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आधुनिक जीव विज्ञान क्या है? ( Aadhunik jeev vigyaan kya hai )

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इस लेख में आधुनिक जीव विज्ञान ( Modern biology ) विषय से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी जैसे कि – आधुनिक जीव विज्ञान क्या है? ( Aadhunik jeev vigyaan kya hai ) इसके प्रमुख सिद्धांत आदि । तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “

आधुनिक जीव विज्ञान क्या है? ( What is modern biology )

वर्तमान युग में वैज्ञानिकों ने अनेक नए – नए यन्त्रों और उपकरणों के आविष्कार तथा रिसर्चों की सहायता से अनेक नये विधियों का विकास करके जीवों के सम्बन्ध में हमारे ज्ञान में अभूतपूर्व वृद्धि की है । इस नए ज्ञान की भूमिका में आधुनिक जीव विज्ञान में कुछ ऐसे एकीकरण सिद्धान्तों को मान्यता दी गई है । जो सभी जीवों पर समान रूप से लागू होते हैं ।

आधुनिक जीव विज्ञान के सिद्धान्त ( Principle of modern biology )

आधुनिक विज्ञान के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित है ;

( 1 ). संघठन का सिद्धान्त ( Concept of Organization ) 

इसके अनुसार ” जीवन “ से सम्बन्धित सभी प्रक्रियाएँ रासायनिक एवं भौतिक सिद्धान्तों पर आधारित होती हैं । यदि हमें इस संघठन का पूरा ज्ञान हो जाए तो हम तो हम परखनली में ” जीव की उत्पत्ति “ कर सकते हैं ।

( 2 ). जीवात् – जीवोत्पत्ति सिद्धान्त ( Concept of Biogenesis ) 

वैज्ञानिक मानते हैं कि “ जीव पदार्थ “ की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थ के संघठन में क्रमिक विकास से हुई है । ऐसे ” रासायनिक उद्विकास “ के लिए जरूरी वातावरणीय दशाएँ अब पृथ्वी पर नहीं हैं , ये अरबों साल पहले पृथ्वी पर थीं । आज के समय में पृथ्वी पर नए जीवों की उत्पत्ति केवल पहले से मौजूद जीवों से ही हो सकती है । 

( 3 ). कोशिका मत — श्लाइडेन और श्वान ( Cell Theory – Schleiden and Schwann , 1839 ) 

सभी जीवों जैसे कि – जन्तु , पादप , जीवाणु या बैक्टीरिया , आदि में शरीर एक या एक – से – अधिक कोशिकाओं और इनसे उत्पादित पदार्थों का बना होता है । नई कोशिकाएं केवल पहले से मौजूद कोशिकाओं के विभाजन से बन सकती हैं । सभी कोशिकाओं की भौतिक संरचना , रासायनिक संघठन एवं उपापचय में एक मूल समानता होती है । कोशिकाएं जन्तुओं और पादपों की मूलभूत रचनात्मक इकाइयाँ है । 

( 4 ). जैव – विकास मत ( Theory of Organic Evolution ) 

आज पृथ्वी में विद्यमान विभिन्न प्रकार के जीवों में से किसी की भी नया जन्म नहीं हुई है । इन सबकी उत्पत्ति किसी – न – किसी समय रचना में सरल पूर्वजों से ही परिवर्तनों के पीढ़ी – दर – पीढ़ी संग्रह के फलस्वरूप हुई है । 

( 5 ). जीन मत ( Gene Theory ) 

पीढ़ी दर पीढ़ी , माता – पिता के लक्षण सन्तानों में कैसे जाते हैं? 

इसके लिए चार्ल्स डारबिन ने अपने ” सर्वजनन मत “ में कहा कि माता – पिता के शरीर का हर एक भाग अपने अतिसूक्ष्म नमूने या प्रतिरूप बनाता है । जो अण्डाणुओं एवं शुक्राणुओं में समाहित होकर सन्तानों में चले जाते हैं । 

ऑगस्त वीज़मान ( 1886 ) ने अपने ” जननद्रव्य प्रवाह मत “ में कहा कि अण्डे से नए जीव शरीर के भूणीय परिवर्धन के दौरान , प्रारम्भ में ही ” जननद्रव्य ” ” देहद्रव्य “ से अलग हो जाता है । यही जननद्रव्य सन्तानों में प्रदर्शित होने वाले लक्षणों को वह अपने माता पिता से ले जाता है । 

अब हम स्पष्ट जान गए हैं कि यह जननद्रव्य कोशिकाओं के केन्द्रक में उपस्थित गुणसूत्रों के डीएनए ( DNA ) अणुओं के रूप में होता है और इन अणुओं के सूक्ष्म खण्ड को जीन्स कहते हैं । जो आनुवंशिक लक्षणों को जनकों ( माता – पिता ) से सन्तानों में ले जाते हैं । जीन में थोड़े बहुत परिवर्तनों के संग्रहित होते रहने से ही समान पूर्वजों से नई – नई जीव – जातियों का उद्विकास यानी उन्नति होता है । 

( 6 ). एन्जाइम मत ( Enzyme Theory ) 

हर एक जीव कोशिका में हर पल हजारों रासायनिक अभिक्रियाएँ होती रहती हैं । इन्हें सामूहिक रूप से कोशिका का उपापचय कहते हैं । प्रत्येक अभिक्रिया एक विशेष कार्बनिक उत्प्रेरक यानी एन्जाइम की मध्यस्थता के कारण सक्रिय होकर पूरी होती है । 

( 7 ). उपापचयी अभिक्रियाओं का जीनी नियन्त्रण ( Genic Control of Metabolic Reactions ) 

जार्ज वीडल और एडवर्ड टैटम ( 1945 ) की बहुस्वीकृत परिकलाना– “ एक जीन → एक एन्जाइम → एक उपापचयी अभिक्रिया “ के अनुसार , जीव के प्रत्येक संरचनात्मक एवं क्रियात्मक लक्षण पर जीनी नियन्त्रण होता है , क्योंकि प्रत्येक उपापचयी अभिक्रिया एक एन्जाइम द्वारा और प्रत्येक एन्जाइम का संश्लेषण एक जीन विशेष के द्वारा नियन्त्रित हाता है ।

( 8 ). विभेदक जीन क्रियाशीलता ( Variable or Differential Gene Activity ) 

किसी भी बहुकोशिकीय जीव शरीर की सभी कोशिकाएँ जाइगोट नामक एक ही कोशिका से शुरू होकर बार – बार समसूत्री विभाजनों के फलस्वरूप बनती हैं । इसलिए इन सब में जीन समूह एकदम समान होता है । 

बीडल और टैटम की परिकल्पना के अनुसार , एक शरीर की सभी कोशिकाएँ रचना और क्रिया में समान होनी चाहिए । लेकिन सही में ऐसा नहीं होता है । आँख , नाक , लीवर , गुर्दे , हड्डी , त्वचा , कान , आदि । शरीर के विभिन्न अंग और हर अंग के विभिन्न भाग । रचना और कार्यिकी में बहुत ही असमान कोशिकाओं के बने होते हैं । 

( 9 ). वातावरण एवं समस्थापन या समस्थैतिकता ( Environment and Homeo stasis ) 

सफल “ जीवन “ के लिए जीवों में अपने वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार , अपने शरीर की कार्यिकी एवं उपापचय में जरूरी परिवर्तन करके शरीर एवं अन्तः वातावरण की अखण्डता बनाए रखने की अभूतपूर्व क्षमता होती है । इसकी खोज क्लॉडी बरनार्ड ( 1865 ) ने की । अन्तः वातावरण की अखण्डता बनाए रखने की क्षमता को वाल्टर वी० कैनन ( 1932 ) ने समस्थापन या समस्थैतिकता का नाम दिया ।

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — आधुनिक जीव विज्ञान क्या है? ( Aadhunik jeev vigyaan kya hai ) इसके प्रमुख सिद्धांत आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । धन्यवाद्…

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