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यकृत के कार्य? ( Functions of Liver )
यकृत कोशिकाओं में राइबोसोम्स , एण्डोप्लाज्मिक जाल , माइटोकॉण्ड्रिया , लाइसोसोम्स आदि कोशिकांग ( organelles ) अपेक्षाकृत अधिक संख्या में होते हैं । इससे इन कोशिकाओं में उपापचयी ( metabolic ) सक्रियता का सबूत मिलता है । इसीलिए इनमें ग्लाइकोजन कणों , वसा बिन्दुकों , एन्जाइमों , लोहयुक्त पदार्थों के रवों ( crystals ) आदि से भरी रिक्तिकाएँ ( vacuoles ) पाई जाती हैं । ये कोशिकाएँ इतनी सक्रिय इसीलिए होती हैं कि यकृत एक पाचन प्रन्थि ही नहीं होता है बल्कि शरीर की कुशलता के लिए यह कई महत्त्वपूर्ण कार्य भी करता है ।
यकृत के महत्त्वपूर्ण कार्य ( Important liver functions )
( 1 ). पित्त का स्रावण ( Secretion of Bile )
पित्त का लगातार स्रावण करना यकृत का प्रमुख कार्य होता है । पित ( bile ) हरे – भूरे रंग का क्षारीय ( alkaline ) तरल होता है । इसमें पित्त लवण ( bile salts ) , पित्त रंगा ( bile pigments ) , कोलेस्ट्रॉल ( cholesterol ) , लैसिथिन ( lecithin ) आदि पदार्थ होते हैं । इसके लवणों में सोडियम बाइकार्बोनेट ( sodium bicarbonate ) , ग्लाइकोकोलेट ( glycocholate ) एवं टॉरोकोलेट ( taurocholate ) प्रमुख होते हैं । प्रमुख रंगा पदार्थ बिलिवर्डिन तथा बिलिरूबिन होते हैं जो रुधिर की हीमोग्लोबिन के विखण्डन से बनते हैं । लेकिन पित्त में पाचक एन्जाइम नहीं होते हैं , फिर भी पित्त लवण भोजन , विशेषतः वसाओं के पाचन के लिए अति आवश्यक होते हैं । पित्त भोजन को सड़ने से रोकता है और इसमें मौजूद हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है । क्षारीय होने के कारण यह काइम में जठर रस की अम्लीयता को खतम करके इसे क्षारीय बनाता है जिससे कि छोटी आंत में इस पर अग्न्याशयी रस की प्रतिक्रियाएँ हो सकें ।
( 2 ). कार्बोहाइड्रेट उपापचय ( Carbohydrate Metabolism )
आमाशय एवं आँत से पचे हुए पदार्थों को लाने वाली यकृत निर्वाहिका शिरा ( hepatic portal vein ) हृदय में न जाकर यकृत में जाती है । अतः शरीर के अन्य भागों में पहुँचने से पहले लिपिड्स ( lipids ) के अलावा अन्य पचे हुए पदार्थ यकृत में आते हैं । यकृत कोशिकाएँ , दक्ष ग्रहणी की भाँति , आवश्यकता से अधिक शर्करा को रुधिर से ले लेती हैं और ग्लाइकोजन में बदलकर इसका संग्रह कर लेती हैं । इसे ग्लाइकोजेनिसिस ( glycogenesis ) कहते हैं । रुधिर में शर्करा की कमी पड़ने पर संग्रहित ग्लाइकोजन को वापस शर्करा में बदलकर रुधिर में मुक्त किया जाता है । इसे ग्लाइकोजेनोलिसिस ( glycogenolysis ) कहते हैं । यही नहीं , यकृत कोशिकाएँ ऐमीनो अम्लों , वसीय अम्लों , ग्लिसरॉल आदि अन्य पदार्थों से भी ग्लूकोस का संश्लेषण कर लेती हैं । इसे ग्लूकोनियोजेनिसिस ( gluconeogenesis ) कहते हैं ।
( 3 ). वसा – उपापचय ( Fat Metabolism )
यकृत कोशिकाएँ वसा – उपापचय में भी महत्त्वपूर्ण भाग लेती हैं । ये कुछ वसाओं तथा अन्य लिपिड्स का संश्लेषण तथा कुछ वसाओं का भण्डारण करती हैं । कुछ वसीय अम्लों का ये ऐसीटिल सहएन्जाइम ए ( acetyl coenzyme A ) में विखण्डन करती हैं । रुधिर में लिपिड्स के परिवहन के लिए ये लाइपोप्रोटीन्स का निर्माण करती है ।
( 4 ). ऐमीनो अम्लों का विऐमीनीकरण या ऐमीनोहरण ( Deamination of Amino Acids )
यकृत कोशिकाएँ आवश्यकता से अधिक ऐमीनो अम्लों ( amino acids ) को रुधिर से लेकर इन्हें कीटो अम्ल एवं अमोनिया ( NHI ) में विखण्डित कर देती हैं । इसी को ऐमीनो अम्लों का विऐमीनीकरण ( deamination ) कहते हैं । कीटो अम्ल का उपयोग ऊर्जा – उत्पादन या ग्लूकोनियोजेनिसिस के अन्तर्गत ग्लूकोस के संश्लेषण में होता है ।
( 5 ). यूरिया का संश्लेषण ( Synthesis of Urea )
विऐमीनीकरण प्रक्रिया में बनी अमोनिया को तथा शरीर – कोशिकाओं में प्रोटीन उपापचय के फलस्वरूप बनी अमोनिया ( NH , ) को रुधिर से लेकर यकृत कोशिकाएँ रुधिर से ग्रहण की गई CO2 से मिलाकर , यूरिएज ( urease ) नामक एन्जाइम सहायता से , यूरिया ( urea ) का संश्लेषण करती हैं । इसी यूरिया को वृक्क रुधिर से लेकर मूत्र के साथ इसका उत्सर्जन करते हैं
2NH3 + CO2 Urmare → CO ( NH2 ) 2 + H20 6.
( 6 ). उत्सर्जी पदार्थों का बहिष्कार ( Elimination of Excretory Substances )
यूरिया का संश्लेषण करने के अलावा , कुछ अन्य निरर्थक पदार्थों ( कोलेस्ट्रॉल , धातुओं तथा हीमोग्लोबिन – विखण्डन के उत्पाद आदि ) के उत्सर्जन में भी यकृत सहायता करता है । ये पदार्थ पित्त से मिलकर ग्रहणी में पहुंचते हैं और मल के साथ बाहर निकल जाते हैं ।
( 7 ). विषैले पदार्थों का विषहरण ( Detoxification )
आँत में उपस्थित जीवाणु ( bacteria ) कुछ विषेले पदार्थ बनाते हैं जो यकृत निर्वाहिका शिरा के रुधिर में मिलकर यकृत में पहुँचते हैं । यकृत कोशिकाएँ इनके विष को नष्ट या निष्क्रिय ( neutralise ) करके इन्हें अहानिकारक ( harmless ) पदार्थों में बदल देती हैं । इसी प्रकार , पूरे शरीर में उपापचय के फलस्वरूप बने हानिकारक प्रूसिक अम्ल ( prussic acid ) को भी यकृत कोशिकाएँ रुधिर से लेकर निष्क्रिय करती हैं ।
( 8 ). रुधिराणुओं का निर्माण तथा विखण्डन ( Formation and Breakdown of Blood Corpuscles )
कशेरुकियों की भूणावस्था में यकृत रुधिरोत्पादक ( haemopoietic ) होता है , यानी इसमें लाल रुधिराणुओं का निर्माण होता है । वयस्क अवस्था में , इसके विपरीत , यकृत की कुप्फर कोशिकाएँ ( Kupffer cells ) निष्क्रिय एवं मृत लाल रुधिराणुओं को तोड़ – फोड़कर इनके हीमोग्लोबिन को पित्त रंगाओं में बदलती हैं जो पित्त के साथ ग्रहणी में पहुँचकर मल के साथ बाहर निकल जाती हैं । इस प्रक्रिया में हीमोग्लोबिन का लौह यकृत कोशिकाओं में संचित हो जाता है ।
( 9 ). अकार्बनिक पदार्थों का संग्रह ( Storage of Inorganic Substances )
लौह के अतिरिक्त , तांबा आदि अन्य पदार्थों का भी यकृत कोशिकाएँ संचय करती हैं ।
( 10 ). एन्जाइमों का त्रावण ( Secretion of Enzymes )
यकृत कोशिकाएँ कुछ ऐसे एन्जाइमों का स्रावण करती हैं जो शरीर में प्रोटीन्स , वसाओं , कार्बोहाइड्रेट्स आदि के उपापचय में महत्त्वपूर्ण भाग लेते हैं ।
( 11 ). रुधिर की प्रोटीन्स का संश्लेषण ( Synthesis of Blood Proteins )
रुधिर प्लाज्मा की अधिकांश प्रोटीन्स का संश्लेषण यकृत कोशिकाओं में ही होता है । इनमें ऐल्बुमिन ( albumin ) , ग्लोब्यूलिन्स ( globulins ) , प्रोनॉम्बिन ( prothrombin ) तथा फाइब्रिनोजन ( fibrinogen ) प्रमुख है ।
( 12 ). हिपरिन का स्रावण ( Secretion of Heparin )
यकृत कोशिकाएँ हिपरिन नामक प्रोटीन का भी संश्लेषण करके रुधिर में मुक्त करती हैं । यह प्रोटीन रुधिरवाहिनियों में रुधिर को जमने से रोकती है ।
( 13 ). जीवाणुओं का भक्षण ( Destruction of Bacteria )
रुधिर में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं का यकृत की कुष्फर कोशिकाएँ भक्षण करके इन्हें नष्ट कर देती हैं । इस क्रिया को भक्षकाणु क्रिया यानी फैगोसाइटोसिस कहते हैं ।
( 14 ). विटामिनों का संश्लेषण एवं संचय ( Synthesis and Storage of Vitamins )
संभवतः यकृत कोशिकाएँ विटामिन A का संश्लेषण करती हैं । त्वचा , यकृत तथा वृक्क मिलकर विटामिन D का सक्रियकरण करते हैं । अल्प समय के लिए यकृत कोशिकाओं में विटामिन A , B12 , D , E तथा K का संचय भी होता है ।
( 15 ). लसिका उत्पादन एवं रुधिर संचय ( Lymph Production and Blood Storage )
यकृत में उपस्थित रुधिरपात्र ( blood sinusoids ) रुधिर के भण्डारण का काम करते हैं । यकृत के ऊतक की क्षति ( damage ) को यकृतशोथ ( hepatitis ) कहते हैं । यह क्षति कुछ वाइरसों के संक्रमण से अथवा कुछ औषधियों या विषैले पदार्थों के सेवन से हो जाती है । इसके फलस्वरूप प्रायः पीलिया रोग ( jaundice ) हो जाता है । आजकल व्यापक मदिरापान की अधिकता के कारण यकृतशोथ का रोग बढ़ता जा रहा है । तीक्ष्ण यकृतशोथ की दशा को सिरोसिस ( cirrhosis ) कहते हैं । इसमें यकृत की व्यापक क्षति के कारण प्रायः रोगी की मृत्यु हो जाती है ।
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