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शिक्षा के कार्य? (Functions of education)
यों तो शिक्षा का महत्व सदैव ही रहा है, लेकिन आज की बदलती हुई परिस्थिति में शिक्षा के कार्य (Functions of education) और बढ़ गये हैं। आज भारत का नैतिक पतन हो रहा है। चारों ओर भ्रष्टाचार हो रहा है। भाई-भतीजावाद (Nepostim) खूब पनप रहा है। अतः राष्ट्रीय जीवन में इसके कार्य और बढ़ गये हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसका अधिकांश समय समाज में व्यतीत होता है। इस दृष्टिकोण से भी शिक्षा का विशेष महत्व है।
जॉन ड्यूवी (John Dewy) का कथन है.— “शिक्षा व्यक्ति की उन सब शक्तियों का विकास है जिनसे वह वातावरण पर अधिकार प्राप्त कर सके तथा भविष्य की आशाओं को पूरा कर सके।”
इस प्रकार शिक्षा सामाजिक कार्य है। शिक्षा ही व्यक्ति को सामाजिक बना सकती है। इस कारण शिक्षा का विशेष महत्व है।
राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के कार्य (Functions of education in national life)
जीवन में शिक्षा के निम्नलिखित कार्य हैं. —
राष्ट्रीय विकास (National Development)
शिक्षा राष्ट्रीय विकास का कार्य करती है। शिक्षा की उत्तम व्यवस्था के द्वारा ही किसी देश का विकास किया जा सकता है। आज भारत में देश के उत्थान के लिए, शिक्षा की नीतियाँ चलाई जा रही हैं। अतः यदि राष्ट्रीय विकास किया जाना है तो भारत में शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की जानी चाहिए। राष्ट्रीय विकास के लिए शिक्षा की योजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
राष्ट्रीय एकता (National Integration)
राष्ट्रीय एकता का आधार शिक्षा है। भारत में जातीयता, क्षेत्रीयता, प्रान्तीयता तथा साम्प्रदायिकता के आधार पर अनेक झगड़े होते रहते हैं। शिक्षा के द्वारा इन झगड़ों को दूर किया जा सकता है। शिक्षा ही इन सभी दोषों को दूर करके राष्ट्र को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँध सकती है। शिक्षा के कार्य के रूप में राष्ट्रीय एकता के विषय में पं. नेहरू ने लिखा था “राष्ट्रीय एकता के प्रश्न में जीवन की प्रत्येक वस्तु आ जाती है। शिक्षा का स्थान इन सबसे ऊपर है और यही आधारशिला है।”
भावात्मक एकता (Emotional Integration)
भारत में अनेक विभिन्नताएँ हैं। वास्तव में विभिन्नताओं का ही देश है। अतः यहाँ पर शिक्षा का कार्य भावात्मक एकता (Emotional Integration) में वृद्धि करना है। शिक्षा के द्वारा ही भावात्मक वातावरण का निर्माण किया जा सकता है। शिक्षा के अनेक प्रकार के उचित दृष्टिकोण का विकास करती है। अतः राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा का कार्य भावात्मक एकता की प्राप्ति है।
सामाजिक कुशलता में वृद्धि (Promotion of Social Efficiency)
आज भारत निरन्तर विकास की ओर अग्रसर हो रहा है। अतः हमें कुशल व्यक्तियों की आवश्यकता है। आज के युग में कुशल व्यक्ति वह है जो अपने पैरों पर खड़ा हो सके तथा अन्य व्यक्तियों के कार्यों में हस्तेक्षप न करे। ऐसा व्यक्ति ही सामाजिक उन्नति में सहायक हो सकता है। अतः शिक्षा का यह कार्य है कि वह अपने द्वारा व्यक्तियों की सामाजिक कुशलता में वृद्धि करे।
नैतिकता का प्रशिक्षण (Training in Morality)
नैतिकता से तात्पर्य उन सब बातों से है जो मनुष्य के आचरण को श्रेष्ठ बनाती है। महात्मा गाँधी का कथन है,— “शिक्षा से मेरा अभिप्राय उन सर्वश्रेष्ठ गुणों का प्रदर्शन है जो बालक तथा मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क तथा आत्मा में विद्यमान हैं।” इस प्रकार शिक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य व्यक्ति को नैतिकता में प्रशिक्षित करना है।
नेतृत्व की तैयारी (Preparation of Leadership)
भारत एक प्रजातंत्रवादी देश है। इसकी सफलता के लिए उचित नेतृत्व की आवश्यकता होती है। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए योग्य नागरिकों की आवश्यकता होती है। अतः प्रजातन्त्र की सफलता के लिए नागरिकों को उनके कर्तव्यों तथा दायित्वों का बोध कराया जाना चाहिए। इस प्रकार शिक्षा का मुख्य कार्य व्यक्तियों को इस प्रकार प्रशिक्षित करना है कि वे सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में नेतृत्व का उत्तरदायित्व निभा सकें।
कुशल व्यक्ति तैयार करना (Preparing Skilled Workers)
प्रजातन्त्र की सफलता के लिए कुशल व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। कुशल व्यक्ति ही देश का उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि कर सकते हैं। राष्ट्रीय आय बढ़ने से सभी को लाभ होता है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है जो राष्ट्रीय आय में वृद्धि कर सकें। इस प्रकार राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा का कार्य, कुशल कार्यकर्ताओं की पूर्ति करना है।
सार्वजनिक हित को प्राथमिकता (Priority to Universal Interest)
देश तथा समाज के हित के लिए व्यक्तिगत हित को तिलांजलि देनी होती है। अतः शिक्षा का यह कार्य है कि वह मनुष्य को सिखाए कि व्यक्तिगत हित की अपेक्षा सार्वजनिक हित को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। आज भारत में इसकी विशेष आवश्यकता है। अतः शिक्षा का यह कार्य है कि वह व्यक्तियों को ऐसा प्रशिक्षण दे कि व्यक्ति अपने हितों को गौण समझें।
सामाजिक सुधार व उन्नति करना (Social Reformation and Progress)
शिक्षा के द्वारा समाज में फैली हुई कुरीतियों, प्रथाओं आदि को दूर करके मनुष्य की उन्नति करना है क्योंकि मानव शिक्षा के अभाव के कारण अन्धविश्वासों में फँसकर अपनी उन्नति नहीं कर पाता। ड्यूवी ने लिखा है- “शिक्षा में ही सामाजिक एवं संस्था सम्बन्धी साधनों द्वारा समाज के कल्याण, सुधार एवं उन्नति की रुचि का पुष्पित होना पाया जाता है।”
दी गयी व्याख्या से स्पष्ट होता है कि शिक्षा का मानव तथा राष्ट्रीय जीवन में विशेष महत्व है। किसी देश के लिए ऐसी शिक्षा पद्धति होनी चाहिए जो उपरोक्त वर्णित कार्य कर सके। इस प्रकार देश तथा समाज का कल्याण होगा। इस प्रकार ही देश की वास्तविक प्रगति होगी।
संक्षेप में बोसिंग (Bossing) ने शिक्षा के कार्यों के सम्बन्ध में लिखा है- “शिक्षा का कार्य व्यक्ति और समाज के बीच ऐसा सामंजस्य स्थापित करना है जिसमें व्यक्ति अपने को मोड़ सके तथा परिस्थितियों को पुनर्व्यवस्थित कर ले जिनसे दोनों को अधिकाधिक स्थायी संतोष प्राप्त हो सके।”
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