखता है । आमाशय की दीवार की श्लेष्मिका के संयोजी ऊतक में मास्ट कोशिकाएँ ( mast cells ) होती हैं जो हिस्टैमीन ( histamine ) प्रोटीन का स्रावण करती रहती हैं । यह प्रोटीन भी जठर ग्रन्थियों की स्रावण क्रिया को प्रोत्साहित करती है ।

आन्त्रीय प्रावस्था ( intestinal phase ) 

यह अवस्था तब प्रारम्भ होती है जब अम्लीय काइम आमाशय से ग्रहणी में पहुंचने लगती है । इसका वर्णन इसी अध्याय में छोटी आंत के कार्यों के नियमन के साथ किया गया है । 

आमाशय का रिक्तन ( Emptying of Stomach ) 

आमाशय में तरल तथा ठोस भोजन क्रमशः 1.5 से 2.5 और 3 से 4 घण्टे रुकता है । इस बीच आमाशय की मन्थन गतियों के बीच – बीच में तीव्र क्रमाकुंचन ( peristalsis ) की तरंगों के कारण पाइलोरिक छिद्र से काइम की थोड़ी – थोड़ी मात्रा रुक – रुककर ग्रहणी में पम्प होने लगती है । इस पम्पिंग के दौरान गैस्ट्रिन हॉरमोन ग्रासनली के कार्डियक संकोचक को सिकोड़ने और पाइलोरिक छिद्र के चारों ओर के पाइलोरिक संकोचक ( pyloric sphincter ) को फैलाने का काम करता है । साथ ही तन्त्रिकीय नियन्त्रण इस पम्पिंग की दर का नियमन करता है । पाइलोरिक छिद्र साधारणतः थोड़ा – सा खुला रहता है , परन्तु ग्रहणी में काइम का दबाव आमाशय से अधिक हो जाने पर यदि उद्गलन की स्थिति आ जाए तो एक प्रतिवर्ती प्रतिक्रिया ( reflex reaction ) के रूप में संकुचित होकर पाइलोरिक संकोचक इसे बन्द कर देता है ।

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — आमाशय के कार्यों का नियमन? , आमाशय का रिक्तन आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद् ]

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