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उत्तर वैदिक काल ( Uttar Vaidik Kaal )

उत्तर वैदिक काल ( Post Vedic Period )

उत्तर वैदिक काल —  यह काल लगभग 1000 ई. पू. से 600 ई. पू. तक माना जाता है क्योंकि इसकी जानकारी के स्रोत ऋग्वेद के अलावा तीन अन्य वेद हैं ; ( 1 ). यजुर्वेद , ( 2 ). सामवेद और ( 3 ). अथर्ववेद । इस समय आर्यों का विस्तार पूर्व और दक्षिण-पूर्व की ओर होने लगा था और आर्य पंजाब से कुरुक्षेत्र यानी गंगा-यमुना दोआब में फैल गए थे ।

आर्यों ने स्थायी जीवन को बिताना शुरू कर दिया था , और पशुपालन की जगह कृषि यानी खेती-बाड़ी को अधिक महत्त्व मिलने लगा था । उत्तर वैदिक आर्यों ने जिस विशाल या बड़े क्षेत्र पर निवास किया , उसे ‘ आर्यावर्त ‘ नाम दिए गए , चित्रित धूसर मृद्भाण्ड और लोहा इस काल की विशिष्टता है ।

आर्यों का निवास स्थान ऋग्वैदिक काल में सिंधु नदी और सरस्वती नदी के बीच में था । लेकिन बाद में वे सभी पूरे उत्तर भारत में फ़ैल चुके थे , और सभ्यता का मुख्य क्षेत्र गंगा और उसकी सहायक नदियों का मैदान हो गया था । गंगा नदी को भारत की सबसे पवित्र नदीयों में से एक और श्रेष्ठ माना जाता है ।

इस काल में ‘ विश् ‘ का विस्तार होता गया और कई जन विलुप्त हो गए । ‘ भरत , त्रित्सु और तुर्वस ‘ जैसे जन् राजनीतिक हलकों से गायब हो गए जबकि ‘ पुरू ‘ पहले से अधिक शक्तिशाली हो गए । कुछ नए राज्यों का विकास पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में हो गया था , जैसे – काशी , कोसल , मिथिला , मगध और अंग आदि । सरस्वती नदी को ऋग्वैदिक काल में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है । ग॓गा का एक बार और यमुना नदी का उल्लेख तीन बार हुआ है । इस काल मे कौसाम्बी नगर मे॓ पहली बार पक्की ईटो का प्रयोग किया गया था । इस काल मे ‘ वर्ण ‘ व्यवसाय के बजाय ‘ जन्म ‘ के आधार पे निर्धारित होने लगे थे ।

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