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जीवधारियों के लक्षण क्या है? ( Jeevadhaariyon ke lakshan kya hai )

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इस लेख में जीवधारियों के ( Living beings ) विषय से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी जैसे कि – जीवधारियों के लक्षण क्या है? ( Jeevadhaariyon ke lakshan kya hai ) आदि । तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “

जीवधारियों के लक्षण क्या है? ( What is characteristics of living beings ) 

सभी जीवधारियों के कुछ विशेष लक्षण होते हैं । जिसके आधार पर उन्हें निर्जीव वस्तुओं से अलग किया जा सकता है ।

जीवधारियों के लक्षण निम्नलिखित हैं ; 

( 1 ). जीवन – चक्र ( Life – cycle )  

सभी जीव जन्तु एक निश्चित जीवन – चक्र से होकर गुजरते हैं । जैसे कि , जन्म होता है , वे बड़े होते हैं , प्रजनन करते हैं , बच्चे को जन्म देते हैं और कुछ समय बाद वृद्धावस्था को प्राप्त करते हैं और अन्त में उनकी मृत्यु हो जाती है । इसलिए सभी जीवों में क्रमबद्ध तरीके से विभिन्न क्रियाएँ होती हैं । 

( 2 ). जीवद्रव्य ( Protoplasm ) 

जीवधारियों में जीवित पदार्थ ‘ जीवद्रव्य ‘ जीवधारियों की भौतिक आधारशिला है  ( physical basis of life ) । जीवद्रव्य में सभी जैविक क्रियाएँ होती हैं । जैसे कि , रासायनिक व भौतिक परिवर्तन और जीवद्रव्य व वातावरण के बीच आदान – प्रदान की क्रियाएँ । जीवद्रव्य एक जटिल क्रिस्टलीय कोलॉइडी तन्त्र है । प्रोटीन और अन्य रासायनिक पदार्थ एक विशेष अनुपात के रूप में मिलकर जीवद्रव्य का निर्माण करते हैं । 

( 3 ). कोशिका – संरचना ( Cell Structure ) 

कोशिका , जीवधारियों की संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई है । जीवधारी एक या एक से अधिक संरचनात्मक इकाइयों से बने होते हैं जिसे कोशिका ( cell ) कहते हैं । पौधों और जन्तुओं की सभी कोशिकाओं में ‘ जीवद्रव्य ‘ कोशिका कला द्वारा घिरा रहता है । पौधों में इसके अलावा कोशिका कला के बाहर एक निर्जीव कोशिका – भित्ति भी होती है । 

( 4 ). उपापचय ( Metabolism ) 

सभी जीवधारियों में हर समय अनेक रासायनिक व भौतिक परिवर्तन होते रहते हैं । इनमें उपचयी क्रियाएँ रचनात्मक होती हैं और सरल पदार्थों से जटिल पदार्थ बनते हैं जो जीवद्रव्य के घटक होते हैं । इसके विपरीत अपचयी क्रियाएँ विघटनात्मक होती हैं और जटिल पदार्थों के विघटन से सरल पदार्थ बनते हैं । उपचयी और अपचयी क्रियाओं के मिले सम्पूर्ण रूप को उपापचय कहते हैं । 

( 5 ). श्वसन ( Respiration ) 

श्वसन क्रिया एक अपचयी क्रिया है । जीवों में श्वसन हर समय होता रहता है । इस प्रक्रिया में जीव वायुमण्डल से ऑक्सीजन ( O ) लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड ( CO2 ) बाहर निकालते हैं । जिससे कोशिका में स्थित कार्बोहाइड्रेट , वसा एवं प्रोटीन का ऑक्सीकरण होता है और ऊर्जा मुक्त होती है । इस मुक्त ऊर्जा से ही जीवधारियों की सभी जैविक – क्रियाएँ संचालित होती हैं । 

( 6 ). पोषण ( Nutrition ) 

जीवधारियों में वृद्धि एवं विकास के लिए और जीवद्रव्य के निर्माण के लिए भोजन की जरूरत होती है । इसके लिए हरे पौधे पृथ्वी से जल , खनिज पदार्थ और वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड ( CO2 ) लेकर पर्णहरिम की सहायता से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में विभिन्न प्रकार के कार्बोहाइड्रेट , वसा एवं प्रोटीन बनाते हैं । जन्तु इन्हें पौधों द्वारा प्राप्त करते हैं । 

( 7 ). वृद्धि ( Growth ) 

जीवधारीयों में आकृति , आयतन और शुष्क भार के बढ़ने को वृद्धि कहते हैं । पौधों में वृद्धि अनिश्चित समय तक विभज्योतकी कोशिकाओं द्वारा हमेशा होती रहती है , जबकि जन्तुओं में एक विशेष अवस्था आने पर रुक जाती है । 

Note सूखी लकड़ी का टुकड़ा वर्षा ऋतु में जल को अवशोषित कर आकार , आयतन और भार में बढ़ सकता है , लेकिन इसको वृद्धि नहीं कह सकते हैं । क्योंकि यह सूखने पर अपनी पहली स्थिति में आ जाता है । 

( 8 ). प्रजनन ( Reproduction ) 

जीवधारी प्रजनन क्रिया के द्वारा अपने ही जैसा जीव पैदा कर सकते है , लेकिन निर्जीव वस्तुएं ऐसा नहीं कर सकते हैं । 

( 9 ). गति ( Movement ) 

जीवधारियों में गति होता है और यह इसका मुख्य लक्षण है । एक कोशिका के अन्दर जीवद्रव्य भ्रमण सम्पूर्ण पौधे का , जैसे — क्लैमिडोमोनास या पौधे के एक स्वतन्त्र भाग , जैसे — युग्मक या चलवीजाणु का एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना गति कहलाता है । 

Note जन्तु , भोजन या अनुकूल वातावरण की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं । और पौधों में उनके शरीर का कोई भाग , जैसे कि — जड़ या तना एक ओर मुड़ जाता है ।

( 10 ). संवेदनशीलता ( Sensitivity ) 

जीव जहाँ पर भी रहते हैं वे अपने वातावरण में निरन्तर होने वाले परिवर्तनों का अनुभव करते हैं वह संवेदनशीलता कहलाता है ।

( 11 ). अनुकूलनशीलता ( Adaptability )

जीव वातावरण में निरन्तर होने वाले परिवर्तनों के अनुसार वे अपनी संरचना और क्रियाओं में परिवर्तन करते हैं वह अनुकूलनशीलता कहलाता है । 

( 12 ). उत्सर्जन ( Excretion ) 

सभी जीवधारियों में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप जल ( H2O ) और कार्बन डाइऑक्साइड ( CO2 ) ही नहीं बल्कि अन्य अनेक प्रकार के अनावश्यक एवं हानिकारक पदार्थ भी बनते हैं । और इन हानिकारक पदार्थों को जीवधारी हमेशा अपने शरीर से उत्सर्जन क्रिया द्वारा बाहर निकालते रहते हैं ।

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — जीवधारियों के लक्षण क्या है? ( Jeevadhaariyon ke lakshan kya hai ) आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद्…]

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