शैशवावस्था और सामाजिक विकास (Social development in infancy)
शैशवावस्था में सामाजिक विकास? जन्म के समय शिशु सामाजिक प्राणी नहीं होता है । जैसे – जैसे उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता है , वैसे – वैसे उसका सामाजिक विकास भी होता है । शिशु के सामाजीकरण की प्रक्रिया दूसरे व्यक्तियों के साथ उसके संपर्क से शुरू होती है ।
जन्म के कुछ दिनों बाद तक शिशु सजीव और निर्जीव चीजों में अन्तर नहीं समझता है । लेकिन माता – पिता तथा अन्य व्यक्तियों के बार – बार संपर्क में आने से वह कुछ दिनों में ही यह भेद समझने लगता है । यहीं से उसके सामाजिक विकास की प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं ।
शैशवावस्था के पहले 2 वर्षों में शिशुओं का व्यवहार स्वाभाविक (Natural) होता है , वे स्व – केंद्रित होते हैं और अपना स्वयं का सुख ही उनके लिए सब कुछ होता है ।
2 वर्ष की अवस्था पूरा करते – करते वह अपने माता – पिता एवं परिवार के अन्य स्थायी सदस्यों के साथ हिल – मिल जाता है । कभी – कभी उनके कार्यों में सहयोग भी करने लगता है तथा अपने को परिवार का सक्रिय सदस्य समझने लगता है ।
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अति लघु उत्तरीय प्रश्न ( Very Short Answer Questions )
Question – किस अवस्था में शिशु सामाजिक प्राणी नहीं होता है?
Answer – जन्म के समय शिशु सामाजिक प्राणी नहीं होता है ।
Question – शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास के साथ – साथ किस अवस्था का विकास होता है?
Answer – शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास होता है , वैसे – वैसे उसका सामाजिक विकास भी होता है ।
Question – शिशु के सामाजीकरण की प्रक्रिया कैसे शुरू होती है?
Answer – शिशु के सामाजीकरण की प्रक्रिया दूसरे व्यक्तियों के साथ उसके संपर्क से शुरू होती है ।
Question – शैशवावस्था के पहले कितने वर्षों में शिशुओं का व्यवहार मूलप्रवृत्यात्मक होता है और स्व – केंद्रित होते हैं?
Answer – शैशवावस्था के पहले 2 वर्षों में शिशुओं का व्यवहार मूलप्रवृत्यात्मक होता है। वे स्व – केंद्रित होते हैं ।
Question – कितने वर्ष की अवस्था पूरा करते – करते वह अपने माता – पिता एवं परिवार के अन्य स्थायी सदस्यों के साथ हिल – मिल जाता है?
Answer – 2 वर्ष की अवस्था पूरा करते – करते वह अपने माता – पिता एवं परिवार के अन्य स्थायी सदस्यों के साथ हिल – मिल जाता है ।
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