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विविधता की संकल्पना ( Vividhata kee sankalpana )

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इस लेख में विविधता की संकल्पना ( Concept of diversity ) विषय से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी जैसे कि – विविधता की संकल्पना ( Vividhata kee sankalpana ) आदि । तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “

जीवों में विविधता की संकल्पना ( Concept of diversity in living beings ) 

अनेक प्रकार के जन्तुओं तथा विभिन्न प्रकार के पेड़ – पौधों को हम जानते और पहचानते हैं । जैसे कि — गाय , भैंस , कुत्ता , बिल्ली , बकरी , सूअर, चूहा , चमगादड़ , गिलहरी , चील , कौवा , कबूतर , मुर्गा , साँप , छिपकली , बन्दर , खटमल , जूएँ , मच्छर , तितली , कनखजूरा , बिच्छू , मकड़ी , कीड़े – मकोड़े , आदि । लेकिन हमारे इस ज्ञान से कहीं अधिक जीव – जगत् विषम और विशाल है । 

आज पृथ्वी पर रहने वाले जीवों की पूरी संख्या का अनुमान तो नहीं लगा सकते हैं । लेकिन वैज्ञानिक इनकी लगभग 20 लाख से भी अधिक विभिन्न किस्मों के जीवों का पता जरूर लगा चुके हैं । जिसमें लगभग 15 लाख जन्तुओं की तथा 5 लाख वनस्पतियों की संख्या है । और हर साल लगभग 10,000 नई किस्म के जीवों का पता लगा लेते हैं । 

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि , आज के समय पृथ्वी पर सही मायने में लगभग 3 करोड़ किस्म के जीव हैं । इसके अलावा चट्टानों से मिले जीवाश्मों से यह पता चलता है कि पृथ्वी के इतिहास में इस पृथ्वी पर कई करोड़ किस्म के जीवों की उत्पत्ति और विलुप्ति हो चुकी है ।

जीवों की प्रत्येक किस्म को एक जीव – जाति ( species ) कहते हैं । इसकी बहुत बड़ी संख्या से जीव – जगत् के जैव – विविधता का पता चलता है । अधिकतर जातियों के सदस्य संख्या में अधिक है और कुछ जातियों के सदस्य संख्या में कम पाए जाते हैं । कुछ जीव – जातियों के सदस्य भूमि पर ( lerrestrial ) , कुछ जीव – जातियों के सदस्य समुद्र ( marine ) में , कुछ जीव – जातियों के सदस्य नदियों , तालाबों , झीलों , आदि के अलवणीय जल ( freshwater ) में रहते हैं । कुछ जीव – जातियों के सदस्य अन्य जन्तुओं एवं पेड़ – पौधों के शरीर में वास करने वाले परजीवी होते हैं । 

कुछ जीव – जातियों के सदस्य पेड़ – पौधों पर वास करने वाले वृक्षवासी होते हैं और कुछ हवा में भी उड़ते हैं । समुद्री जीव समुद्र के तल पर स्थानबद्ध जीवन व्यतीत करने वाले बेंथिक होते हैं । और इसके जल में मुक्त जीवन व्यतीत करने बाले पिलैजिक होते हैं । वे पिलैजिक जीव जो तट के निकटवर्ती भागों के जल में रहते हैं जहाँ समुद्र की गहराई लगभग 200 मीटर तक होती है वे नेरीटिक कहलाते हैं । अन्य पिलैजिक जीव जो तट से दूर 200 मीटर से अधिक गहरे भागों के जल में रहते हैं महासागरीय कहलाते हैं । 

अन्य महासागरीय जीव समुद्र की गहराई के अनुसार , ऊपर से नीचे की ओर क्रमशः अधिपिलैजिक , मध्यपिलैजिक , मज्जीपिलैजिक तथा गर्तपिलैजिक होते हैं । समुद्रतट के अन्तराज्वारीय क्षेत्रों के वासी लिट्टोरल जीव कहलाते हैं । कुछ समुद्री मछलियाँ जो जनन के लिए समुद्र से समुद्र में गिरने वाली नदियों के मुहानों में चढ़ती हैं , समुद्रापगामी कहलाती हैं । कुछ अलवणजलीय मछलियाँ जो जनन के लिए नदियों के मुहानों से समुद्र में जाती हैं समुद्राभिगामी या अधोगामी कहलाती हैं । समुद्री या अलवणीय जल में निष्क्रिय उतराने वाले जीव प्लैंक्टोनिक कहलाते हैं । और समुद्री या अलवणीय जल में सक्रिय तैरने वाले जीव नेक्टोनिक कहलाते हैं । 

अलवणीय जल के जीव स्थिर जलाशयों जैसे कि , झीलों , तालाबों , आदि  के वासी लेन्टिक कहलाते हैं । और बहती हुई नदियों , सरिताओं , आदि के वासी लोटिक कहलाते हैं । भूमिगत जीव जंगलों , रेगिस्तानों , पहाड़ी क्षेत्रों , घासीय मैदानों , दलदलीय क्षेत्रों , आदि के वासी होते हैं । कुछ जीव भूमि पर रहने वाले और कुछ बिलों में रहने वाले होते हैं । कुछ जीव – जातियाँ दुनियां भर में और कुछ सीमित भागों में फैली होती हैं । कुछ रचना में सरल होती हैं तो कुछ जटिल होती हैं । 

इसी प्रकार , विभिन्न जातियों के बीच माप , आकृति , भार , रंग , सममिति , रचना , शरीर – संघठन , भोजन व भोजन – ग्रहण , जनन , वृद्धि , जीवनकाल , स्वभाव , आदि अनेक लक्षणों में विभिन्नताएं पाई जाती हैं । 

जीवों की विभिन्न किस्मों के विभिन्नताओं तथा इनके उद्विकासीय जातिवृत्तीय सम्बन्धों के अध्ययन के लिए सिम्पसन ( 1961 ) ने ” सिस्टेमैटिक्स या क्लैडिस्टिकस “ के नाम से , जीव – विज्ञान की एक अलग शाखा ( branch ) का मत दिया था ।

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — विविधता की संकल्पना ( Vividhata kee sankalpana ) आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद्…]

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