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पादप जगत क्या है? परिभाषा ( Paadap jagat kya hai )

इस लेख में पादप जगत ( Plant kingdim ) विषय से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी जैसे कि – पादप जगत क्या है? ( Paadap jagat kya hai ) कुछ विशेष पेड़ पौधे एवं इसके प्रकार आदि । तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “

विषय सूची

पादप जगत क्या है? ( What is the plant kingdim )

परिभाषा ( Definition ) — पादप जगत में वनस्पतियों ( पौधों ) के विषय में पढ़ा जाता है । थियोफ्रेस्टस को वनस्पति विज्ञान का जनक कहा जाता है । पौधे हमारे पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं । अगर पौधे न हो तो हमारा पर्यावरण सजीव रहित हो जाएगा । पर्यावरण में कुछ भी नहीं बचेगा क्योंकि पौधे जन्तुओं एवं विषम पोषी ( heterecious ) पौधों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में भोजन प्रदान करते हैं । 

पादप जगत में पौधों के प्रकार ( Types of plants )

आकार के आधार पर पौधे तीन प्रकार के होते हैं ;

( 1 ). शाक ( Herb )

ये छोटे होते हैं इनका तना कोमल एवं हरे रंग का होता है । इनमें बहुत – सारी शाखाएँ ( टहनियाँ ) नहीं होती हैं । उदाहरण : धनिया , गेहूँ , धान , मेथी , पालक आदि । 

( 2 ). झाड़ी ( Bush )

ये शाक से बड़े होते हैं इनका तना कठोर होता है लेकिन ज्यादा मोटा नहीं होता है । इनमें कई सारी शाखाएँ होती हैं , जो तने के आधार के पास से निकलती हैं । उदाहरण : गुलाब , नींबू , गुड़हल आदि । 

( 3 ). वृक्ष ( Tree )

ये झाड़ी से बड़े होते हैं इसका तना मोटा और गहरे भूरे रंग का होता है । इसमें कई शाखाएँ होती हैं , जो तने के ऊपरी भाग से निकलती हैं । उदाहरण : आम , अमरूद , जामुन , नीम , कीकर , पीपल आदि । इसके अलावा , वे पौधे जो बहुत कमजोर होते हैं और सीधे खड़े नहीं हो सकते , उन्हें दो भागों में विभाजित किया गया है , जो निम्न हैं : 

  • विसर्पी लता ( Creepy creeper )
    ये पौधे जमीन पर फैल जाते हैं । उदाहरण : पुदीना , तरबूज , खरबूज , खीरा आदि । 
  • आरोही लता ( Ascending creeper )
    ये किसी ढाँचे की सहायता से ऊपर चढ़ जाते हैं । उदाहरण : मनी प्लाँट , मटर आदि ।

पौधों के भाग ( Plant parts )

लगभग सभी पौधों में जड़ , तना , पत्ती एवं फूल पाये जाते हैं । शैवाल ( काई ) में ये चीजें दिखाई नहीं देती हैं । 

( 1 ). जड़ ( The root )

यह पौधे का भूमिगत भाग है जो हरे रंग का नहीं होता है । 

जड़ के कार्य ( Root function )

यह पौधों को जमीन में जकड़ कर रखती है । जड़ मिट्टी में मौजूद जल एवं खनिज पदार्थों को अवशोषित करती है । कुछ जड़ें भोजन एकत्रित करती हैं । 

जड़ के प्रकार ( Root type )

जड़ें मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं ;

( a ). मूसला जड़ें ( Tap roots ) : मटर , चना , सरसों , तुलसी , जामुन , आम आदि पौधों में पाई जाती हैं । 

  • मूसला जड़ें जो हम खाते हैं – मूली , गाजर , शलगम , शकरकन्द , टैपियोका , चुकन्दर आदि । 

( b ). झकड़ा जड़ें ( Shackle roots ) : गेहूँ , घास , केला , मक्का , गन्ना आदि पौधों में पाई जाती हैं । 

झकड़ा जड़ें निम्नलिखित प्रकार की होती हैं ;

  1. रेशेदार ( Fibrous ) : ये जड़ें रेशे के रूप में होती हैं । उदाहरण : प्याज , लहसुन ।
  2. परजीवी ( Parasite ) : ये जड़ें दूसरे पौधों के उपर रहती हैं । उदाहरण : अमर बेल ।
  3. अवस्तम्भ ( Finally ) : ये जड़ें भूमि के ऊपर तने से निकलती हैं । उदाहरण : बाजरा , मक्का , गना ।
  4. स्तम्भ ( Column ) : ये जड़ें टहनियों ( शाखाओं ) से निकलती हैं और खम्भों की तरह होती हैं । उदाहरण : बरगद ।

( 2 ). तना ( The stem )

तना पौधे का वह भाग है जो जड़ द्वारा अवशोषित , जल और खनिज पदार्थों को पत्तियों और पौधों के अन्य भागों तक पहुँचाता है । तने से पत्तियाँ और टहनियाँ ( शाखाएं ) निकलती है । कुछ पौधों के तने जमीन के नीचे होते हैं , जिनको हम खाते हैं । जैसे कि – आलू , प्याज , अदरक , लहसुन , हल्दी । तना हरा या भूरे रंग का होता है ।

( 3 ). पत्तियाँ ( The leaves )

पत्तियाँ , तने और टहनियों से निकलती हैं । अलग – अलग पौधों की पत्तियां अलग – अलग होती है । जैसे कि – कमल की पत्तियाँ गोल होती हैं , मक्के की पत्तियाँ लम्बी होती है , पीपल की पत्तियाँ पान जैसी दिखती हैं , नीम की पत्ती में कई सारी छोटी – छोटी पत्तियाँ होती हैं । चीड़ की पत्तियाँ सुईं जैसी होती है । गुलाब की पत्तियां धारीदार होती हैं , आदि । पत्तियाँ मुख्य रूप से हरे रंग की होती हैं क्योंकि उनमें क्लोरोफिल होता है । परन्तु कुछ पौधों की पत्तियाँ लाल , बैंगनी या पीले रंग की भी होती हैं । 

पत्तियों के कार्य ( Functions of leaves )

पत्तियों से जल वाष्प के रूप में निकलता है , जिसे वाष्पोत्सर्जन कहा जाता है । पत्तियों के द्वारा गैसों का आदान – प्रदान होता है । क्योंकि पत्तियों में छोटे – छोटे छिद्र पाये जाते हैं जिन्हें रन्ध्र कहते हैं । पत्तियों में क्लोरोफिल नाम का एक वर्णक पाया जाता है । जो सूरज की रोशनी , जल एवं कार्बन – डाइ – ऑक्साइड गैस की मदद से भोजन का निर्माण करता है । पौधों के द्वारा भोजन बनाने की प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है । 

नोट : प्रकाश संश्लेषण लाल रंग में सबसे अधिक एवं बैंगनी रंग में सबसे कम होता है । 
  • इस प्रक्रिया में जल का ऑक्सीकरण एवं NADP ( Nicotinamide adenine dinucleotide phosphate ) का अपचयन होता है । 
  • कैक्टस ( नागफनी ) पौधे में प्रकाश संश्लेषण उसके हरे तने में होता है क्योंकि पत्तियाँ काँटों का रूप ले लेती हैं । 
  • कुछ पौधों में पत्तियाँ घड़े के रूप में रूपांतरित हो जाती हैं । जैसे कि – नीपेन्थिस ।
  • पत्तियों की खुशबू ( महक ) से पता चल जाता है कि वे किस पौधे की पत्तियां हैं , जैसे – पुदीना , धनिया , आम , नीम , नींबू आदि । 

शिरा और शिरा विन्यास ( Vein and Vein Configuration )

पत्तियों के ऊपर जो रेखाएँ दिखाई देती हैं उन्हें शिरा कहा जाता है और शिराओं की व्यवस्था या सजावट शिरा विन्यास कहलाती है । 

शिरा विन्यास के प्रकार ( Types of vain configuration )

इसके आधार पर , हम पौधे की जड़ का पता लगा सकते हैं । 

शिरा विन्यास दो प्रकार की होती हैं

( 1 ). जालिका शिरा विन्यास ( Endoplasmic reticulum )

इसमें शिराएं एक जाल के रूप में होती है । जिन पौधों की पत्तियों में जालिका शिरा विन्यास होता है , उन पौधों की जड़ें मूसला होती हैं , जैसे – नीम , पीपल , गुलाब , मूली आदि ।

( 2 ). समानांतर शिरा विन्यास ( Parallel vein configuration ) 

इसमें शिराएं एक – दूसरे के समानांतर होती हैं । जिन पौधों की पत्तियों में समानांतर शिरा – विन्यास होता है , उनकी जड़ें झकड़ा होती हैं , जैसे – केला , गेहूँ , मक्का , घास आदि । 

शिरा – विन्यास के आधार पर , हम पौधों के बीजों के विषय में यह पता लगा सकते हैं । कि बीज दो भागों में टूट जाएगा या नहीं । यानि बीज द्विबीज पत्री है या एक – बीजपत्री । 

( 1 ). अगर शिरा विन्यास ‘ जालिका रूपी ‘ है तो पौधा द्विबीज पत्री हैं । जैसे कि – चना , मूली , गाजर , भिंडी , नींबू आदि ।
( 2 ). अगर शिरा – विन्यास ‘ समानांतर ‘ है तो पौधा एक बीज पत्री है । जैसे कि – मक्का , गेहूँ , प्याज , लहसुन आदि । 

( 4 ). फूल ( पुष्प ) ( flower )

फूल पौधों के प्रजनन अंग होते हैं । फूल नये पौधे बनाने में मदद करते हैं । 

फूलों के भाग ( Flower parts )

( 1 ). बाह्य दल पुंज ( External contingent ) : फूल के नीचे मौजूद हरी पत्तियों जैसी रचनाएँ बाहादल पुंज कहलाती हैं । बाह्य दल पुंज जुड़े हुए भी हो सकते हैं , जैसे कि – गुड़हल , कपास , टमाटर आदि । और अलग – अलग भी हो सकते हैं , जैसे कि – गुलाब , कमल , चमेली आदि । अगर बाह्यदल पुंज जुड़े हुए हों तो जरूरी नहीं कि उसकी पंखुड़ियाँ भी जुड़े हुए हों । ये कलियों की रक्षा करते हैं । 

( 2 ). दल पुंज / पंखुड़ियाँ ( Contingent ) : पंखुड़ियाँ रंगीन होती हैं । अलग – अलग पौधों के फूलों की पंखुड़ियाँ अलग – अलग रंग की होती हैं । पंखुड़ियाँ कीड़े – मकोड़े – तितली , भंवरों , पक्षियों आदि को आकर्षित करती हैं । 

( 3 ). पुंकेसर ( Stamens ) : ये पौधे का नर भाग होता है , जिसमें पराग या परागकण होते हैं । 

( 4 ). स्त्रीकेसर ( Pistil ) : ये पौधे का मादा भाग होता है , जिसमें अण्डाशय और वीजाण्ड पाये जाते हैं । परागण के तुरन्त बाद अण्डाशय फल बनता है और बीजाण्ड बीज बनते हैं । 

परागण ( Pollination )

जब तितली , पौरा , पक्षी आदि फूलों पर उनका रस ( पराग ) चूसने के लिए बैठते हैं तब उनके पैरों में परागकण चिपक जाते हैं । जब ये जन्तु दुबारा उसी फूल पर या उसी प्रकार के दूसरे फूलों पर बैठते हैं । तब परागकण स्त्रीकेसर में चले जाते हैं इस प्रक्रिया को परागण कहते हैं । और इस प्रक्रिया के द्वारा पौधे प्रजनन करते हैं । 

परागण के प्रकार ( Types of pollination )

परागण निम्न प्रकार के होते हैं । 

( i ). वायु परागण ( ऐनीमोफिलस् ) : वायु के द्वारा
( ii ). कोट परागण ( एनटोमोफिलस ) : कीटों के द्वारा
( iii ). जल परागण ( हाइड्रोफिलस् ) : जल के द्वारा
( iv ). जन्तु परागण ( जूफिलस ) : जन्तुओं के द्वारा
( v ). पक्षी परागण ( ऑरनियोफिलस् ) : पक्षियों के द्वारा .
( vi ). काइरोटेरिफिलस् : चमगादड़ के द्वारा
( vii ). मलाकोफिलस् : घोंघा के द्वारा 

कुछ फूल गुच्छों में पाये जाते हैं । जैसे कि – गुलदाउदी , गेंदा , सूरजमुखी आदि । 

नोट : सबसे बड़ा फूल रफ्लेसिया तथा सबसे छोटा फूल वूलफिया है । 

फूलों के उपयोग ( Use of flowers )

  • माला बनाई जाती है । 
  • दवाई बनाई जाती है , जैसे – गुलाब ।  
  • रंग बनाये जाते हैं , जैसे – गुलाब , गेंदा , जीनिया । 
  • इत्र बनते हैं जैसे – गुलाब , चमेली । 
  • फूलों को खाया जाता है , जैसे – कचनार , केला . सहजन , तुरई , कद्दू ( सीताफल ) । 
  • फूलों से लौंग , केसर भी मिलता है ।

( 5 ). फल ( The fruit )

फल फूलों के अण्डाशय भाग से बनते हैं । सेब , केला , नाशपाती , अमरूद , अनन्नास आदि फल हैं । टमाटर , कटहल , सीताफल , नींबू ये भी फल हैं । 

फल के तीन भाग होते हैं ;

  1. बाह्यफल भित्ति 
  2. मध्य फल भित्ति
  3. अंतः फल भित्ति । 

( 6 ). बीज ( Seed )

फूलों में पाये जाने वाले बीजाण्ड बीज बन जाते हैं । बीजों के अंकुरण के लिए दो आवश्यक तत्व हैं – नमी और वायु । बीजों के अन्दर घृण होता जो आवश्यक तत्व मिलने पर अंकुरित हो जाता है ।  बीज खाये जाते हैं , जैसे – दालें , मूंगफली , गेहूँ , चावल आदि । बीजों से तेल निकाला जाता है , जैसे – सूरजमुखी , सरसों आदि । 

बीज दो प्रकार के होते हैं ;

  1. एक बीज पत्री ( A cotyledon ) : जैसे : प्याज , गेहूँ , मक्का , चावल , नारियल आदि ।
  2. द्विबीज पत्री ( Dicotyledonous ) : जैसे : मूली , सरसों , इमली . संतरा , टमाटर आदि । 

नोट : पौधों में जाइलम और फ्लोएम नामक दो उत्तक पाये जाते हैं । जाइलम जल का संवहन करता है तथा फ्लोएम भोजन का संवहन करता है । 

पादप जगत में कुछ विशेष पौधे या पेड़ ( Some special plants or trees )

( 1 ). क्रोटन ( Croton )

यह पौधा यह बता देता है कि फसल को कब पानी चाहिए । जब इस पौधे के पत्ते मुरझाने लगते हैं । तब पता चल जाता कि फसल को पानी की जरूरत है । इस पौधे को मुख्य फसल के साथ बो दिया जाता है । और इसकी जड़ें जमीन में ज्यादा नीचे तक नहीं जाती हैं । 

( 2 ). पीपल ( Ficus religiosa )

यह एक विशाल पेड़ है । इस पेड़ की खासियत यह है कि यह चौबीस घंटे ऑक्सीजन देता है । • इस को बोधि – वृक्ष भी कहते हैं क्योंकि गौतम बुद्ध ने इस वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था । इस वृक्ष की पतियाँ हमेशा हिलती रहती है । 

( 3 ). बरगद ( Banyan )

यह एक बहुत बड़ा पेड़ है और इसके फैलाव बहुत अधिक होता है । इसके छत्र को सहारा देने के लिए इसकी शाखाओं से जड़ें निकलती हैं , जिन्हें खम्भा जड़ कहा जाता है । इस पेड़ में जमीन के अन्दर भी जड़ें होती हैं । 

( 4 ). केला ( Banana )

केला पेड़ नहीं है यह एक शाक है । क्योंकि इसका तना हरा एवं कमजोर होता है । इसके फल एवं फूल खाये जाते हैं । 

( 5 ). नीपेन्थिस या घटपर्णी ( Nepenthis )

यह एक कीट-भक्षी यानी कीड़े – मकोड़े को खाने वाला पौधा है । यह कीड़े – मकोड़े के अलावा मेढ़का , चूहों एवं छोटे जीवों को भी खा जाता है । इसमें प्रकाश – संश्लेषण होता है लेकिन नाइट्रोजन लेने के लिए यह कीड़े – मकोड़े एवं अन्य छोटे जीवों का शिकार करता है । यह लम्बे घड़े जैसा होता है , जिसके ऊपर पत्तीनुमा ढक्कन लगा होता है । इसमें से खास खुशबू निकलती है , जिससे कीड़े – मकोड़े इसकी ओर आकर्षित होकर इसके घड़े में फंस जाते हैं और इसका शिकार बन जाते हैं । यह मेघालय ( भारत ) , ऑस्ट्रेलिया एवं इंडोनेशिया में पाया जाता है । 

( 6 ). रेगिस्तानी ओक ( Desert oak )

यह ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तान में पाया जाता है । इस पेड़ की ऊँचाई लगभग 4 मीटर होती है । इसकी जड़ें बहुत गहरी होती हैं लेकिन पत्तियां बहुत कम होती हैं । इसकी जड़े वृक्ष की ऊँचाई के लगभग 30 गुनी गहराई तक चली जाती है । इसके तने में पानी जमा रहता है । जब इस क्षेत्र में पानी की कमी होती है तब यहाँ के निवासी इसके तने के अंदर पतला पाइप डाल कर पानी निकाल लेते हैं । 

( 7 ). खेजड़ी ( Kejri )

यह भारत के रेगिस्तान में पाया जाता है । इसकी लकड़ी में कीड़ा नहीं लगता । इसकी फलियों की सब्जी बनती है और इसकी छाल दवा के रूप में प्रयोग होती है । इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती । 

( 8 ). नीम ( Azadirachta indica )

यह एक पतझड़ वृक्ष है इसमें मूसला जड़ होती है । इसके फल को निंबोली कहते हैं । यह आयुर्वेद के अनुसार एक बहुत उपयोगी वृक्ष है । इसके उपयोग से रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है और कई बीमारियों में यह उपयोगी है । इसे जैविक कीटनाशक का उत्पादक माना जाता है । 

( 9 ). तुलसी ( Basil )

यह एक शाक है । भारतीय संस्कृति में इसको पूजनीय माना जाता है । इसके औषधीय गुणों के कारण इसको ‘ जड़ी – बूटियों की रानी ‘ कहते हैं । यह कैंसर , दंतरोग , श्वास सम्बन्धी रोग एवं सर्दी – जुकाम में अत्यंत फायदेमन्द होती है । 

पादप जगत में क्षेत्र के आधार पर पौधों के प्रकार ( Types of plants by region )

( 1 ). मरुदभिद ( Desert )

ये पौधे मरुस्थल ( रेगिस्तान ) जैसे क्षेत्रों में पाये जाते हैं । इसकी जड़ें लम्बी होती हैं । इनमें पत्तियां छोटी – छोटी होती हैं या फिर पत्तियाँ काँटों का रूप ले लेती हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन कम हो । नागफनी ( कैक्टस ) में तना हरा एवं गूदेदार होता है और मोमी परत से ढका होता है । इसमें तना ही प्रकाश – संश्लेषण करता है । उदाहरण : बबूल , कीकर , कैक्टस आदि । 

( 2 ). समोद्भिद् ( Apparition )

ये पौधे खेती योग्य जमीन में पाये जाते हैं । इनमें तना ठोस एवं शाखायुक्त होता है । इसके पत्ते साधारणतया बई , चौड़े , पतले एवं भिन्न आकार के होते हैं । उदाहरण : मक्का , टमाटर , गेहूँ , धान आदि । 

( 3 ). जलोद्भिद ( Aquifer )

ये पौधे जल ( पानी ) में पाये जाते हैं । इनमें जड़ तंत्र कम विकसित होता है । इनमें पत्तियों पर मामी परत होती है । जैसे कि – कमल । जलमग्न पौधों में पत्तियां पतली एवं संकरी होती हैं । उदाहरण : कमल , जल लिली , हाइडिला आदि । 

( 4 ). लवणोद्भिद् ( Saline )

ये पौधे दलदली क्षेत्र में पाये जाते हैं । इन पौधों की जड़ें जमीन से ऊपर की ओर निकल आती है जिससे कि वे वायु ले सके । उदाहरण : मैग्रोव ( सुन्दरी पेड़ ) । 

( 5 ). आतपोदभिद ( Insurgent )

तेलियोफाइट्स सूर्य प्रकाश प्रेमी ये कंवल सूर्य के प्रकाश में अच्छी तरह से विकसित होते है । ये पर्वतीय चारागाह एवं घास स्थल आदि में पाए जाते है । उदाहरण : मुस्लिन , गुलाब , सूरजमुखी आदि । 

( 6 ). स्कियोफाइट ( Sciophyte )

यंपा में उगते हैं । उदाहरण : आर्किड , फन , काली मिर्च आदि ।

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — पादप जगत क्या है? ( Paadap jagat kya hai ) , पादप जगत के कुछ विशेष पेड़ पौधे एवं इसके प्रकार आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद्… ]

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