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जीभ क्या होता है? परिभाषा, कार्य ( Jeebh kya hota hai )

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इस लेख में जीभ ( Tongue ) विषय से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी जैसे कि – जीभ क्या होता है? ( Jeebh kya hota hai ), परिभाषा , प्रकार एवं कार्य आदि । तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “।   

जीभ क्या होता है? ( What is a tongue )

जीभ तथा जिह्वा अंकुर ( Tongue and Lingual Papillae ) 

जीभ ( Tongue ) 

परिभाषा ( Definition ) — मुख – ग्रासन गुहिका के तल के अधिकतर भाग पर मोटी और मांसल जीभ फैली रहती है । स्तनियों में ( व्हेल मछली को छोड़कर ) यह सबसे अधिक विकसित और चल होती है । एक उल्टे ‘ V ‘ ( ^ ) आकृति की सीमावर्ती खाँच ( terminal sulcus ) इसे अगले मुखीय ( oral ) तथा पिछले ग्रसनीय ( pharyngeal ) भागों में बांटती है ।

पूरी जीभ का केवल थोड़ा – सा अगला भाग स्वतंत्र होता है । और बाकी के भाग मोटी , पेशी युक्त जड़ ( root ) द्वारा हाइऔइड ( hyoid ) एवं निचले जबड़े के कंकाल से जुड़ा रहता है । स्वतंत्र भाग भी , निचली सतह के बीच में , श्लेष्मिक कला के एक भंज जिह्वा संधायक ( frenulum linguae ) द्वारा , मुख गुहिका के तल से जुड़ा रहता है । जीभ का यही भाग गुहिका के बाहर निकाला तथा भीतर चारों ओर घुमाया जा सकता है ।

अतः यह भोजन को लार में मिलाने और चबाने के लिए बार – बार दाँतों के तल पर लाने और फिर इसे अन्दर निगलने में मदद करता है । पूरी जिह्वा पर भ्रूणीय एण्डोडर्म से व्युत्पन्न स्तृत शल्की एपिथीलियम की बनी श्लेष्मिक कला का आवरण होता है । अन्दर के ऊतक में सभी दिशाओं में फैली अन्तरस्थ रेखित पेशियाँ तथा जिह्वा की जड़ की बहिरस्थ रेखित पेशियाँ होती हैं । जिह्वा की सभी गतियाँ इन्हीं पेशियों के कारण होती हैं । 

जिह्वा अंकुर ( Lingual Papillae ) 

जीभ के ऊपर की पूरी सतह खुरदरी होती है । इसके लगभग दो – तिहाई अगले , मुखीय भाग में खुरदरापन अनेक सूक्ष्म जिह्वा अंकुरों के कारण , परंतु शेष , ग्रसनीय भाग में लसिका ऊतक की छोटी – छोटी गाँठों के कारण होता है । 

जिह्वा अंकुर निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं ;

( 1 ). सूत्राकार या फिलिफॉर्म अंकुर ( Filiform Papillae ) 

यह छोटे नुकीले धागेनुमा उभार होते हैं जो जिह्वा की पूरी ऊपरी सतह पर फैले रहते हैं । इनमें स्वाद कलिकाएँ नहीं होतीं है । 

( 2 ). क्षत्राकार या फन्जिफॉर्म अंकुर ( Fungiform Papillae ) 

ये सूत्राकार अंकुरों के बीच – बीच में और इनसे कुछ बड़े लाल दानों के रूप में छातेरूपी अंकुर होते हैं । ये भी जिह्वा की पूरी सतह पर फैले होते हैं । इनमें से हर एक में मुख्यतः 5 स्वाद कलिकाएँ ( taste buds ) होती हैं । 

( 3 ). पर्णिल अंकुर ( Foliate Papillae ) 

सीमावर्ती खाँच के निकट , जिह्वा के दोनों पार्यों में लाल , पत्तीनुमा अंकुरों की छोटी – छोटी श्रृंखलाएँ होती हैं । इन अंकुरों में भी स्वाद कलिकाएँ ( taste buds ) होती हैं । 

( 4 ). परिकोटीय या सर्कमवैलेट अंकुर ( Circumvallate Papillae ) 

ये लगभग एक दर्जन सबसे बड़े घुण्डीनुमा ( knob ) अंकुर होते हैं जो सीमावर्ती खाँच के ठीक आगे और इसी के समानान्तर उल्टे ‘ V ‘ ( ^ ) की आकृति की एक ही लाइन में स्थित होते हैं । इनमें से हर एक में 100 से 300 तक स्वाद कलिकाएँ ( taste buds ) होती हैं । 

जिभ के कार्य ( Functions of Tongue ) 

मनुष्य सहित सभी स्तनियों में जिभ के कार्य निम्नलिखित हैं ;

( 1 ). जिह्वा के क्षत्राकार , परिकोटीय तथा पर्णिल अंकुरों में उपस्थित स्वाद कलिकाओं ( taste buds ) द्वारा जिह्वा स्वाद – ज्ञान का काम करती है । मनुष्य में इसका अग्रभाग में मीठे , पश्चभाग में कड़वे , पार्श्वभाग में खट्टे तथा अग्र छोर एवं किनारे नमकीन स्वादों का अनुभव करते हैं । 

( 2 ). यह भोजन के अन्तर्ग्रहण में जिह्वा चम्मच की भाँति कार्य करती है । 

( 3 ). इसकी श्लेष्मिका के नीचे दो प्रकार की जिह्वा ग्रन्थियाँ ( lingual glands ) होती हैं — श्लेष्म का स्रावण करने वाली श्लेष्मिक ( mucous ) ग्रन्थियाँ तथा एक जलीय तरल का स्रावण करने वाली सीरमी ( serous ) ग्रन्थियाँ । श्लेष्मिक ग्रन्थियाँ जिह्वा की सतह पर खुलती हैं और श्लेष्म के साथ – साथ जिह्वा लाइपेज ( lingual lipase ) नामक एन्जाइम का स्रावण करती हैं । यह एन्जाइम भोजन की सामान्य वसाओं , यानी ट्राइग्लिसराइड्स का वसीय अम्लों तथा मोनोग्लिसराइड्स में विखण्डन शुरू करता है । सीरमी ग्रंथियों की नलिकाएँ परिकोटीय अंकुरों के चारों ओर खुलती हैं । इनसे स्रावित तरल भोजन पदार्थ को घोलकर स्वाद पहचानने में सहायता करता है । 

( 4 ). यह मुखगुहा में भोजन को इधर – उधर घुमाकर इसे पूरा लार में मिलाती है । 

( 5 ). यह भोजन को बार – बार दाँतों के बीच में लाकर इसे चबाने में मदद करती है । 

( 6 ). यह भोजन को अन्दर निगलने में मदद करती है । 

( 7 ). यह बोलने में सहायता करती है । 

( 8 ). जिभ दाँतों के बीच – बीच में फंसे हुए भोजन के छोटे – छोटे कणों को हटाकर मुख गुहिका की सफाई करती है । 

( 9 ). कुछ स्तनियों में यह शरीर की सतह को चाट – चाटकर इसकी सफाई करती है । 

( 10 ). कुत्तों की जिभ में रुधिर वाहिनियाँ बहुत होती हैं । हाँफने में , जिभ में रुधिर – संचरण बहुत बढ़ जाता है और श्लेष्म के वाष्पीकरण से रुधिर को ठंडा करके शरीर के ताप का नियंत्रण किया जाता है ।

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — जीभ क्या होता है? , परिभाषा , प्रकार एवं कार्य आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद्…]

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