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कृषि क्या है? परिभाषा, कारक एवं तरीके! ( Krshi kya hai )

कृषि क्या है? परिभाषा ( What is agriculture )

परिभाषा ( Definition ) — किसान जब अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए फसल उगाता है जैसे कि, फल , फूल , सब्जियाँ आदि को उगाता है या इन सभी क्रियाओं के साथ – साथ पशुओं को भी पालता है , तो ये सभी क्रियाएँ कृषि ( Agriculture ) कहलाती हैं । कृषि एक प्राथमिक क्रिया है , जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसान अपनी आवश्यकताओं के लिए उत्पादन करता है । पौधे हमारे भोजन के लिए मुख्य स्रोत हैं इनसे भोजन प्राप्त करने के लिए हमें इसे मिट्टी में उगाना पड़ता है । जब हम एक ही तरह के पौधों को बड़े पैमाने पर उगाते हैं , तो उसे फसल ( Crop ) कहते हैं ।

कृषि करने के तरीके ( Agricultural methods )

फसल को उगाने के लिए किसानों को कई चरण ( the stage ) अपनाने पड़ते हैं । इन चरणों को कृषि पद्धतियाँ ( Farming methods) कहते हैं ।

कृषि करने के तरीके निम्नलिखित हैं ;

( 1 ). जुताई ( मिट्टी को तैयार करना )

यह सबसे पुरानी और पहली पद्धति है और बहुत ही महत्वपूर्ण भी है । इस प्रक्रिया में मिट्टी को भुरभुरा बनाया जाता है जिससे कि मिट्टी के अन्दर की मौजूद पौषक पदार्थ ऊपर आ जायें और पौधे उनका उपयोग करके अच्छी फसल दे सकें । यह प्रक्रिया हल से , कुदाल से या फिर कल्टीवेटर से की जाती है ।

( 2 ). बुआई ( बीजों को मिट्टी में बोना )

बीज को मिट्टी में बोने की प्रक्रिया बुआई ( Sowing ) कहलाती है । यह फसल के उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण चरण है । किसान अच्छी गुणवत्ता और अधिक उपज देने वाले बीज ” कीप “ के आकार औजार या सीड – ड्रिल की सहायता से बोते हैं । और बीजों के बीच में कम से कम दूरी होनी चाहिए जिससे कि सभी बीजों को एक समान रूप से सूर्य का प्रकाश , पोषक तत्व और पानी मिल सके ।

( 3 ). खाद एवं उर्वरक ( खाद और उर्वरको का छिड़काव करना )

लगातार फसलो को उगाने से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है । इसी कमी को पूरा करने के लिए उसमें खाद और उर्वरक डाले जाते हैं ।

( A ). खाद ( Compost )

यह एक जैविक ( कार्बनिक ) पदार्थ है , जो पौधों या जन्तुओं के अपशिष्ट से बनती है ।

खाद के प्रकार ( Types of Compost )

खाद के प्रकार निम्न है — ( i ). गोबर की खाद , ( ii ). कम्पोस्ट खाद , ( iii ). हरी खाद , ( iv ). उर्वरक खाद आदि ।

( i ). गोबर की खाद — यह जन्तुओं के मल – मूत्र एवं कूड़े – करकट को गला – सड़ा कर तैयार की जाती है ।
( ii ). कम्पोस्ट खाद — यह फल – सब्जियों के कचरों के द्वारा द्वारा तैयार की जाती .
( iii ). हरी खाद — सनई और ग्वार , मूंग , उड़द जैसे पौधे खेतों में उगाये जाते हैं और फूल आने पर उनको खेतों में पलट दिया जाता है । . लैग्युमिनस ( मटर कुल ) के पौधों की हरी फसल उगाना

( B ). उर्वरक ( Fertilizer )

यह एक रासायनिक पदार्थ हैं । और एक पोषक तत्वीय भी होते है , जैसे – यूरिया , पोटाश और बहु पोषक तत्वीय भी , जैसे- NPK ( नाइट्रोजन N , फॉस्फोरस P , पोटैशियम K ) । ज्यादा उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है । एक फसल के बाद दूसरे किस्म के फसल लगाने से भी पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है । दाल वाले पौधे ( Laguminous ) मिट्टी में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण ( Nitrogen fixation ) करते हैं ।

नाइट्रोजन का स्थिरीकरण ( Nitrogen fixation )

दाल के पौधों की जड़ों में राइज़ोबियम नाम का एक जीवाणु पाया जाता है । जो वायु मण्डलीय नाइट्रोजन को नाइट्राइट या नाइट्रेट में बदल देता है जिसे पौधे सरलता से प्राप्त कर लेते हैं । नाइट्रोजन का स्थिरीकरण शैवालों के द्वारा भी होता है ।

पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व — कार्बन ( C ) , ऑक्सीजन ( O ) , हाइड्रोजन ( H ) , नाइट्रोजन ( N ) , फॉस्फोरस ( P ) , पोटैशियम ( K ) , कैल्शियम ( Ca ) , मैग्नीशियम ( Mg ) , जिंक ( Zn ) , फेरस ( Fe ) , कॉपर ( Cu ) इत्यादि है ।

( 4 ). सिंचाई ( पौधों का सिंचाई करना )

अलग अलग समय पर खेत में पानी / जल देना सिंचाई ( Watering ) कहलाता है । पौधों में लगभग 90 % जल होता है । पौधों के लिए जल बहुत जरूरी होता है । क्योंकि , खनिजों और उर्वरकों का अवशोषण जल के द्वारा ही होता है । जल के बिना अंकुरण नहीं होता है । जल फसल को पाले और गर्म हवा से बचा कर रखता है । जल का अवशोषण पौधों की जड़ों द्वारा होता है । पौधों के लिए जल की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों पर निर्भर करती है । जैसे कि, फसल की किस्म , मिट्टी का प्रकार , ऋतुऐं आदि ।

सिंचाई के स्रोत ( Sources of watering ) ; नदियां , नहर , कुएँ , तालाब , जलकूप आदि ।
सिंचाई की आधुनिक विधियाँ ( Modern methods of watering ) ;
( i ). छिड़काव तंत्र ( Sprinkler system ) इस विधि के द्वारा पाइपों के द्वारा जल को फव्वारों के रूप में फसलों पर छिड़का जाता है ।
( ii ). टपकन ( ड्रिप ) तंत्र ( Drip system ) इस विधि के द्वारा जल को पाइपों के द्वारा बूंद – बूंद करके पौधों की जड़ों में गिराया जाता है इस विधि में जल बिल्कुल बेकार नहीं होता है ।

( 5 ). खरपतवार और कीट ( खरपतवार और कीटों से सुरक्षा करना )

खरपतवार ( Weed ) — खेतों में प्राकृतिक रूप से उगने वाले अवांछित पौधे खरपतवार कहलाते हैं । ये पौधे जल , पोषक तत्वों आदि को अवशोषित कर लेते हैं , जिससे मुख्य फसल कमजोर हो जाती है । इनको जुताई करके , उखाड़कर या काट कर निकाल दिया जाता है । इसे निराई कहते हैं । इनको खत्म करने के लिए एट्राजिन , 2 , 4 – D , जैसे – रसायनों का भी प्रयोग किया जाता है ।

कीट ( Insect ) — कीट भी फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं , जैसे कि, टिड्डा । ये पत्तियों को काट देते हैं , तनों और फलों में छेद कर देते हैं या फिर उनका रस चूस लेते हैं । इनको दूर करने के लिए मैलाथ्यान , लिंडेन और थायोडॉन नामक कीटनाशकों या कृमिनाशकों का प्रयोग किया जाता है । इसमें जरूरी बात है कि, ज्यादा रसायनों के प्रयोग से फसल , मिट्टी और मनुष्य को भी नुकसान पहुँचता है ।

( 6 ). कटाई ( फसलों की कटाई करना )

फसल के पक जाने पर उसको काटना ‘ कटाई ‘ ( Harvesting ) कहलाता है । कटाई दराँती या हार्वेस्टर से की जाती है । फसल कट जाने के बाद डंठल से बीजों या दानों को अलग करना थ्रेशिंग ( Thrashing ) कहलाता है । थ्रेशिंग हाथ से फटक करके या फिर थ्रेशर के मदद से किया जाता है । और कहीं – कहीं पर बड़े खेतों में कटाई और थ्रेशिंग एक साथ एक मशीन की मदद से की जाती है , जिसे कॉम्बाइन ( Combine ) कहते हैं ।

( 7 ). भण्डारण ( फसलों का रख रखाव करना )

बीजों या दानों को अधिक समय तक उपयोग करने के लिए इसको भण्डार करके रखा जाना भण्डारण ( Storage ) कहलाता है । बीजों या दानों को चूहों , कीटों , सूक्ष्म जीवों से सुरक्षित रखा जाता है । बीजों को पहले धूप में सुखाया जाता है जिससे कि उनमें से नमी खतम हो जाए । फिर उस बीजों को बोरों में भरके गोदामों में रखा जाता है । सूक्ष्म जीवों , चूहों , कीटों से रक्षा करने के लिए उसका रासायनिक उपचार भी किया जाता है । घरों में बीजों को सुरक्षित रखने के लिए नीम के सुखी पत्तियों के साथ रखा जाता है या फिर माचिस की तीलियाँ भी रखते हैं ।

Note — एगमार्क का निशान कृषि उत्पाद की गुणवत्ता की पहचान है ।

कृषि को प्रभावित करने वाले कारक

हर जगह पर एक ही जैसे फसलें नहीं उगाये जाते हैं । अलग – अलग फसलों के लिए अलग – अलग भूमि चाहिए , अलग – अलग तरह की मिट्टी चाहिए और साथ ही जलवायु भी अलग होने चाहिए ।

कृषि को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं ;

( 1 ). स्थलाकृति ( Topography )

अलग – अलग भूमियों में अलग – अलग फसले बोई जाती हैं । जैसे कि – गेहूँ , चावल , जौ , मक्का समतल मैदानों में ही अधिक उगते हैं । पहाड़ों पर कुछ किस्म के फसल जैसे कि – चावल और मक्का उगाये जाते हैं । तटीय क्षेत्रों में चावल की खेती अधिक होती है ।

( 2 ). मिट्टी ( Soil )

अलग – अलग प्रकार की फसलें अलग – अलग तरह के मिट्टियों में उगती हैं । जैसे कि – चावल और गेहूँ के लिए जलोढ़ मिट्टी चाहिए । तो कपास के लिए काली मिट्टी उचित होती है । और काली मिट्टी में गन्ने की भी पैदावार होती है । उसी तरह बलुई मिट्टी में ज्वार और बाजरे की फसल उगाये जाते हैं ।

( 3 ). जलवायु ( Climate )

अलग अलग प्रकार के फसलों के लिए विभिन्न जलवायु चाहिए होता है । जैसे कि – चावल बारिश वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है । इसके ठीक विपरित गेहूँ के लिए बारिश की जरूरत नहीं होती है । और ज्वार और बाजरा गर्म और शुष्क क्षेत्रों में उगते हैं ।

Note — वर्षा ( वृष्टि ) सबसे अधिक कृषि को नुकसान करती है ।

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