शिक्षा की संकल्पना (Concept of Education)
शिक्षा का अर्थ सामान्यतया विद्यालय में अध्ययन की जाने वाली शिक्षा से लगाया जाता है । लेकिन जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, एक व्यापक रूप में तथा दूसरा संकुचित रूप में। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है। यही सीखना-सिखाना शिक्षा के व्यापक तथा विस्तृत रूप में आते हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों जैसे कि विद्यालय, महाविद्यालय में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा विद्यार्थी निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर संबंधित परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है।
अमुक व्यक्ति ने किस कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की है? यह प्रश्न प्रायः किसी व्यक्ति की शैक्षिक क्षमता को जानने के लिए पूछ लिया जाता है । शिक्षा का बोलचाल में अर्थ है ‘सीखना’। यानी हम किसी ज्ञान को सीखते हैं तो उसे शिक्षा माना जायेगा । औपचारिक रूप से हम विद्यालय में कक्षा-दर-कक्षा शिक्षा ग्रहण करते हुए आगे बढ़ते जाते हैं । परन्तु उससे भी अधिक शिक्षा हम जीवन पर्यन्त अपने दैनिक जीवन में कदम-दर-कदम सीखते हैं। हम चाहे तो प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक घटना से शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। शिक्षा कभी भी पूर्ण नहीं होती । कोई व्यक्ति यदि यह कहता है कि उसने शिक्षा पूर्ण कर ली है तो वह स्वयं को झुठला रहा है और सामने वाले को भी गुमराह कर रहा है । शिक्षा व्यक्ति जन्म से प्राप्त करने लगता है और अपने जीवन की अन्तिम श्वास तक ग्रहण करता रहता है ।