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प्राचीन भारत के पुरातात्विक स्रोत? ( praacheen bhaarat ke puraataatvik srot )

प्राचीन भारत के पुरातात्विक स्रोत ( Archaeological sources of ancient India )

प्राचीन भारत :— प्राचीन भारत के अध्ययन करने के लिए पुरातात्विक प्रमाणों का खास महत्त्व है । ये कालक्रम का सही जानकारी प्रदान करने वाले साक्ष्य हैं । पुरातात्विक साक्ष्यों में अभिलेख , सिक्के , स्मारक / भवन , मूर्तियाँ तथा चित्रकला प्रमुख हैं ।

अभिलेख / शिलालेख ( Inscription )

लेखों के अध्ययन को पुरालेखशास्त्र ( Epigraphy ) कहा जाता है । बोगजकोई अभिलेख ( एशिया माइनर ) 1400 ईसा. पूर्व. का है , जिससे आर्यों के ईरान से पूरब की ओर आने का साक्ष्य मिलता है । इस अभिलेख में वैदिक देवताओं इन्द्र , मित्र , वरुण तथा नासत्य का उल्लेख मिलता है । महास्थान तथा साहगौरा के अभिलेख चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के हैं । साहगौरा अभिलेख में सूखा पीड़ित प्रजा को राहत देने के लिए बात कही गई है । महास्थान अभिलेख में चन्द्रगुप्त मौर्य के समय के ग्रामीण प्रशासन की जानकारी मिलती है ।

मास्की और गुर्जरा में स्थापित अभिलेखों में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख है । नेत्तुर तथा उड्डेगोलम के अभिलेखों में भी अशोक के नाम का उल्लेख है । अशोक के अभिलेखों को सबसे पहले पढ़ने का श्रेय जेम्स प्रिंसेप को है । सन् 1837 ईo में जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सफलता पाई । अशोक के प्रयाग अभिलेख पर ही समुद्रगुप्त की प्रशस्ति भी उत्कीर्ण है । समुद्रगुप्त की यह प्रशस्ति उसके राजकवि हरिषेण ने उत्कीर्ण की ।

रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख संस्कृत का पहला अभिलेख है । इसमें सुदर्शन झील के निर्माण और मरम्मत का उल्लेख मिलता है ।कलिंग के शासक खारवेल ने हाथीगुम्फा अभिलेख उत्कीर्ण कराया , जिससे उसके जैन मतावलम्बी होने का पता चलता है । महरौली स्तम्भ चन्द्रगुप्त द्वितीय से सम्बन्धित है । इसमें चन्द्र नामक शासक का उल्लेख मिलता है ।

स्कन्दगुप्त के भितरी अभिलेख में हूणों के आक्रमण की चर्चा है । भानुगुप्त के एरण अभिलेख ( मध्य प्रदेश के एरण से प्राप्त ) में सती – प्रथा का प्रथम साक्ष्य मिलता है । इस अभिलेख में 510 ईo का स्पष्ट उल्लेख भी है । नासिक अभिलेख में सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकणी को ब्राह्मणों का संरक्षक मानते हुए एक ब्रह्मण ( अद्वितीय ब्राह्मण ) कहा गया है । पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख को रविकीर्ति ने लिखा है । इसमें हर्ष एवं पुलकेशिन के संघर्ष का वर्णन मिलता है । यह संघर्ष 512 ई . में हुआ था ।

सिक्के ( Coins )

सिक्कों के अध्ययन को न्यूमेस्मैटिक्स या मुद्राशास्त्र कहा जाता है । भारत के प्राचीन सिक्कों पर केवल चिह्न उत्कीर्ण है कोई लेख नहीं है । इन्हें पंचमाक्र्ड या आहत सिक्के कहा गया है । आहत सिक्कों को ऐतिहासिक ग्रन्थों में कार्षापण कहा गया था , जो अधिकांशतः चाँदी के थे । शासकों की आकृति वाले सिक्कों का प्रचलन सबसे पहले हिन्द – यूनानी शासकों के समय प्रारम्भ हुआ । शक , पहलव और कुषाण शासकों ने ऐसे ही सिक्के चलाए थे ।

भारत में सबसे पहले स्वर्ण सिक्के हिन्द – यूनानी शासकों ने चलाए । कनिष्क के सिक्कों से पता चलता है कि वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था । चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों पर जीत के उपलक्ष्य में चांदी के सिक्के चलाए थे । चांदी के सिक्के प्रायः पश्चिमी भारत में प्रचलित थे । समुद्रगुप्त के एक सिक्के में उसे वीणा बजाते हुए दर्शाया गया है । कुछ गुप्तकालीन सिक्कों पर ‘ अश्वमेघ पराक्रमः ( Ashwamedha might ) ‘ शब्द उत्कीर्ण है ।

सबसे अधिक शुद्ध सोने कि मुद्राएं कुषाणों ने तथा सबसे अधिक स्वर्ण मुद्राएं गुप्तों ने जारी की थी । कई गणराज्यों – पांचाल , मालवा तथा यौधेय का पूरा इतिहास सिक्कों के आधार पर ही सामने आया है , जबकि हर्ष , चालुक्य , राष्ट्रकूट , पाल और प्रतिहारों के सिक्के नगण्य संख्या में मिले हुए हैं । भारत के विभिन्न भागों विशेषकर अरिकामेडु में रोमन सिक्के अधिक मात्रा में मिले हुए हैं ।

स्मारक / भवन ( Monument / Building )

स्तूप की पहली चर्चा प्राग्वेद में मिलती है । बौद्ध विहार तथा स्तूपों का निर्माण 4.5वीं शताब्दी ई.पू. के बाद ही हुआ था । पटना के कुम्हरार से चन्द्रगुप्त मौर्य के राजप्रासाद के अवशेष प्राप्त हुए हैं । अशोक ने बराबर की पहाड़ी में तीन गुफाओं का निर्माण कर उन्हें आजीवक सम्प्रदाय के अनुयायियों को प्रदान किया था । ये गुफाएं थीं सुदामा गुफा , कर्ण चौपड़ तथा विश्व झोपड़ी । अशोक के उत्तराधिकारी दशरथ ने भी लोमश ऋषि तथा गोपिका नामक गुफाओं का निर्माण नागार्जुनी पहाड़ी में कराकर आजीवक साधुओं को दान में दिया था ।

मन्दिर निर्माण की नागर , वेसर और द्रविड़ शैलियां प्रचलित थीं । मन्दिरों का निर्माण कार्य गुप्त काल से शुरू हो गया था । कम्बोडिया के अंकोरवाट मन्दिर तथा जावा के बोरोबुदूर मन्दिर से भारतीय संस्कृति के दक्षिण एशिया में प्रसार का पता चलता है । बोरोबुदूर मन्दिर का निर्माण सम्भवतः 9वीं शताब्दी में हुआ था ।

मूर्तियाँ / चित्रकला ( Sculptures / Paintings )

कुषाण काल में बौद्ध धर्म से जुड़े मूर्तियों का निर्माण होने लगा , जिन पर विदेशी प्रभाव देखा जा सकता है । कुषाण काल में मूर्ति निर्माण की गांधार तथा मथुरा निर्माण कला प्रचलित थी । गांधार कला पर यूनानी प्रभाव अधिक व्याप्त था । बुद्ध की प्राचीनतम मूर्तियां गान्धार कला में बनाई गई हैं । भरहुत , बोधगया , सांची तथा अमरावती से प्राचीन बौद्ध प्रतिमाएं मिली है ।

अजन्ता की गुफाओं के चित्र प्रथम शताब्दी ई.पू. से .लेकर 7वीं शताब्दी तक के पाए जाते हैं । इनमें गुप्तकालीन चित्र अत्युत्कृष्ट हैं । बाघ की गुफाओं के चित्र गुप्तकालीन हैं ।

तो दोस्तों मुझे उम्मीद है कि इस लेख में दी गई सभी जानकारी जैसे— प्राचीन भारत के पुरातात्विक स्रोत ( Praacheen Bhaarat ke Puraataatvik Srot ). आदि प्रश्नों के उत्तर अच्छी तरह समझ गए होंगे। अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं. [धन्यवाद]

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