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भरण – पोषण? ( Bharan poshan )

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भरण – पोषण? ( Alimentation )

अन्य सभी जीव – जन्तुओं की तरह , मनुष्य को भी जीवित रहने के लिए भरण – पोषण की आवश्यकता होती है । शरीर के आवश्यकतानुसार भरण – पोषण भूख , क्षुधा तथा प्यास पर आधारित होता है ।

भूख और क्षुधा ( Hunger and Appetite )

भोजन करने की आन्तरिक या अचेतन ( intrinsic or involuntary ) इच्छा को भूख ( hunger ) कहते हैं । इसके ठीक विपरीत , भोजन में विशिष्ट स्वाद की हमारी चेतन इच्छा या रुचि, क्षुधा ( appetite ) कहलाती है ।
भूख का आभास हमें आमाशय की दीवार में उपस्थित ऐसे सूक्ष्म आन्तरांगीय संवेदांगों ( interoceptors ) द्वारा होता है जो आमाशय के देर तक खाली रहने से संवेदित होते हैं । यह संवेदना जब मस्तिष्क में पहुँचती है तो हाइपोथैलैमस के पार्श्व भागों में स्थित भूख के केन्द्र ( feeding centres ) संवेदित होकर आमाशय की दीवार में तेज क्रमाकुंचन ( rhythmic peristalsis — hunger contractions ) प्रेरित कर देते हैं । इसी कारण हमें भूख का एहसास होता है ।

भूख के ग्लूकोस , ऐमीनो अम्ल तथा वसीय सिद्धान्तों ( Glucostatic , Aminostatic and Lipostatic Theories of Hunger ) के अनुसार

रुधिर में क्रमागत रूप से ग्लूकोस , ऐमीनो अम्लों या वसीय पदार्थों की मात्रा कम हो जाने पर भी भूख – केन्द्र संवेदित हो जाते हैं ।

भूख के ” ऊष्मस्थैतिक मत ( Thermostatic Theory ) ” के अनुसार

शरीर के ताप कुछ कम होने पर भी भूख – केन्द्र संवेदित होते हैं । इसीलिए , ज्वर – बुखार में हमें भूख नहीं लगती है और सर्दियों में हम गर्मियों की तुलना में अधिक खाते हैं । कभी – कभी भूख से प्रभावित आमाशय का क्रमाकुंचन इतना तीव्र होता है कि हमें पीड़ा का अनुभव होता है जिसे भूख की टीस ( hunger pangs ) कहते हैं । भोजन की पर्याप्त मात्रा ग्रहण करने पर जब आमाशय भर जाता है तो हाइपोथैलेमस की मध्य – अधर ( Mid-limb ) रेखा में उपस्थित परितृप्ति केन्द्र ( satiety centre ) के नियन्त्रण में हमें भूख का एहसास होना रुक जाता है ।

प्यास ( Thirst )

जल ग्रहण यानी पीने की इच्छा को प्यास ( thirst ) कहते हैं । इसका भी एक नियन्त्रण केन्द्र हाइपोथैलेमस में होता है । शरीर के अन्तः वातावरण ( रुधिर , लसिका तथा ऊतक द्रव्य ) में ताप , उपापचय , परिश्रम , पसीना , मूत्रत्याग आदि के कारण जल की कमी से , या लवणों के बाहुल्य से या चोट आदि पर अधिक रुधिर बह जाने से प्यास – केन्द्र ( thirst centre ) की कोशिकाओं का निर्जलीकरण ( dehydration ) होने लगता है , यानी इनमें से जल बाहर निकलने लगता है । इसी से हमें प्यास का एहसास होने लगता है । सम्भवतः रुधिर में ग्लूकोस की मात्रा कम हो जाने से भी हमें प्यास का एहसास होने लगता है । भूख केन्द्र , परितृप्ति केन्द्र तथा प्यास केन्द्र केवल मानव में ही नहीं , बल्कि सभी गरम – रुधिर ( warm – blooded ) कशेरुकियों यानी पक्षियों एवं स्तनियों में भी संभवतः होते हैं ।

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