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श्रुति साहित्य क्या है? वेदों के प्रकार! ( Shruti Saahity )

श्रुति साहित्य ( Shruti Saahity )

श्रुति साहित्य में वेदों के अलावा ब्राह्मण ग्रन्थ , आरण्यक ग्रन्थ और उपनिषद भी आते हैं । यह साहित्य मौखिक रूप से लम्बे समय तक चलते रहे और बाद में उनका संकलन किया गया । इस साहित्य में वेदों का प्रथम स्थान है । वेद शब्द ‘ विद ‘ धातु से बना है , जिसका अर्थ होता है ‘ जानना ‘ ; वेदों से आर्यों के जीवन तथा दर्शन का पता चलता है । वेदों को संहिता भी कहा जाता है । वेदों के संकलन का श्रेय महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद-व्यास को प्राप्त है ।

वेदों के प्रकार (types of vedas)

श्रुति साहित्य में वेदों की संख्या 4 है , ये हैं —

( 1 ). ऋग्वेद , ( 2 ). यजुर्वेद , ( 3 ). सामवेद और ( 4 ). अथर्ववेद आदि ।

( 1 ). ऋग्वेद (Rigveda)

ऋग्वेद 10 मण्डलों में विभाजित है । इसमें देवताओं की स्तुति में 1028 श्लोक हैं , जिसमें 11 बालाखिल्य श्लोक हैं । ऋग्वेद में 10,462 मन्त्रों का संकलन है । ऋग्वेद का पाठ करने वाले होता या होतृ वर्ग के पुरोहित होते थे । ऋग्वेद का पहला तथा 10 वाँ मण्डल क्षेपक माना जाता है । नौवें मण्डल में सोम की चर्चा है । प्रसिद्ध गायत्री मन्त्र ऋग्वेद के तीसरे मण्डल से लिया गया है , जिसमें सवितृ नामक देवता को सम्बोधित किया गया है । आठवें मण्डल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है ।

ऋग्वेद की अनेक बातें ईरानी ग्रन्थ अवेस्ता से मिलती हैं । देवताओं में इन्द्र , वरुण , अग्नि , सोम तथा सूर्य प्रमुख माने गए हैं । ऋग्वेद में घोषा , लोपामुद्रा , विश्ववारा इत्यादि विदुषी महिलाओं का उल्लेख है । आजीवन धर्म और दर्शन की अध्येता महिलाओं को ऋग्वेद में ब्रह्मवादिनी कहा गया है । ऋग्वेद में आर्यों और अनार्यों के बीच संघर्ष का उल्लेख है । इसमें प्रसिद्ध दाशराज्ञ युद्ध की चर्चा है ।

आर्यों का प्रसिद्ध कबीला भरत था । भरत ने दाशराज्ञ में आर्यों का नेतृत्व किया । भरत कबीले का शासक युद्ध ” सुदास “ था , जिसने वशिष्ठ को अपना पुरोहित बनाया ; इसी कारण विश्वामित्र ने अनार्यों का साथ दिया । जंगल की देवी के रूप में अरण्यानी का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है ।

ऋग्वेद की शाखाएँ (Branches of Rigveda)

  • शाकल
  • वाष्कल
  • आश्वलायन
  • शंखायन , तथा
  • माण्डुक्य

राजा के लिए ‘ पुराम्भेत्ता ‘ , यायावर प्रजा के लिए ‘ चर्षणि ‘ शब्द का प्रयोग हुआ है तथा स्थायी निवास करने वालों को ‘ कृष्टि ‘ तथा उत्पादन में सक्षम जनता को ‘ अर्य ‘ कहा गया है ।

ब्रह्मा को ऋग्वेद में विधातृ , हिरण्यगर्भ , प्रजापति , बृहस्पति , विश्वकर्मन इत्यादि नामों से सम्बोधित किया गया है । इन्द्र को पुरन्दर , दस्युहन , पुरोभिद जैसे नामों से पुकारा गया है । अग्नि को पथिकृत यानि पथ का निर्माता कहा गया है ।

ऋग्वेद की रचना पंजाब के क्षेत्र में हुई थी । पंजाब तथा पश्चिमोत्तर भारत की नदियों की बार – बार चर्चा ऋग्वेद में मिलती है । इसे सप्त सैंधव कहा गया है । सरस्वती ऋग्वेद में एक पवित्र नदी के रूप में उल्लिखित है । सरस्वती के प्रवाह क्षेत्र को देवकृत योनि कहा गया है । ऋग्वेद में आकाश के देवता हैं — सवितृ ( सावित्री ) , सूर्य , ऊषा , पूषन् , विष्णु , नासत्य , उरुक्रम ।

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( 2 ). यजुर्वेद (Yajurveda)

यजुर्वेद में अनुष्ठानों तथा कर्मकाण्डों में प्रयुक्त होने वाले श्लोकों तथा मन्त्रों का संग्रह है । इसका गायन करने वाले पुरोहित अध्वर्यु कहलाते थे । यजुर्वेद गद्य तथा पद्य दोनों में रचित है ।

इसके दो पाठान्तर हैं —

  1. कृष्ण यजुर्वेद
  2. शुक्ल यजुर्वेद शुक्ल यजुर्वेद को ‘ वाजसनेमी संहिता ‘ भी कहा जाता है ।

( i ). कृष्ण यजुर्वेद

कृष्ण यजुर्वेद ‘ गद्य ‘ में रचित पाठान्तर हैं । कृष्ण यजुर्वेद में तैत्तिरीय , मैत्रायणी तथा काठक पाठान्तर हैं ,

( ii ). शुक्ल यजुर्वेद

शुक्ल यजुर्वेद ‘ पद्य ‘ में रचित पाठान्तर हैं । शुक्ल यजुर्वेद वाजसनेय पाठान्तर में सुरक्षित है ।

यजुर्वेद में कृषि तथा सिंचाई की प्रविधियों की चर्चा है । चावल का ‘ व्रीही ‘ के रूप में उल्लेख मिलता है । यजुर्वेद में राजसूय , वाजपेय तथा अश्वमेघ यज्ञ की चर्चा है । रत्निनों में ( वैदिक अधिकारियों ) की चर्चा भी यजुर्वेद में हुई है । यजुर्वेद में 40 मण्डल तथा 2000 ऋचाएँ ( मन्त्र ) हैं ।

( 3 ). सामवेद (Samveda)

उपन्द्र सामवेद के अधिकांश श्लोक तथा मन्त्र ऋग्वेद से लिए गए हैं । इस वेद से सम्बन्धित श्लोक तथा मन्त्रों का गायन करने वाले पुरोहित उद्गातृ कहलाते थे । सामवेद का सम्बन्ध संगीत से है तथा इसमें संगीत के विविध पक्षों का उल्लेख हुआ है । इसमें कुल 1549 श्लोक हैं , जिनमें से 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं । सामवेद में मन्त्रों की संख्या 1810 है ।

सामवेद के तीन शाखाएँ हैं —

  1. कौथुम
  2. जैमिनीय एवं
  3. राणायनीय ।

( 4 ). अथर्ववेद (Atharvaveda)

अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी । अथर्ववेद की दो शाखाएँ हैं- शौनक एवं पिप्लाद । अथर्ववेद के अधिकांश मन्त्रों का सम्बन्ध तन्त्र – मन्त्र या जादू – टोनों से है । रोग निवारण की औषधियों की चर्चा भी इसमें मिलती है । अथर्ववेद के मन्त्रों को भारतीय विज्ञान का आधार भी माना जाता है । अथर्ववेद में सभा तथा समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है । सर्वोच्च शासक को अथर्ववेद में एकराट् कहा गया है । ‘ सम्राट ‘ शब्द का भी उल्लेख मिलता है । सूर्य का वर्णन एक ब्राह्मण विद्यार्थी के रूप में अथर्ववेद में हुआ है । इसलिए ब्राह्मण ग्रन्थ की रचना की गई । यह गद्य में है ।

श्रुति साहित्य में वेदों के अलावा ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक ग्रन्थ और उपनिषद भी हैं —

ब्राह्मण ग्रन्थ (Brahmin book)

वेदों की आध्यात्मिक व्याख्या के लिए ब्राह्मण ग्रन्थों ऐतरेय ब्राह्मण में 8 मण्डल हैं । पहर एक मण्डल में 6 पाठ हैं , इसे ‘ पंचिका ‘ भी कहा जाता है । ऐतरेय ब्राह्मण की रचना ‘ महिदास ऐतरेय ‘ ने की थी । कौशीतकी ब्राह्मण में 30 अध्याय हैं , इसे संख्यायन ब्राह्मण भी कहा जाता है । पंचविश ब्राह्मण में 25 मण्डल हैं , इसे ताण्ड्य ब्राह्मण भी कहा जाता है ।

वेद , उपवेद एवं प्रमुख ब्राह्मण ग्रन्थ टेबल चार्ट में —

वेद उपवेद ( रचनाकार ) ऋग्वेद आयुर्वेद ( प्रजापति ) यजुर्वेद धनुर्वेद ( विश्वामित्र ) सामवेद गन्धर्ववेद ( नारद ) अथर्ववेद शिल्प वेद ( विश्वकर्मा ) ब्राह्मण ग्रन्थ ऐतरेय , कौषीतकी तैत्तिरीय , शतपथ पंचविश , जैमनीय , षडविश , ताण्ड्य गोपथ

आरण्यक (Aranyaka)

ऋषियों के द्वारा जंगलों में रचना की गई ग्रन्थों को आरण्यक कहा गया है । सभी आरण्यक ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थों से जुड़े हैं । प्रमुख ग्रन्थ हैं – ऐतरेय , शंखायन , वृहदारण्यक , छान्दोग्य और जैमिनी आदि ।

उपनिषद् (Upanishads)

वेदों की दार्शनिक व्याख्या के लिए उपनिषदों की रचना की गई । उपनिषदों की संख्या 108 बताई जाती है । ‘ उपनिषद् ‘ का शाब्दिक अर्थ एकान्त में प्राप्त ज्ञान है । उपनिषदों में आत्मा , जीव , जगत , ब्रह्म जैसे गूढ़ दार्शनिक मतों को समझाने का प्रयास किया गया है । उपनिषदों को वेदान्त भी कहा जाता है । ये वैदिक साहित्य ( श्रुति साहित्य ) की अन्तिम रचनाएं हैं , जिस कारण इन्हें वेदान्त कहा जाता है । वृहदारण्यक , छान्दोग्य , कठ , मण्डूक इत्यादि प्रसिद्ध उपनिषद हैं ।

भारत का सूत्र वाक्य ” सत्यमेव जयते “ मुण्डकोपनिषद से लिया गया है । यम और नचिकेता के बीच प्रसिद्ध संवाद की कथा को कठोपनिषद में वर्णन किया गया है । श्वेतकेतु तथा उसके पिता का संवाद छान्दोग्योपनिषद में वर्णित है ।

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