You are currently viewing छोटी आँत के कार्य? ( Chhotee aant ke kaary )

छोटी आँत के कार्य? ( Chhotee aant ke kaary )

  • Post author:
  • Post category:Science
  • Reading time:2 mins read

छोटी आँत के कार्य ( Functions of the small intestine ) 

छोटी आँत के कार्य भोजन का पाचन और पचे हुए पदार्थों का अवशोषण मुख्यतः छोटी आँत में ही होता है और इसके लिए छोटी आँत ठीक प्रकार से उपयोजित होती है । और यह खुद बहुत लम्बी होती है । इसकी दीवार के भीतरी वृत्ताकार भंजों ( plicae circulares ) , श्लेष्मिका के रसांकुरों ( villi ) तथा श्लेष्मिक कला की कोशिकाओं के सूक्ष्मांकुरों ( microvilli ) के कारण , भीतरी सतह लगभग 600 गुना बढ़ी हुई होती है । इसीलिए , इस सतह का कुल क्षेत्रफल लगभग 250 वर्ग मीटर होता है । 

यान्त्रिक कार्य ( Mechanical Functions ) 

जैसे ही काइम की पहली खेप आमाशय से ग्रहणी में पहुँचती है , ग्रहणी की दीवार में क्रमाकुंचन ( peristalsis ) होने लगता है और क्रमाकुंचन की छल्लेदार तरंगें ( peristaltic waves ) पूरी आँत की दीवार में प्रवाहित होने लगती हैं । अतः पूरी आँत जपमाला की जैसे , मणिकाबद्ध ( beaded ) दिखाई देने लगती है । ये तरंगें काइम को आँत में आगे की ओर खिसकाती हैं । हर मिनट , लगभग 12 से 16 बार इन तरंगों में संकीर्णन ( constriction ) के बिन्दु बदलते रहते हैं ।

अतः काइम बार – बार छोटे – छोटे पिण्डों में अलग – अलग होकर आँत में स्रावित होने वाले पाचक रसों से ठीक प्रकार से मिल जाती है । इसीलिए क्रमाकुंचन के बीच – बीच में होने वाली इन तरंग-भंग गतियों को मिश्रण गतियाँ कहते हैं । क्रमाकुंचन छोटी आंत के समीप के भाग में अपेक्षाकृत तेज और दूर के भाग में कुछ धीमा होता है । आँत के क्रमाकुंचन तथा मिश्रण गतियों का नियमन स्थानीय प्रतिवर्ती ( local reflexes ) द्वारा होता है जो ग्रहणी की दीवार के प्रसार , काइम के सान्द्रण एवं pH तथा काइम में ऐमीनो अम्लों और प्रोटीन्स की मात्राओं पर निर्भर करते हैं । 

जैव-रासायनिक कार्य ( Biochemical Functions ) 

छोटी आंत में पहुंचने वाली काइम में कुछ नहीं पचे हुए कार्बोहाइड्रेट्स , वसा तथा प्रोटीन्स होती हैं , लेकिन भोजन के सभी पोषक पदार्थों का पूरा पाचन छोटी आंत में ही होता है । 

पूरे पाचन क्रिया में तीन पाचक रसों की मुख्य भूमिकाएँ होती हैं — अग्न्याशयी रस ( pancreatic juice ) , पित्त ( bile ) तथा आन्त्रीय रस ( intestinal juice ) । 

काइम के ग्रहणी में पहुँचने पर ग्रहणी में सबसे पहले अतिरिक्त अग्न्याशयी नलिका द्वारा लाया गया अग्न्याशयी रस मुक्त होता है । इसके बाद ग्रहणी में यकृत – अग्न्याशयी तुम्बिका ( hepatopancreatic ampulla ) से पित्त एवं अग्न्याशयी रस साथ – साथ मुक्त होते हैं । जल्द ही आन्त्रीय ग्रन्थियों द्वारा स्रावित आन्त्रीय रस भी आँत की गुहा में मुक्त होने लगता है ।

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — छोटी आँत के कार्य? , यान्त्रिक कार्य , जैव-रासायनिक कार्य आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद् ]

Read More—