You are currently viewing छोटी आंत की संरचना? ( Chhotee aant kee sanrachana )

छोटी आंत की संरचना? ( Chhotee aant kee sanrachana )

  • Post author:
  • Post category:Science
  • Reading time:3 mins read

छोटी आंत की संरचना ( Structure of small intestine ) 

छोटी आंत की संरचना आहारनाल का आमाशय से गुदा तक फैला भाग आँत ( intestine ) कहलाता है । हमारी आँत लगभग 8 मीटर लम्बी और 2 प्रमुख भागों में विभाजित नलिका होती है — छोटी आँत या क्षुद्रान्त्र तथा बड़ी आँत । 

छोटी आँत उदरगुहा के अधिकांश भाग को घेरे , लगभग 6.5 मीटर लम्बी और लगभग 3.5 सेमी मोटी , अत्यधिक कुण्डलित नलिका होती है । इसमें ऊपर से नीचे की ओर तीन भाग होते हैं — ग्रहणी , मध्यान्त्र एवं शेषान्त्र । 

( i ). ग्रहणी ( Duodenum ) :छोटी आंत का , लगभग 30 सेमी लम्बा , अपेक्षाकृत कुछ मोटा और अकुण्डलित प्रारम्भिक भाग होता है , जो पाइलोरस से प्रारम्भ होकर ‘ C ‘ की आकृति बनाता हुआ बाईं ओर को मुड़ा रहता है । इसकी भुजाओं के बीच में , आंत्रयोजनी यानी मीसेण्ट्री द्वारा सधा , गुलाबी – सा अग्न्याशय ( pancreas ) होता है । नीचे की ओर अपने दूरस्थ छोर पर ग्रहणी मध्यान्त्र में खुल जाती है । छोटी आंत का शेष भाग अत्यधिक कुण्डलित होता है ।   

( ii ). मध्यान्त्र ( Jejunum ) : यह लगभग 2.6 मीटर लम्बी होती है ।

( iii ). शेषान्त्र ( Ileum ) : यह अपेक्षाकृत कुछ कम मोटी और 3.6 मीटर लम्बी होती है । 

छोटी आंत की ऊतकीय संरचना ( Histological Structure of Small Intestine ) 

छोटी आंत की दीवार अपेक्षाकृत काफी पतली होती है । इस पर भी लस्य स्तर ( serosa ) का आवरण होता है जिसमें बाहर पेरिटोनियल मीसोथीलियम तथा इसके नीचे अन्तराली संयोजी ऊतक का स्तर होता है । बाह्य पेशीय स्तरों में अरेखित पेशी तन्तु ही होते हैं । इनमें भीतरी वर्तुल पेशी स्तर अधिक विकसित होता है । श्लेष्मिक पेशी स्तर बहुत कम विकसित होता है । श्लेष्मिका तथा अधःश्लेष्मिका के अनेक वृत्ताकार ( circular ) भंज ( folds ) गुहा में उभरे होते हैं । इन्हें अग्रस्पर्शी कपाटिकाएँ कहते हैं । इसके अतिरिक्त , पूरी भीतरी सतह पर श्लेष्मिका के असंख्य ( 40 से 50 लाख ) छोटे – छोटे अंगुलीनुमा उभार होते हैं । जिन्हें रसांकुर ( villi ) कहते हैं ।

छोटी आंत की संरचना
( A ). छोटी आँत की दीवार की रचना ( B ). रसांकुरों का रेखाचित्र

श्लेष्णिका के प्रति वर्ग मिलीमीटर क्षेत्र में अनुमानतः 20 से 40 रसांकुर होते हैं । इनके कारण छोटी आँत की भीतरी सतह मखमली – सी दिखाई देती है । ये ग्रहणी एवं मध्यान्त्र में अपेक्षाकृत बड़े और अधिक होते हैं । प्रत्येक रसांकुर में , श्लेष्मिक कला से घिरा आधार पटल का ऊतक भरा होता है जिसमें आक्षीरवाहिनी या लैक्टियल ( lacteal ) नाम की प्रायः एक ही मोटी लसिकावाहिनी ( lymph vessel ) , रुधिर केशिकाओं का जाल और कुछ अरेखित पेशी तन्तु होते हैं । आन्वीय श्लेष्मिक कला स्तम्भी कोशिकाओं की इकहरी एपिथीलियम होती है । इसकी कोशिकाएँ मुख्यतः अवशोषी होती हैं । अतः इनकी स्वतन्त्र सतह भी , सूक्ष्मरसांकुरों ( microvilli ) से युक्त , ब्रुश – सदृश ( brush border ) होती है । अग्रस्पर्शी कपाटिकाएँ , रसांकुर तथा सूक्ष्मरसांकुर मिलकर छोटी आंत के अवशोषण तल को लगभग 600 गुना बढ़ा देते हैं ।

छोटी आंत की संरचना
एक रसांकुर का परिवर्धित रेखाचित्र और आंत्रीय ग्रंथियों की विविध प्रकार की कोशिकाएँ

अनुमानतः पूरे अवशोषण तल का क्षेत्रफल एक टेनिस के मैदान के बराबर होता है । रसांकुरों के बीच – बीच में श्लेष्मिक कला के भंज ( folds ) आधार पटल ( larmina propria ) में भीतर घुसकर नालवत् आन्वीय ग्रन्थियाँ ( intestinal glands ) बनाते हैं जिन्हें लीबरकुहन की दरारें ( crypts of Lieberkuhn ) कहते हैं । इन ग्रन्थियों के बन्द छोरों पर की एपिथीलियमी कोशिकाएँ जीवनभर समसूत्रण यानी माइटोसिस द्वारा विभाजित होती रहती हैं । इन्हें वंश कोशिकाएँ ( stem cells ) कहते हैं । इनके विभाजन के फलस्वरूप बनी नई कोशिकाएँ अन्य प्रकार की कोशिकाओं में विभेदित होती रहती हैं जो रसांकुरों के शिखर पर पहुँचकर एपिथीलियम से पृथक हो – होकर समाप्त होती रहती हैं । 

ये कोशिकाएँ निम्नलिखित चार प्रकार की होती हैं ;

( 1 ). जाइमोजीनिक या पैनेय की कोशिकाएँ ( Zymogenic Cells or Cells of Paneth ) 

ये ग्रन्थियों के भीतरी शिखर भाग में वंश कोशिकाओं के निकट होती हैं । ये लाइसोजाइम ( lysozyme ) नामक एन्जाइम का स्रावण करती हैं जो जीवाणुओं ( bacteria ) को नष्ट करता है । इनमें जीवाणु भक्षण ( phagocytosis ) की भी क्षमता होती है । 

( 2 ). एन्टीरोएण्डोक्राइन कोशिकाएँ ( Enteroendocrine Cells ) 

ये ग्रन्थियों की अन्य कोशिकाओं के बीच – बीच में कहीं – कहीं होती हैं और उन हॉरमोन्स का स्रावण करती हैं जो आन्त्रीय दीवार के क्रमाकुंचन अर्थात् तरंगगतियों तथा एपिथीलियमी कोशिकाओं की स्रावण क्रिया का नियन्त्रण करते हैं । 

( 3 ). चषक कोशिकाएँ ( Goblet Cells ) 

ये भी ग्रन्थियों तथा रसांकुरों की एपिथीलियमी कोशिकाओं के बीच – बीच में होती हैं और श्लेष्म ( mucus ) का स्रावण करती हैं । श्लेष्म पूरी एपिथीलियम पर फैला रहता है और इसे पाचक एन्जाइमों के प्रभाव से बचाता है । 

( 4 ). अवशोषी कोशिकाएँ या एन्टीरो साइट्स ( Absorptive Cells or Entero eytes ) 

ग्रन्थियों तथा रसांकुरों की अधिकांश कोशिकाएँ अवशोषी होती हैं । ये पाचक एन्जाइमों का स्रावण करती हैं तथा पचे हुए इनकी स्वतन्त्र सतह पर घने सूक्ष्मरसांकुर ( microvilli ) होते हैं । आन्त्रीय श्लेष्मिक पोषक पदार्थों का अवशोषण ( absorption ) । एपिथीलियम के 1 वर्ग मिलीमीटर क्षेत्र में अनुमानतः 2 करोड़ सूक्ष्मरसांकुर होते हैं । आन्त्रीय ग्रन्थियों तथा रसांकुरों की कोशिकाओं द्वारा स्रावित पदार्थों का मिश्रण आन्त्रीय रस ( intestinal juice ) होता है । ग्रहणी में , आन्त्रीय ग्रन्थियों के अतिरिक्त , अधःश्लेष्मिका में स्थित , अनेक छोटी एवं शाखान्वित ब्रूनर की ग्रन्थियाँ ( Brunner’s glands ) भी होती हैं । इनकी महीन नलिकाएँ लीबरकुहन की दरारों में ही खुलती हैं । इनमें एपिथीलियमी कोशिकाओं के साथ केवल श्लेष्मिक कोशिकाएँ होती हैं जो श्लेष्म ( mucus ) का स्रावण करती हैं ।

पूरी छोटी आंत की श्लेष्मिका के आधार पटल में , आन्त्रीय ग्रन्थियों के बीच – बीच में , कहीं – कहीं पर पेयर के पिण्ड ( Peyer’s patches ) नाम की पीली – सी गोल या अण्डाकार लसिका ग्रन्थियाँ या गुंठियाँ ( lymph nodules ) होती हैं । इनमें घने तन्तुमय जाल में निलम्बित , अनेक लिम्फोसाइट ( lymphocyte ) नामक रुधिराणु होते हैं जो इन्हीं ग्रन्थियों में बनते हैं । लिम्फोसाइट्स समय – समय पर आन्त्रगुहा में मुक्त होकर हानिकारक जीवाणुओं आदि का भक्षण करके इन्हें नष्ट करते हैं ।

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — छोटी आंत की संरचना? , ऊतकीय संरचना आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद् ]

Read More—