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बाल विकास की अवस्थाएं? ( Baal vikaas kee avasthaen )

इस लेख में बाल विकास ( Child development ) विषय से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी जैसे कि – बाल विकास की अवस्थाएं? ( Baal vikaas kee avasthaen ) , गर्भावस्था , शैशवावस्था , बाल्यावस्था , किशोरावस्था , युवावस्था , प्रौढ़ावस्था आदि । तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “ 

बाल विकास की अवस्थाएं ( Stage of child development )

परिभाषा ( Definition ) — मनुष्य विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरता है । जैसे कि – मनुष्य का जीवन माँ के गर्भ से शुरू होता है । और जन्म के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए मृत्यु को प्राप्त करता है । इन अवस्थाओं के बारे में अलग – अलग मनोवैज्ञानिकों की अलग – अलग राय है । रॉस व फ्रॉयड ने 5 अवस्थाएं बताई हैं , जबकि कॉलसेनिक 10 तथा पियाजे ने 4 व ब्रूनर ने 3 अवस्थाएं बताई हैं ।

बाल विकास की अवस्थाएं ( Stage of child development )

मनुष्य के विभिन्न अवस्थाओं का विभाजन I

क्र० सं०  विकास की अवस्थाएं  जीवन अवधि 
1.  गर्भावस्था गर्भाधान से लेकर जन्म तक
2.  शैशवास्था  यह अवस्था जन्म से लेकर 2 साल ( वर्ष ) तक की होती है
3.  बाल्यावस्था या बाल्यकाल

( a ). प्रारंभिक बाल्यावस्था 

( b ). उत्तर बाल्यावस्था

3 वर्ष से लेकर 12 वर्ष तक

2 से 6 साल

6 से 12 साल 

4. किशोरावस्था 12 साल से 18 साल
5.  युवावस्था 18 वर्ष से 30 वर्ष तक
6. प्रौढ़ावस्था 30 वर्ष से 60 वर्ष
7. वृद्धावस्था 60 वर्ष से मृत्यु तक

( 1 ). गर्भावस्था ( Pregnancy )

यह अवस्था गर्भाधान के समय से लेकर जन्म के पहले तक की अवस्था है । इस अवस्था की मुख्य विशेषता यह है कि अन्य अवस्थाओं की अपेक्षा इसमें विकास की गति अधिक तेज होती है । लेकिन जो परिवर्तन इस अवस्था में होते हैं वे विशेष रूप से शारीरिक होते हैं । सभी शारीर की रचना भार , आकार में वृद्धि तथा आकृतियों का निर्माण इसी अवस्था की घटनायें होती हैं ।

गर्भावस्था को 3 अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है । 

( 1 ). गर्भाधान से लेकर 2 सप्ताह तक , इस अवस्था में प्राणी अंडे के आकार का होता है ।
( 2 ). 3 सप्ताह से लेकर 2 महीने के अन्त तक गर्भकालीन विकास की दूसरी अवस्था होती है । जिसे भ्रूर्णावस्था कहा जाता है इस अवस्था के जीव को भ्रूर्ण कहते हैं ।
( 3 ). वह 3 महीने के शुरुआत से लेकर जन्म लेने के पहले तक की अवस्था होती है । यह अवस्था निर्माण की अवस्या नहीं बल्कि विकास की अवस्था होती है ।

( 2 ). शैशवावस्था ( Infancy )

शैशवावस्था जन्म से लेकर 3 वर्ष तक की होती है । इस आयु के बालक को नवजात शिशु भी कहते हैं । इस अवस्था में बालक के भीतर कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता है । जन्म लेने के बाद बालक अपने को जिस नये वातावरण में पाता है । उसे समझना और उसमें अपने को समायोजित करना उसके लिए जरूरी होता है । 

( 3 ). बाल्यावस्था ( Childhood )

• प्रारंभिक बाल्यावस्था ( Early childhood )

यह अवस्था 2 वर्ष से लेकर 6 वर्ष तक की होती है । इस अवस्था में बालक का अधिकतर व्यवहार — जिद्दी , विरोधात्मक , आज्ञा न मानने वाला होता है । बालकों में जिज्ञासा बहुत होती है । बालक खिलौने से खेलना ज्यादा पसंद करता है । और लोगों से मिलना – जुलना इनको अच्छा लगता है । बालक अपनी उम्र के बच्चों के साथ दोस्ती करता है ।

बालकों में शारीरिक परिवर्तन भी तेजी से होते हैं । लेकिन नकल करने की प्रवृत्ति बालकों में अत्यधिक देखी जाती है ।
बालक अकसर कुछ न कुछ बोलते रहते हैं । इससे भाषा का विकास होता है । बालकों में जो संवेग देखने को मिलते हैं , वो है — क्रोध , डर , डाह , खुशी , दु : ख , उत्सुकता आदि ।

• उत्तर बाल्यावस्था ( Later childhood )

यह अवस्था 6 वर्ष से लेकर12 वर्ष तक की होती है । इस अवस्था में बालक स्कूल जाना शुरू कर देते हैं । बालक शरारत अधिक करते हैं और समूह में रहना पसंद करते हैं , संवेग की अभिव्यक्ति बदल जाती है , बालक स्वयं से संबंधित बातें अधिक करता है । और इनमें जिज्ञासा बनी रहती है ।

( 4 ). किशोरावस्था ( Adolescence )

किशोरावस्था यह अवस्था 12 वर्ष से लेकर 18 वर्ष तक की होती है । इस अवस्था में किशोरों में कुछ जरूरी विकास होते हैं । जैसे कि — शारीरिक , सामाजिक , संवेगात्मक , संज्ञानात्मक आदि । इस अवस्था में ऊँची आकांक्षाएँ , कल्पनाएँ , नयी आदतें , व्यवहार में भटकाव आदि देखने को मिलता है ।

( 5 ). युवावस्था ( Youth )

यह अवस्था 18 वर्ष से लेकर 30 वर्ष तक की होती है । इस अवस्था में व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करने तथा रोजगार के अवसरों की तलाश में रहता है । वर्तमान में रोजगार के अवसर त्वरित गति से सभी के लिए उपलब्ध नहीं है । इस वर्ग के व्यक्तियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है वर्तमान में भारतवर्ष में पुरुषों के लिए इस अवस्था के औसत आयु 26 वर्ष तथा महिलाओं की औसत आयु 22 वर्ष है ।  

( 6 ). प्रौढ़ावस्था ( Maturity )

यह अवस्था 30 वर्ष से लेकर 60 वर्ष तक की होती है । इस अवस्था को नये कर्तव्यों और बहुमुखी उत्तरदायित्व की अवस्था समझा जाता है । व्यक्ति इसी अवस्था में बड़ी – बड़ी उपलब्धियों की ओर दत्तचित्त होता है । लेकिन यह तभी सम्भव है जब वह विभिन्न परिस्थितियों के साथ अपना स्वस्थ समायोजन स्थापित कर सकने में सफल हो ।

अन्य अवस्थाओं की तरह ही इस अवस्था में भी समायोजन की समस्याएं उत्पन्न होती हैं । व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों , सम्बन्धियों , वैवाहिक जीवन तथा व्यवसाय के साथ स्वस्थ समायोजन स्थापित करने की जरूरत पड़ती है ।

लेकिन जिन्हें अपने बाल्यकाल में अनावश्यक संरक्षण मिला होता है । वे इस अवस्था में जल्दी आत्मनिर्भर नहीं हो पाते है । जिसके कारण उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है । वैवाहिक समायोजन ठीक न होने से कछ समाजों में तलाक की भी देखने को मिलती है । व्यक्ति को अपने व्यवसाय में सफल और संतुष्ट होने के लिए उसकी उपलब्धियाँ ही नहीं । बल्कि समुचित समायोजन की क्षमता भी जरूरी होती हैं ।

( 7 ). वृद्धावस्था ( Old age )

यह अवस्था 60 वर्ष से लेकर मृत्यु तक होता है । यह अवस्था जीवन की अंतिम अवस्था होती है । शारीरिक और मानसिक शक्तियों का न्हास इस अवस्था में बड़ी ही तेज गति से होता है । शारीरिक शक्ति , कार्य क्षमता तथ प्रतिक्रिया की गति काफी धीमी हो जाती है । शारीरिक परिवर्तनों के साथ ही मानसिक परिवर्तन भी इस अवस्था में होते हैं । इस अवस्था में रूचियां और रचनात्मक चिन्तन तथा सीखने की क्षमताएँ , स्मरण शक्ति बंद पड़ने लगती हैं । और उनके लिए उच्चकोटि की उपलब्धियाँ असंभव हो जाती है ।

शारीरिक शक्ति और मानसिक क्षमताओं में मंदता आ जाने के कारण वृद्ध व्यक्ति बालको के जैसे व्यवहार करने लगते हैं । इस अवस्था में व्यक्ति का सामाजिक सम्पर्क  टूटने लगता है । और वह सामाजिक कार्यक्रमों में भाग नहीं ले पाता है । वृद्ध व्यक्ति व्यावसायिक जीवन से अवकाश प्राप्त कर लेने के बाद वृद्ध व्यक्ति ऐसा समझने लगता है । कि वह आर्थिक दृष्टि से दूसरों पर निर्भर है ।

कई वृद्ध व्यक्ति यह धारणा बना लेते है कि समाज और परिवार में अब उनकी कोई जरूरत नहीं रही । जिसके कारण बुढ़ापे में एक प्रकार की उदासीनता का भाव विकसित होने लगता है । लेकिन जिन वृद्ध व्यक्तियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति जितनी ही उत्तम होती है । और वह अपने को समाज और परिवार के लिए जितना अधिक उपयोगी समझते हैं । उन्हें उतनी ही अधिक प्रसन्नता और मानसिक संतुष्टि का अनुभव होता है ।  

तो दोस्तों आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — बाल विकास की अवस्थाएं? ( Stages of child development ) गर्भावस्था , शैशवावस्था , बाल्यावस्था , किशोरावस्था , युवावस्था , प्रोढ़ावस्था आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । , धन्यवाद्…

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