You are currently viewing लार और इसके उपयोगिता? ( laar aur isake upayogita )

लार और इसके उपयोगिता? ( laar aur isake upayogita )

  • Post author:
  • Post category:Science
  • Reading time:2 mins read

लार और इसके उपयोगिता? ( Saliva and its Importance )

लार और इसके उपयोगिता — मुखगुहा की श्लेष्मिका ( mucosa ) में उपस्थित मुख – ग्रन्थियाँ ( buccal glands ) तथा जिह्वा की श्लेष्मिका में उपस्थित जिह्वा ग्रन्थियाँ मुखगुहा में थोड़ी – थोड़ी करके लार का हर समय स्रावण करती रहती हैं , लेकिन गुहा में भोजन के पहुंचते ही , स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के नियन्त्रण में , गुहा के बाहर स्थित प्रमुख बहुकोशिकीय लार ग्रन्थियों द्वारा स्रावित बहुत – सी लार गुहा में आने लगती है । मुख्यतः स्वादिष्ट भोजन को देखने और इसकी सुगन्ध से ही लार का स्रावण बढ़ जाता है । सामान्यतः दिनभर में 1 से 1.5 लीटर लार हमारी मुखगुहा में रिसकर आती है । लार हल्की अम्लीय ( acidic pH – 6.8 ) होती है । इसमें लगभग 99.5 % जल होता है । शेष भाग में जल में घुले कई प्रकार के विलेय पदार्थ ( solutes ) होते हैं । इन पदार्थों में कुछ आयन ( Cal , Na , K , CI ) आदि घुली हुई गैसें , एन्जाइम्स , यूरिया , म्यूसिन ( mucin ) आदि होते हैं । म्यूसिन के कारण ही लार लसदार यानी श्लेष्मीय ( mucilaginous ) होती है ।

मुखगुहा में लार की उपयोगिता ( Use of saliva in the buccal cavity )

मुखगुहा में लार निम्नलिखित उपयोगिता होती है ;

( 1 ). यह हमारे होंठों , मुखगुहा तथा जीभ को नम और लसदार बनाए रखती है जिससे हमें बोलने में सुविधा होती है ।

( 2 ). यह भोजन के निवाले को लसदार बनाती है ताकि जीभ इसे चबाने के लिए बार – बार दाँतों के बीच ला सके ।

( 3 ). जब भोजन के छोटे , सरल अणु लार के जल में घुलते हैं तभी जीभ की स्वाद कलिकाएँ ( taste buds ) हमें भोजन सामग्री के स्वाद का ज्ञान कराती हैं ।

( 4 ). विभिन्न प्रकार के जीवाणु ( bacteria ) हवा या भोजन के साथ हमारी मुखगुहा में हमेशा पहुँचते रहते हैं । लार में उपस्थित थायोसायनेट के आयन ( thiocyanate ions ) तथा लाइसोजाइम ( lysozyme ) नामक एन्जाइम इन जीवाणुओं को नष्ट करके गुहा की श्लेष्मिका तथा मसूड़ों की सुरक्षा करते हैं । कुत्ते तथा कई प्रकार के अन्य जीव – जन्तु अपनी त्वचा के घावों को जीभ से चाट – चाटकर इन्ही पदार्थों के कारण ठीक कर लेते हैं ।

( 5 ). यदि भोजन में कोई ऐसा उत्तेजक ( irritating ) पदार्थ होता है जिससे मितली ( nausea ) होने का अंदेशा हो जाता है , तो लार इस पदार्थ को घोलकर इतना तनु ( dilute ) कर देती है कि इसका प्रभाव तुरन्त ही समाप्त हो जाता है ।

( 6 ). भोजन की लसदार लुगदी बनने पर ही इसे छोटे – छोटे पिण्डों या निवालों ( food boluses ) के रूप में निगला जा सकता है ।

( 7 ). लार में उपस्थित बाइकार्बोनेट तथा फॉस्फेट आयन भोजन की अधिक अम्लीयता या क्षारीयता को निष्प्रभावी करके अम्ल – क्षारीय सन्तुलन ( acid – base balance ) स्थापित करते हैं । इससे दाँतों का क्षय रुक जाता है ।

( 8 ). मुख – र -ग्रंथियों तथा प्रमुख लार ग्रंथियों द्वारा स्रावित लार में टायलिन ( ptyalin ) नामक मण्ड – पाचक एन्जाइम ( लारीय ऐमाइलेज- salivary amylase ) होता है जो भोजन की कुछ ( 3 से 5 % ) मण्ड को माल्टोस ( maltose ) में तोड़ता है । मण्डयुक्त भोजन को चबाते – चबाते , मीठे स्वाद का अनुभव हमें इसीलिए होता है । इसके अलावा , लार के जिह्वा ग्रंथियों द्वारा स्रावित अंश में जिह्वा लाइपेज ( lingual lipase ) नामक एन्जाइम भी होता है जो भोजन में मौजूद वसा का वसीय अम्लों तथा मोनोग्लिसराइड्स में तोड़ना शुरू करता है ।

( 9 ). निवाले को निगलने के बाद भी कुछ समय तक लार का स्रावण अधिक मात्रा में होता रहता है । इससे गुहा तथा दाँतों के बीच इधर – उधर फँसे भोजन के कण लार के साथ ग्रसनी में चले जाते हैं और इस प्रकार गुहा की सफाई होती रहती है ।

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख लार और इसके उपयोगिता में दी गयी सभी जानकारी आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद् ]

Read More—