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स्वांगीकरण क्या है? परिभाषा ( Svaangeekaran kya hai )

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स्वांगीकरण क्या है? ( What is Disorganization )

स्वांगीकरण — रुधिर के प्लाज्मा में हर समय उपस्थित पदार्थ होते हैं — ग्लूकोस ( glucose ) , लाइपोप्रोटीन्स ( lipoproteins ) स्वतन्त्र वसीय अम्ल ( Free Fatty Acids = FFA ) , ग्लिसरॉल , फॉस्फोलिपिड्स ( phospholipids ) , कोलेस्ट्रॉल लाइकोसाइड्स , ऐमीनो अम्ल , यूरिया , जल , लवण , नाइट्रोजनीय समाक्षार , विटामिन आदि । इनमें से यूरिया को वृक्क कोशिकाएँ ग्रहण करती हैं । अन्य पदार्थों को शरीर की सभी कोशिकाएँ , अपने – अपने उपापचय की आवश्यकता के अनुसार , “ कच्चे माल “ के रूप में ग्रहण करती हैं । कोशिकाओं में पहुंचते ही ये पदार्थ जारण या जटिल पदायों के संश्लेषण से सम्बन्धित अभिक्रियाओं में भाग लेते हैं , यानी कोशिकाद्रव्य के ही अंश बनकर इसमें विलीन हो जाते हैं । इसी को पदार्थों का स्वांगीकरण ( assimilation ) कहते हैं । और स्वांगीकृत पदार्थों को मेटाबोलाइट्स ( metabolites ) कहते हैं ।

स्वांगीकृत ग्लूकोस का प्रमुख उपयोग , अपचय ( catabolism ) के अन्तर्गत जारण द्वारा , ऊर्जा – मुक्ति के लिए होता है । कुछ ग्लिसरॉल एवं वसीय अम्ल भी इस काम में आते हैं , लेकिन मुख्यतः इनसे वापस वसाओं का ही संश्लेषण किया जाता है । बसाओं एवं फॉस्फोलिपिड्स का उपयोग कोशिकीय अंगकों ( cell organelles ) , विशेषतः विभिन्न कलाओं के नव – निर्माण एवं मरम्मत में किया जाता है ।

कुछ कोशिकाओं में स्टीरॉइड ( steroid ) हॉरमोन्स ( hormones ) के संश्लेषण में भी इनका उपयोग होता है । ऐमीनो अम्लों में से कुछ कैब्स चक्र में सम्मिलित होकर ऊर्जा – उत्पादन में भाग लेते हैं , लेकिन मुख्यतः इनसे संरचनात्मक प्रोटीन्स , एन्जाइमों के रूप में उपापचयी प्रोटीन्स तथा ATP , DNA एवं RNA के नाइट्रोजनीय समाक्षारों का संश्लेषण किया जाता है । जल , कोशिकाओं में मुख्यतः घोलक यानी विलायक ( solvent ) का काम करता है ।

कुछ जल पदार्थों के उपचय यानी ऐनैबोलिक संश्लेषण ( anabolic synthesis ) में भाग लेता है । उत्सर्जी अंगों में यह मूत्र – निर्माण में भाग लेता है । लवण जटिल पदार्थों के संश्लेषण में भाग लेते हैं । अनेक प्रोटीन्स एवं हॉरमोन्स में इनका अंश होता है । ये कोशिकाकला की पारगम्यता का तथा विभिन्न स्रावित पदार्थों में क्षारों एवं अम्लों के अनुपात का नियन्त्रण करते हैं । रुधिर में ये थक्का जमने में सहयोग देते हैं , हृद् – स्पंदन एवं तन्त्रिकाओं में चेता – प्रेरणाओं के संवहन का नियन्त्रण करते हैं तथा हड्डियों एवं दाँतों में संग्रहित होकर इन्हें दृढ़ता प्रदान करते हैं ।

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