You are currently viewing पोषक पदार्थों का अवशोषण? ( Poshak padaarthon ka avashoshan )

पोषक पदार्थों का अवशोषण? ( Poshak padaarthon ka avashoshan )

  • Post author:
  • Post category:Science
  • Reading time:2 mins read

शरीर में पोषक पदार्थों का अवशोषण? ( Absorption of nutrients in the body )

पोषक पदार्थों का अवशोषण — पाचन के सभी अन्तिम उत्पाद जल में घुलनशील और इसीलिए कोशिकाकला के पार विसरणशील ( diffusible ) होते हैं । शरीर में इनका उपयोग कोशिकीय उपापचय ( cellular metabolism ) में होता है । आहारनाल से इन्हें शरीर की समस्त कोशिकाओं तक पहुँचाने का काम परिसंचरण तन्त्र करता है । अतः इन्हें जल , विटामिन्स एवं लवणों के साथ – साथ आहारनाल , मुख्यतः छोटी आंत की श्लेष्मिका ( mucosa ) के आर – पार , श्लेष्मिका ( mucosa ) के रसांकुरों ( villi ) में उपस्थित रुधिर एवं लसिका केशिकाओं ( capillaries ) में पहुँचाया जाता है । इस क्रिया को भोजन का अवशोषण ( absorption ) कहते हैं । सामान्यतः मनुष्य में दिनभर में लगभग 8 से 9 लीटर तरल ( 1.5 लीटर पोषक पदार्थ तथा 7.5 लीटर जल , लवण एवं विटामिन्स ) का अवशोषण होता है । मुखगुहा , ग्रसनी तथा ग्रासनली में कोई अवशोषण नहीं होता । लगभग 90 % अवशोषण छोटी आंत या क्षुद्रात्र में तथा शेष 10 % आमाशय एवं बृहदान्त्र में होता है । आमाशय में केवल कुछ जल , ऐल्कोहॉल , कुछ लवणों और औषधियों का अवशोषण होता है । इसी प्रकार , बड़ी आंत में कुछ जल , आयनों एवं विटामिनों का अवशोषण होता है । छोटी आंत में अवशोषण के लिए आदर्श दशाएँ होती हैं

( 1 ). इसकी दीवार की अधःश्लेष्मिका एवं श्लेष्मिका सपाट न होकर अनेक वर्तुल भंजों में उठी होती हैं जिन्हें वैल्वूली कॉन्नाइवेन्टीज या केरक्रिंग के वलन ( valvulae conniventes or folds of Kerckring ) कहते हैं । ये भंज बड़ी आंत की दीवार के भीतरी सतह यानी अवशोषण तल के क्षेत्रफल को लगभग 3 गुना बढ़ा देते हैं । फिर इन भंजों की सतह पर श्लेष्मिका के करोड़ों छोटे – छोटे उभार होते हैं जिन्हें रसांकुर या विलाई ( villi ) कहते हैं । ये अवशोषण तल के क्षेत्रफल को लगभग 10 गुना और बढ़ाते हैं । फिर अवशोषण तल पर श्लेष्मिक कला ( mucous membrane ) की पहर एक कोशिका की सतह लगभग 600 सूक्ष्मांकुरों ( microvilli ) के कारण ब्रुश – सदृश ( brush – border ) होती है । सूक्ष्मांकुर अवशोषण तल को 20 गुना और बढ़ाते हैं । इस प्रकार , मनुष्य में अवशोषण तल लगभग 600 गुना बढ़ा हुआ होता है । इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 250 वर्ग मीटर होता है ।

( 2 ). श्लेष्मिक कला की कोशिकाओं में अवशोषण का विशेष गुण होता है । इसीलिए इन्हें अवशोषी कोशिकाएँ कहते हैं ।

( 3 ). आँत में भोजन काफी देर , लगभग 3 से 5 घण्टे रुकता है ।

( 4 ). आंत की दीवार की मिश्रण गतियों और तीव्र क्रमाकुंचन के कारण काइम बराबर श्लेष्मिक कला के सम्पर्क में आती रहती है ताकि श्लेष्मिक कला की कोशिकाएँ इससे पोषक पदार्थों का निरन्तर अवशोषण करती रहें ।

अवशोषी कोशिकाएँ आँत की गुहा से पोषक पदार्थों का कुछ अवशोषण तो साधारण विसरण ( diffusion ) यानी निश्चेष्ट आवागमन ( passive transport ) एवं कोशिका – पान ( pinocytosis ) द्वारा कर लेती हैं , लेकिन अधिकतर अवशोषण में इन्हें पदार्थों को , ATP की ऊर्जा व्यय करके , चेष्ट आवागमन ( active transpor ) द्वारा भीतर लेना पड़ता है । इसीलिए , अवशोषण के समय इन कोशिकाओं में ATP का व्यय ( consumption ) बहुत बढ़ जाता है । ग्लूकोस और कुछ ऐमीनो अम्लों का अवशोषण सोडियम आयनों ( Na ‘ ) की सहायता से होता है ।

हर एक रसांकुर में रुधिर – केशिकाओं ( blood capillaries ) का एक धना जाल तया बीच में केवल एक मोटी लसिका केशिका ( lymph capillary ) होती है । शर्कराएँ , लवण , जल , जल में घुलनशील विटामिन , नाइट्रोजनीय समाक्षार , 5 – कार्बनीय शर्कराएँ , ऐमीनो अम्ल तथा कुछ छोटे वसीय अम्ल तो अवशोषी कोशिकाओं के आर – पार रसांकुरों की रुधिर केशिकाओं में जाते हैं , लेकिन लिपिड पदार्थों में से लगभग 97 % का अवशोषण भिन्न प्रकार से और जटिल होता है । जैसा कि पहले लिखा गया है , पित्त के लवण भोजन की लिपिड्स को , पायसीकरण यानि इमल्सीकरण ( emulsification ) प्रक्रिया के अन्तर्गत , छोटे – छोटे बिन्दुकों ( globules ) में विखण्डित कर देते हैं । इन बिन्दुकों में ही , पाचन के फलस्वरूप , लिपिड्स वसीय अम्लों , मोनोग्लिसराइड्स , कोलेस्ट्रॉल आदि में विखण्डित हो जाते हैं ।

वसा में घुलनशील विटामिन ( A , D , E एवं K ) भी इन्हीं बिन्दुकों में पहुँच जाते हैं । अब इन बिन्दुकों की सतह पर पित्त लवणों का खोल बन जाता है । इन बिन्दुकों को मिसेल ( micelle ) कहते हैं । पित्त लवण इन्हें अवशोषण तल की ओर खींचते हैं । यहाँ पहुंचने पर ये लवण हट जाते हैं तथा बिन्दुक अवशोषी कोशिकाओं के लिपिड स्तर में होकर सामान्य विसरण द्वारा इन कोशिकाओं में पहुँच जाते हैं । इन कोशिकाओं में वसीय अम्लों तथा मोनोग्लिसराइड्स से वापस वसाओं का संश्लेषण हो जाता है । साथ ही आँत से अवशोषित तथा इन्हीं कोशिकाओं में संश्लेषित कोलेस्ट्रॉल का भी इन कोशिकाओं में एस्टरीकरण ( esterification ) हो जाता है । कुछ वसाएँ फॉस्फेट के साथ जुड़कर फॉस्फोलिपिड्स ( phospholipids ) बना लेती हैं ।

फिर वसाओं , कोलेस्टेरिल एस्टरों तथा फॉस्फोलिपिड्स के मिश्रण के बिन्दुक बन जाते हैं जो मिसेल्स से कुछ बड़े होते हैं । प्रत्येक बिन्दुक पर कुछ वाहक प्रोटीन्स ( carrier proteins ) के अणुओं का एक खोल बन जाता है जिन्हें ऐपोप्रोटीन्स ( apoproteins ) कहते हैं । आवरणयुक्त बिन्दुकों को काइलोमाइक्रोन ( chylormicrons ) कहते हैं । अवशोषी कोशिकाएँ कोशिकानिर्गमन यानी बहिःसाइटोसिस ( exocytosis ) द्वारा बाहर निकाल देती हैं । अवशोषी कोशिकाओं से बाहर निकलकर काइलोमाइक्रोन रसांकुरों की लसिका केशिकाओं में चले जाते हैं जिनकी लसिका इनके कारण सफेद दिखाई देने लगती है । लसिका केशिकाओं में भरी वसायुक्त लसिका ( lymph ) को चाइल ( chyle ) और इन लसिका केशिकाओं को आक्षीरवाहिनियाँ या लैक्टियल्स ( lacteals ) कहते हैं । ये बड़ी लसिकावाहिनियों में खुलती हैं जो सब जुड़कर एक ही मोटी बक्षीय लसिकावाहिनी ( thoracic lymph duct ) बनाती हैं । वक्षीय लसिकावाहिनी बाई अधोजत्रुक यानी सबक्लेवियन शिरा ( subclavian vein ) में खुलकर चाइल को रुधिर में पहुँचा देती है ।

Read More—