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शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास (Sanvegaatmak Vikaas)

इस विषय में जानकारी शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास (Shaishavaavastha Mein Sanvegaatmak Vikaas) के बारे दी गई है । आशा करता हूं कि यह लेख आपको पसन्द आयेगा और इस लेख को पढ़कर आप समझ पायेंगे।

शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास (Infancy And Emotional Development)

जन्म से ही शिशु का संवेगात्मक व्यवहार शुरू हो जाता है । शैशवावस्था जन्म से 3 वर्ष की आयु तक की अवधि होती है जो शारीरिक, सामाजिक, संवेगात्मक और साथ ही संज्ञानात्मक विकास के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवस्था है। शिशु के व्यक्तित्व के सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए संवेगों का विकास बहुत ही महत्वपूर्ण है। नवजात शिशु में तेज आवाज से भय , उसकी शारीरिक गति में बाधा डालने से क्रोध और उसको थपथपाने व दुलारने से प्रेम के संवेग की उत्पत्ति होती है । जन्म के समय शिशु में संवेगात्मक प्रतिक्रियाएँ केवल उत्तेजना मात्र होती है ।

जब वह 3 माह का हो जाता है तब उसमें कष्ट और आनन्द के संवेग दिखाई पड़ते हैं ।

।6 माह की आयु में उसमें भय और क्रोध के संवेग दृष्टिगोचर होते हैं ।

1 वर्ष की आयु में शिशु में प्रेम और उल्लास तथा डेढ़ वर्ष की आयु में ईर्ष्या का संवेग दिखाई देने लगता है ।

2 वर्ष की आयु में शिशु पहले से अधिक प्रसन्नता और आनन्द में , क्रोध व घृणा तथा भय दिखाने लगता है ।

शिशुओं में आयु बढ़ने के साथ – साथ संवेगों की तीव्रता बढ़ने लगती है ।

लगभग 3 वर्ष की आयु पूरी करते – करते शिशुओं में सभी संवेगों का विकास हो जाता है ।

तो दोस्तों मुझे उम्मीद है कि इस लेख में दी गई सभी जानकारी को अच्छी तरह समझ गए होंगे । अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं. [धन्यवाद]

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