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पोषक पदार्थों का भविष्य ( Poshak padaarthon ka bhavishy )

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शरीर में पोषक पदार्थों का भविष्य ( Fate of nutrients in the body )

पोषक पदार्थों का भविष्य पाचन के उत्पादों को रुधिर शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाता है । शरीर – कोशिकाएँ रुधिर से , ऊतक द्रव्य के माध्यम से , अपनी आवश्यकतानुसार इन पदार्थों को लेती रहती हैं । जन्तु हर समय भोजन नहीं करता जबकि रुधिर एवं शरीर – कोशिकाओं के बीच रासायनिक आदान – प्रदान निरन्तर होता रहता है । पोषक पदार्थों के पाचन के उत्पादों का आहारनाल से रुधिर में अवशोषण केवल समय – समय पर ही होता है ।

अतः एक बार के पाचन के जितने उत्पाद रुधिर में अवशोषित होते हैं वे तुरन्त उपयोग में नहीं लाए जाते । जब तक ये पाचक उत्पाद उपयोग में नहीं आ जाते , ये रुधिर में ही रहते हैं या कहीं और अपनी मूल शा में ही रहते हैं या परिवर्तित दशा में समस्थैतिकता ( homeostasis ) के लिए रुधिर में विविध पदार्थों की मात्रा सदैव , शरीर की तात्कालिक आवश्यकताओं के अनुसार , एक निश्चित सीमा में रखी जाती है । यह नियन्त्रण मुख्यतः यकृत ( liver ) करता है । आहारनाल की दीवार से रक्त ले जाने वाली सभी केशिकाएँ ( capillaries ) मिलकर यकृतीय निर्वाहिका शिरा ( hepatic portal vein ) बनाती हैं जो यकृत में जाकर फिर से केशिकाओं में बँट जाती है ।

इस प्रकार , अधिकांश वसाओं को छोड़कर , शेष अवशोषित पदार्थ , शरीर के अन्य भागों में पहुंचने से पहले , यकृत में पहुँचते हैं । यकृत कोशिकाएँ तात्कालिक आवश्यकताओं से अधिक पदार्थों को रुधिर से ले लेती हैं और इन्हें या तो संचय – योग्य पदार्थों में इन्हें या तो संचय – योग्य पदार्थों में बदलकर इनका वैसे ही संग्रह कर लेती हैं , जैसे एक दक्ष गृहिणी कई – कई महीनों की रसद को कूट – छानकर रख लेती है , या इनका विखण्डन करके इन्हें शरीर से बाहर निकाले जाने योग्य बनाती हैं । इन सब प्रक्रियाओं के बाद भी जो पदार्थ बचते हैं उनका संग्रह मुख्यतः वसाओं के रूप में होता है । यह संग्रह यकृत में नहीं , वरन् विशेष वसीय ऊतकों ( fatty tissues ) में होता है , फिर भी कुछ वसाओं को संचय – योग्य बनाने का काम यकृत कोशिकाएँ ही करती हैं ।

जरूरत से अधिक सरल शर्कराओं को यकृत कोशिकाएँ पहले ग्लूकोस में और फिर ग्लाइकोजेनिसिस ( glycogenesis ) द्वारा ग्लाइकोजन ( मण्ड ) में बदलकर इनका संचय करती हैं । आवश्यकता से अधिक ऐमीनो अम्लों को ये विऐमीनीकरण यानी ऐमीनोहरण ( deamination ) द्वारा कीटो अम्लों और अमोनिया में तोड़ देती हैं । कीटो अम्ल ( keto acids ) इन्हीं कोशिकाओं में या रुधिर में मुक्त होकर अन्य कोशिकाओं में , ऊर्जा के लिए ईंधन का काम करते हैं । अमोनिया को यकृत कोशिकाएँ वृक्कों द्वारा उत्सर्जन के लिए यूरिया ( urea ) में बदलकर रुधिर में मुक्त कर देती हैं । जल , लवणों , विटामिनों आदि की मात्रा भी रुधिर में एक निश्चित सीमा में बनी रहती है ।

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