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बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास (Sanvegaatmak Vikaas)

बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास ( Childhood in Emotional Development )

बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास :— बाल्यावस्था में बालक के संवेग मात्र उत्तेजना न होकर उसकी अभिव्यक्ति में सामाजिकता उत्पन्न होने लगती है और उनकी अभिव्यक्ति पर नियंत्रण करने लगता है । इस कारण उसके संवेगों की उग्रता (intensity of emotions) कम होने लगती है । इस अवस्था में बालक में संवेगों को दमन (suppression) करने की क्षमता पैदा हो जाती है । वह यह समझने लगता है कि उसके किस व्यवहार से परिजन , शिक्षक व अन्य लोग प्रसन्न होंगे और किस प्रकार के व्यवहार से वे रुष्ट होंगे । इस अवस्था में बालकों में ईर्ष्या एवं द्वेष (envy and jealousy) की भावना विकसित होने लगती है और इसका प्रकटीकरण वह चिढ़ाना , उपेक्षा करना , निंदा करना , आरोप लगाना , व्यंगात्मक भाषा का प्रयोग करना आदि द्वारा करने लगता है ।

इस अवस्था में भय यानी डर कम हो जाता है क्योंकि बालक बहुत – सी चीजों से परिचित हो जाता है और वातावरण पर उसका नियंत्रण बढ़ जाता है । अब बालक दुर्घटना से , भूत – प्रेत , मृतक आदि बातों से , कक्षा में पिटाई के डर से , समाज में अपमानित होने के विचार से या परीक्षा में अनुत्तीर्ण (fail) होने की वजह से भयभीत होता हैं । इस अवस्था में जिज्ञासा की प्रबलता होती है और आनंदमयी स्थिति आने पर बालक प्रसन्न और प्रफुल्ल हो उठता है , और वह जिनके साथ रहता है , खेलता है उनके प्रति वह स्नेह का भाव प्रकट करता है ।

इस प्रकार इस अवस्था में बालक विभिन्न प्रकार के संवेग , जैसे- भय , निराशा , चिंता , व्यग्रता , कुंठा , स्नेह , प्रेम , प्रसन्नता आदि स्पष्ट रूप से प्रकट होने लगते हैं । और अवांछित संवेगों दमन से कभी – कभी उसमें मानसिक ग्रंथियाँ ( Complexes ) भी बन जाती हैं और उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है ।

तो दोस्तों मुझे उम्मीद है कि इस लेख में दी गई सभी जानकारी बाल्यावस्था एवं संवेगात्मक विकास ( Childhood And Emotional Development ). आदि प्रश्नों के उत्तर अच्छी तरह समझ गए होंगे । अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं. [धन्यवाद]

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