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मोनेरा जगत क्या है? ( Monera jagat kya hai )

इस लेख में मोनेरा जगत ( Monera kingdom ) विषय से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी जैसे कि – मोनेरा जगत क्या है? ( Monera jagat kya hai ) लक्षण , वासस्थान , लाभ , हानि , बचाव आदि । तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “ 

मोनेरा जगत क्या है? ( What is monera kingdom )

परिभाषा ( Definition ) — मोनेरा जगत के अन्तर्गत सभी जीवाणु आते हैं । सबसे पहले सन् 1683 में हॉलैण्ड के निवासी एंटोनी ल्यूवेनहॉक ने अपने बनाए हुए सूक्ष्मदर्शी द्वारा जल , लार एवं दाँत से खुरचे मैल को देखा जिसमें उन्हें अनेक सूक्ष्मजीव दिखाई दिए । ये जीवाणु थे । लिनियस (1758 ) ने इन्हें वंश में रखा । एरनबर्ग ( 1829 ) ने इन्हें सबसे पहले जीवाणु नाम दिया ।

लुई पाश्चर ( 1822-1895 ) ने किण्वन पर कार्य किया और बताया कि यह जीवाणुओं द्वारा होता है । लुई पाश्चर स्पष्ट किया कि पदार्थों का सड़ना तथा विभिन्न रोगों का कारण सूक्ष्मजीव होते हैं । लुई पाश्चर ( 1865 ) ने अपने कार्य के आधार पर “ रोगों की उत्पत्ति रोगाणुओं द्वारा सिद्धान्त ” को प्रतिपादित किया , जिसे चिकित्सा – विज्ञान में बहुत शीघ्र ही स्वीकार कर लिया गया ।

रॉबर्ट कोच ( 1843-1910 ) ने यह सिद्ध किया कि चौपायों में होने वाली ऐन्नैक्स बीमारी और मनुष्य में ट्यूबरक्यूलोसिस तथा हैजा का कारण भी जीवाणु हैं । इसी वैज्ञानिक ने प्रथम बार जीवाणुओं का कृत्रिम संवर्धन किया । जोसेफ लिस्टर ( 1867 ) ने जीवाणुओं के सम्बन्ध में पूतिरोधी मत प्रस्तुत किया । अब जीवाणुओं का अध्ययन इतना महत्त्वपूर्ण हो गया है कि जीवाणु अध्ययन की एक अलग शाखा बन गई है , जिसे जीवाणु – विज्ञान कहते हैं ।

लुई पाश्चर को सूक्ष्म जैविकी के पिता , लुइवेनहॉक को जीवाणु – विज्ञान के जनक तथा रॉबर्ट कोच को आधुनिक जीवाणु – विज्ञान के जनक कहा जाता है । सूक्ष्मजीवों के सम्बन्ध में अधिकांश खोज सन् 1885 से सन् 1914 के बीच हुई । इस काल को सूक्ष्मजीवों का स्वर्णयुग कहते हैं ।

मोनेरा जगत के लक्षण ( Symptoms of monera kingdom )

मोनेरा जगत के जीवधारियों के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं । 

( I ). ये सूक्ष्मदर्शीय , एककोशिकीय तथा प्रोकेरियोटिक कोशिका से बने होते हैं ।

( 2 ). इनमें केन्द्रक के स्थान पर कोशिका में केन्द्रकाभ पाया जाता है जिसे वलयाकार डीएनए कहते हैं । इनके केन्द्रक में हिस्टोन , प्रोटीन तथा केन्द्रिका नहीं पाई जाती हैं ।

( 3 ). इन जीवों की कोशिका में झिल्लियों से घिरे हुए कोशिकांग पाए जाते हैं । उदाहरण — माइटोकॉण्ड्रिया , लवक , अन्तर्द्रव्यी जालिका , गॉल्जी काय आदि नहीं पाए जाते हैं ।

( 4 ). इनमें वास्तविक रिक्तिका नहीं पाई जाती हैं ।

( 5 ). इनकी कोशिका में 70S प्रकार के राइबोसोम पाए जाते हैं ।

( 6 ). इनमें प्रजनन क्रिया प्रायः अलैंगिक प्रकार की होती है ।

( 7 ). इनमें प्रचलन कशाभ या कशाभिका द्वारा होता है ।

( 8 ). लैंगिक जनन प्रायः अनुपस्थित होता है , लेकिन कुछ मोनेरा जीव , जीन का पुनर्सयोजन करते हैं । 

मोनेरा जगत के जीवाणुओं के सामान्य लक्षण ( Common symptoms of the bacteria of monera kingdom )

मोनेरा जगत के जीवाणुओं के सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं I

( 1 ). जीवाणु सबसे सरल , अतिसूक्ष्म तथा एककोशिकीय , प्रारंभिक जीव हैं ।

( 2 ). ये विश्वजनीन यानि सर्वव्यापी जीव हैं जो जल , थल , वायु , जीवित व मृत पौधों तथा जन्तुओं पर वास करते हैं ।

( 3 ). ये वर्फ व गर्म जल के झरनों में 80 ° C तक के तापक्रम पर भी पाए जाते हैं ।

( 4 ). इनमें कोशिका – भित्ति पाई जाती है ।

( 5 ). जीवाणु कोशिका में केन्द्रक के चारों ओर केन्द्रक कला नहीं होती तथा केन्द्रिक भी अनुपस्थित होती है ।

( 6 ). आरम्भी केन्द्रक में सामान्य गुणसूत्र नहीं होते । डीएनए होता है , लेकिन उसके साथ हिस्टोन प्रोटीन नहीं होता है । डीएनए , गोलाकार होता है और इसके समूह को केन्द्रकाभ या जीनधर कहते हैं ।

( 7 ). इनमें जीवद्रव्य कला कुछ स्थानों पर अन्दर की ओर अनेक बार वलित होकर मध्यकाय बनाती है । इन पर श्वसन विकर होते हैं जो श्वसन में भाग लेते हैं ।

( 8 ). प्रकाश – संश्लेषी स्वपोषी जीवाणुओं में हरितलवक जैसी रचना नहीं होती , बल्कि एक लैमिला रचना वाले अनेक थायलैकॉयड्स , जीवद्रव्य में बिखरे रहते है ।

( 9 ). जीवाणु के राइबोसोम 70S प्रकार के होते हैं जो जीवद्रव्य में स्वतन्त्र रहते हैं और प्रायः पॉलिसोम या पॉलिराइबोसोम के रूप में रहते हैं ।

( 10 ). जीवाणुओं के कोशिका – भित्ति में ऐसीटिलग्लूकोसेमीन तथा ऐसीटिलम्यूरेमिक अम्ल नामक दो प्रमुख शर्करा बुत्पन्न होते हैं जो अन्य जीवों में नहीं होते है ।

( 11 ). जीवाणुओं में जनन मुख्यतः द्वि – विभाजन द्वारा होता है जो एक प्रकार का असूत्री विभाजन होता है । कभी – कभी विपरीत परिस्थितियों में ये वीजाणु बनाते हैं ।

( 12 ). जीवाणुओं में लैंगिक जनन स्पष्ट युग्मकों के संलयन द्वारा नहीं होता है । 

बासस्थान ( Habitat )

जीवाणु सर्वव्यापी है । ये गर्म जल के झरनों , मरुस्थल , बर्फ एवं गहरे समुद्र जैसे विषम एवं प्रतिकूल वासस्थानों , जहाँ दूसरे जीव कठिनता से ही रह पाते हैं , में भी वास करते हैं । कई जीवाणु तो अन्य जीवों पर या उनके भीतर परजीवी के रूप मैं वास करते हैं । ये जल , मृदा , वायु , जन्तुओं और पौधों ( जीवित व मृत ) पर पाए जाते हैं । ये बर्फ व गर्म जल के झरनों में 80’C तापक्रम पर भी पाए जाते हैं । 

जीवाणुओं से लाभ ( Benefits from bacteria )

इससे प्रतिजैविक औषधियाँ बनती हैं । जीवाणुओं के कारण ही दही जमता है । इस प्रक्रिया को किण्वन कहते हैं । दही लैक्टोबैसिलस जीवाणु के कारण जमती है । जीवाणुओं के कारण ही पनीर बनता है । जीवाणुओं के कारण ही सिरका बनता है । 

जीवाणुओं से हानि ( Loss from bacteria )

इससे बीमारियाँ फैलती हैं । जीवाणुओं के कारण ही भोजन विषाक्त या खराब हो जाता . 

जीवाणुओं से बचाव ( Protection from bacteria )

इससे बचाने के लिए खाद्य वस्तुओं को अचार या मुरब्बे के रूप में या उनमें नमक डाल कर रखा जाता है । जीवाणुओं से बचाने के लिए चीजों को कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है । जीवाणुओं से बचाने के लिए चीजों को गर्म करके रखा जाता है ।  

तो दोस्तों आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — मोनेरा जगत क्या है? ( What is monera kingdom ) , लक्षण , वासस्थान , लाभ , हानि , बचाव आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । , धन्यवाद्…

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