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बाल विकास की परिभाषा? ( Baal vikaas ki paribhaasha )

इस लेख में बाल विकास ( Child development ) विषय से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी जैसे कि – बाल विकास की परिभाषा? ( Baal vikaas ki paribhaasha ) , नियम व उपयोगिता , विकास और वृद्धि में अंतर , विकास की अवस्थाएँ आदि । तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “

बाल विकास की परिभाषा? ( Definition of Child development )

परिभाषा ( Definition ) — मनुष्य का विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमेशा निरन्तर चलती रहती है । और इसमें ” गुणात्मक परिवर्तन “ तथा ” परिमाणात्मक परिवर्तन “ दोनों निहित होते हैं । ऐसे परिवर्तन कि प्रक्रिया को बाल विकास कहते है ।

गुणात्मक परिवर्तन में शिशुओं की उम्र बढ़ने पर सांवेगिक नियंत्रण में परिवर्तन , विशेष भाषा को सीखने की क्षमता में परिवर्तन आदि होता है । इसे गुणात्मक परिवर्तन कहते है । परिमाणात्मक परिवर्तन में शरीर का कद बढ़ना , वजन बढ़ना , बनावट में परिवर्तन आदि होता है । इसे परिमाणात्मक परिवर्तन कहते है ।

बाल विकास को समझते समय ही दो और शब्द ” वृद्धि ( Growth ) “” परिपक्वता ( Maturity ) “ को समझ लेना चाहिए । 

वृद्धि का मतलब केवल परिमाणात्मक परिवर्तन से है जिसे मापा जा सके । जैसे कि – बालक की ऊँचाई व भार में वृद्धि । परिपक्वता का मतलब एक ऐसी अवस्था से है जो आंतरिक अभिवृद्धि तथा आनुवंशिक रूप से स्वयं निर्धारित तथ्यों द्वारा निर्देशित होता है एवं जिस पर प्रशिक्षण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । जैसे कि – बच्चों का खिसकना , घुटने के बल चलना , खड़ा होना , दौड़ना आदि । 

  • विकास की प्रक्रिया गर्भधारण से लेकर मृत्यु तक होती है । 
  • विकास बहुआयामी व प्रासंगिक होता है । 
  • विकास की गति व्यक्तिगत अंतर से प्रभावित होती है । 
  • विकास की प्रक्रिया सिर से पैरों की ओर बढ़ती है , जबकि मानसिक क्षेत्र में वह मूर्त से अमूर्त की ओर होती है । 
  • विकास सामान्य अनुक्रिया से विशिष्ट अनुक्रिया की ओर होती है । 
  • शारीरिक विकास तथा मानसिक विकास आपस में धनात्मक रूप से सहसंबंधित होते हैं । 

बाल विकास के नियम व उपयोगिता ( Rule of Child development )

( 1 ). विकास का नियम जन्म से पहले और जन्म के बाद भी एक खास क्रम में होता है । जैसे कि – शिशु पहले सिर उठाता है , इसके बाद वह बैठना शुरू करता है , फिर घुटने पर चलना शुरू करता है , फिर खड़ा होता है और चलना शुरू करता है । 

( 2 ). विकास में परिपक्वता तथा प्रशिक्षण दोनों महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । पूर्व प्रसवकाल में सिर्फ परिपक्वता का महत्त्व होता है । 

( 3 ). विकास के नियम हालांकि एक समान होता है लेकिन फिर भी हर बालक में विकास अपने ढंग से तथा भिन्न – भिन्न रफ्तार से होता है । 

( 4 ). विकास में पारिवारिक एवं सामाजिक पर्यावरणीय कारक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । 

( 5 ). समाज बच्चों से भी उनकी उम्र के अनुसार कुछ उम्मीद करता है जिसे सामाजिक प्रत्याशा कहा जाता है , जो कि बालक समाज व संस्कृति से ही सीखता है । 

( 6 ). विकास के नियम की जानकारी यदि माता – पिता व शिक्षक को हो तो दोनों के लिए फायदेमंद होती है । बालकों के व्यावसायिक निर्देशन में , वातावरण के साथ समायोजित करने के लिए प्रेरणा देने में । 

( 7 ). विकास के नियम के आधार पर शिक्षकों को यह पता चलता है कि संतुलन की अवस्था में बालक खुश रहते हैं जबकि असंतुलन की अवस्था में अशांत रहते हैं । ऐसे में बालकों में संतुलन की अवस्था में मार्गदर्शन करने से ज्यादा लाभ होगा । 

बाल विकास और वृद्धि में अंतर ( Difference of Growth and Child development )

( 1 ). वृद्धि से आशय मात्रात्मक या परिमाणात्मक परिवर्तन से है जबकि विकास से आशय परिमाणत्मक के साथ – साथ गुणात्मक परिवर्तन से है ।

( 2 ). वृद्धि से आशय सामान्यतः शारीरिक परिवर्तन से है जबकि विकास से आशय शरीर के विभिन्न , शारीरिक , मानसिक तथा व्यावहारिक संगठन से है ।

( 3 ). वृद्धि को सही से मापा जा सकता है लेकिन विकास को मापना कठिन है बल्कि उसका अवलोकन किया जाता हैं ।

( 4 ). वृद्धि का अर्थ संकुचित है जबकि विकास का अर्थ व्यापक है ।

( 5 ). वृद्धि एक समय के बाद रुक जाती जबकि विकास हमेशा चलता रहता है ।

बाल विकास की अवस्थाएँ ( Stages of Child development )

मनुष्य का जीवन माँ के गर्भ से शुरू होता है तथा जन्म के बाद वह विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए मृत्यु को प्राप्त करता है । इन अवस्थाओं के बारे में अलग – अलग मनोवैज्ञानिकों की अलग – अलग राय है । रॉस व फ्रॉयड ने 5 अवस्थाएं बताई हैं , जबकि कॉलसेनिक 10 तथा पियाजे ने 4 व ब्रूनर ने 3 अवस्थाएं बताई हैं । 

भारत में विकास के अवस्था ( Stages of Child development in India )

भारत में विकास के अवस्था को निम्न प्रकार से विभाजित किया गया है ।

( 1 ). गर्भावस्था : यह अवस्था के गर्भधारण से लेकर जन्म तक की होती है । 

( 2 ). शैशवावस्था : यह अवस्था जन्म से लेकर 2 साल तक की होती है । 

( 3 ). बाल्यावस्था :

  • प्रारंभिक बाल्यावस्था : 2 से 6 साल 
  • उत्तर बाल्यावस्था : 6 से 12 साल 

( 4 ). किशोरावस्था : 12 साल से 18 साल 

( 5 ). युवावस्था : 18 वर्ष से 25 वर्ष तक ( वर्तमान में 30 वर्ष ) 

( 6 ). प्रौढ़ावस्था : 30 वर्ष से 60 वर्ष 

( 7 ). वृद्धावस्था : 60 वर्ष से मृत्यु तक 

तो दोस्तों आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — बाल विकास की परिभाषा? ( Definition of Child development ) , नियम व उपयोगिता , विकास और वृद्धि में अंतर , विकास की अवस्थाएँ आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । धन्यवाद्…

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