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ग्रसनी क्या है? परिभाषा, आंतरिक संरचना ( Grasanee kya hai )

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इस लेख में ग्रसनी क्या है? ( What is pharynx ) विषय से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी, तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “।   

ग्रसनी क्या है? ( What is pharynx )

ग्रसनी या गलतनी गुहा ( Pharyngeal or throat cavity ) :

परिभाषा ( Definition ) — कठोर तालु के विकास के कारण लम्बे श्वास मार्ग बन जाने से हमारे अन्त: नासावार ( Intermal nares ) बहुत पीछे ग्रसनी में खुलते हैं । अतः ग्रसनी में मुखगुहिका एवं नासामार्ग मिलते हैं । इस प्रकार ग्रसनी भोजन एवं वायु के लिए सहमार्ग का काम करती है , यानि यह पाचन एवं श्वसन , दोनों तन्त्रों का अंग होती है । इसके अलावा यह बोलने में ध्वनि की गूंज उत्पन्न करती है और इसमें शरीर के सुरक्षा तन्त्र से सम्बन्धित एक जोड़ी अण्डाकार गलतुण्डिकाएँ ( tonsils ) स्थित होती हैं । यह लगभग 13 cm लम्बी कीपनुमा के आकार की होती है । 

मांसल अलिजिह्वा ( uvula ) इसके अगले चौड़े भाग को ऊपरी नासाग्रसनी ( nasopharynx ) तथा निचले मुखग्रसनी ( oropharynx ) कक्षों में बाँटती हैं । नासाग्रसनी में अन्त: नासाद्वार खुलते हैं । इसकी पार्श्व दीवारों पर , एक – एक दरारनुमा छेदों द्वारा , मध्य करणों से आने वाली दो कण्ठ – कर्ण नलियाँ ( eustachian tubes ) भी इसमें खुलती हैं । 

ग्रसनी
                                                  मुख ग्रासन गुहिका की आंतरिक संरचना

मुखग्रसनी छोटी और गलद्वार ( fauces ) द्वारा मुखगुहिका से जुड़ी होती है । ग्रसनी के पिछले व निचले सँकरे भाग को कण्ठग्रसनी ( laryngopharynx ) कहते हैं । इसमें सबसे पीछे ऊपर की ओर ग्रासनली का द्वार होता है जिसे हलक या निगलद्वार ( gullet ) कहते हैं । इसके ठीक नीचे , आगे की ओर श्वासनाल ( trachea ) के छोर पर स्थित कण्ठ ( larynx ) का कण्ठद्वार या ग्लॉटिस ( glottis ) होता है । 

मुखग्रसनी के तल पर जिह्वा का ग्रसनीय भाग होता है । कण्ठद्वार पर , श्लेष्मिका से ढका एवं लचीली उपास्थि का बना , पत्तीनुमा , चल ढक्कन – सा घाँटीढापन ( epiglottis ) होता है । निगलद्वार सामान्यतः बन्द रहता है । केवल भोजन निगलते समय यह खुलता है । इस समय कोमल तालु और अलिजिह्वा ऊपर की ओर उठकर नासाग्रसनी को ढक लेते हैं । साथ ही स्वर – यन्त्र कुछ आगे और ऊपर की ओर उठ जाता है जिससे घाँटीढापन पीछे और नीचे की ओर झुककर कण्ठद्वार को ढक लेता है । 

अतः भोजन घाँटीढापन पर से फिसलता हुआ ग्रासनली में चला जाता है । कभी – कभी भोजन निगलने में गड़बड़ी से भोजन के कण श्वासनाल में चले जाते हैं । इसी को फन्दा लगना कहते हैं । सामान्य दशा में कोमल तालु , अलिजिह्वा एवं स्वर – यन्त्र नीचे झुके रहते हैं और कण्ठद्वार घाँटीढापन से हटा रहता है । अतः बाहरी हवा स्वतन्त्रतापूर्वक बाह्य नासाछिद्रों में होकर स्वासमार्गों , ग्रसनी , कण्ठ एवं वायुनाल में , श्वास – क्रिया के अन्तर्गत आती – जाती रहती है । 

ग्रसनी की दीवार में चार स्तर होते हैं — गुहा की ओर इस पर महीन श्लेष्मिका ( mucosa ) का स्तर होता है और इसके बाहर की ओर अध:श्लेष्मिका ( submucosa ) , पेशी स्तर तथा संयोजी ऊतक स्तर होते हैं । नासाग्रसनी की श्लेष्मिका की श्लेष्मिक कला स्यूडोस्तृत रोमाभि स्तम्भी एपिथीलियम होती है तथा शेष भाग में स्तृत शल्की एपिथीलियम होती है । 

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — ग्रसनी क्या है? ( What is pharynx ) आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद्…]

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