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पाचन तंत्र के विकार? ( paachan tantr ke vikaar )

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इस लेख में पाचन तंत्र के विकार? विषय से सम्बन्धित पूरी जानकारी मिलेगी , तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “

पाचन तंत्र के विकार? ( Digestive system disorders )

( 1 ). अपच ( Indigestion or Dyspepsia )

‘ अपच ‘ एक ऐसी बिमारी है जिसमें भोजन लेने के बाद उदर या पेट के ऊपरी भाग में अजीब से बैचेनी महसूस होती है । इसे डिस्पेप्सिआ ( dyspepsia ) भी कहते हैं । यह स्थिति वयस्कों में कभी – कभार या हर रोज हो सकती है । अपच का कारण आहारनाल में पेप्टिक अल्सर , कैंसर या अग्न्याशय या पित्त नली में असामान्यता ( abnormality ) के कारण होता है । और यह रोग कुछ कारणों से जल्दी बढ़ता है , जैसे कि — अधिक शराब का सेवन , अधिक वसीय और मसालेदार भोजन , अधिक खाना , जल्दी खाना , अधिक उपवास , धूम्रपान , अधिक कैफीन , भावनात्मक तनाव ( emotional stress ) आदि है ।

कभी – कभी अपच का कोई कारण भी दिखाई नहीं देता है , इसे कार्यात्मक अपच ( functional dyspepsia ) भी कहते हैं । और कभी – कभी आमाशय से अम्ल ग्रासनली में आ जाता है , इससे छाती में दर्द या हृदय जलन ( heartburn ) का अनुभव होता है तथा यह गर्दन और पीठ की ओर बढ़ता है । अपच तथा हृदय जलन अलग – अलग दशाएँ हैं , लेकिन किसी व्यक्ति में दोनों के लक्षण भी हो सकते हैं । अपच की जाँच x-किरणों , रक्त तथा मल परीक्षण , बायोप्सी के साथ ऐण्डोस्कोपी द्वारा की जाती है । अपच की दशा में जीवन शैली में कुछ परिवर्तन और तनाव में कमी से लाभ प्राप्त किया जा सकता है ।

अपच के उपचार के लिए निम्न औषधियां दी जाती हैं :—

( i ). एन्टासिड्स ( antacids )
( ii ). H, रिसेप्टर एन्टागोनिस्ट्स ( H , Receptor Antagonists = H , RAS )
( iii ). प्रोटॉन पम्प संदमक ( Proton Pump Inhibitors = PPIs )
( iv ). प्रोकाइनेटिक्स ( prokinetics )
( v ). प्रतिजैविक ( antibiotics ) आदि ।

( 2 ). कब्ज या मलबन्ध ( Constipation )

बड़ी आंत में काइम के पीछे खिसकने की दर कम हो जाने से इसमें सूखे व कड़े मल का संचय हो जाता है इससे मल त्याग में कठिनाई होती है । इसी को कब्ज ( constipation ) कहते हैं , यदि व्यक्ति सप्ताह में केवल 3 या 4 बार मलत्याग करता है तो इसे कब्ज की दशा कहा जा सकता है । कब्ज के प्रमुख कारणों में भोजन में रेशों का पर्याप्त मात्रा में न होना , व्यायाम की कमी , मलत्याग की इच्छा को टाल देना , कुछ बीमारियां तथा कोलन की भित्ति द्वारा जल का कम अवशोषण आदि । कब्ज वास्तव में कोई गम्भीर रोग नहीं है , बल्कि एक अस्थाई रोग है , यदि इसके कारणों को समझ लिया जाए तो इससे बचाव और उपचार के द्वारा छुटकारा पाया जा सकता है ।

कब्ज से बचाव के लिए खाने में अधिक फल , रेशेदार सब्जी , अनाज व अन्य पदार्थ लेने चाहिए । अधिक जल व तरल पदार्थों का सेवन , पर्याप्त व्यायाम और समय पर इच्छा होते ही मलत्याग करना चाहिए ।

( 3 ). उल्टी या वमन ( Vomiting or Emesis )

ग्रासनली के निचले अर्थात् आमाशयी छिद्र के नियन्त्रक , कार्डियक संकोचक ( cardiac sphincter ) का प्रमुख कार्य आमाशय से भोजन के उद्गलन ( regurgitation ) को रोकना होता है । कभी – कभी , मस्तिष्क के मेड्यूला में स्थित वमन केन्द्र ( vomiting centre ) के , कई प्रकार की विविध भौतिक या रासायनिक दशाओं द्वारा , उत्तेजित हो जाने से , मितली – सी आने लगती है । इसमें कार्डियक संकोचक तथा आमाशय एवं ग्रासनली की पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं और हमें कै हो जाती है । वमन केन्द्र के उत्तेजित होने पर उदर भाग की पेशियों तथा तन्तुपट यानि डायफ्राम में बहुत अधिक संकुचन होने लगता है । इसी संकुचन के दबाव से आमाशय में भरे भोजन का उद्गलन होता है और हमें मरोड़ एवं मितली आदि का अनुभव होता है ।

वमन वास्तव में एक रक्षात्मक प्रतिवर्त ( protective reflex ) है जिसमें जठरान्त्रीय मार्ग ( GI tract ) से विषैले पदार्थ अवशोषित होने से पहले ही बाहर निकल जाते हैं । वमन के समय श्वसन बाधित होता है । इसमें प्रायः उदरीय अम्ल होता है जिससे हमें जलन महसूस होती है । भोजन लेने के बाद कभी – कभी हमें डकार आती है । इसमें आमाशय से ध्वनि के साथ कुछ वायु मुँह से होती हुई बाहर निकलती है । यह वायु प्रायः जल्दी – जल्दी भोजन या जल ग्रहण करने के कारण आमाशय में पहुँच जाती है ।

( 4 ). अतिसार या दस्त ( Diarrhoea )

कब्ज के विपरीत , यह बड़ी आंत में काइम के जल्दी – जल्दी पीछे खिसक जाने से होता है । यह आँत में विषाणुओं यानि वाइरसों ( viruses ) एवं जीवाणुओं ( bacteria ) , अमीबी ( amoebae ) आदि के संक्रमण ( infection ) या चिन्ता के कारण भी हो जाता है । तीक्ष्ण अतिसार में प्रायः उदरशूल एवं ज्वर ( fever ) भी हो जाता है ।

( 5 ). पीलिया रोग ( Jaundice or Icterus )

रेटिकुलो – एण्डोथीलियमी ऊतकों ( प्लीहा यानी तिल्ली , अस्थि मज्जा , लसिका गाँठों आदि ) में रुधिर के लाल रुधिराणुओं के विखण्डन की दर अत्यधिक बढ़ जाने , बड़ी संख्या में यकृत कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त हो जाने , या पित्ताशय से पित्तवाहिनी में पित्त का मार्ग बंद हो जाने पर , यकृत कोशिकाएँ रुधिर से बिलिरूबिन को ग्रहण नहीं कर पाती है । इसलिए पीला बिलिरूबिन रुधिर में ही रहकर पूरे शरीर में फैल जाता है । इसी को पीलिया रोग ( jaundice ) कहते हैं । इसमें त्वचा और आँखें पीली पड़ जाती हैं , मूत्र पीला हरा और मल भूरा हो जाता है । उपयुक्त उपचार के अभाव में रोगी की मृत्यु हो जाती है । पीलिया रोग के अनेक कारण है । जैसे — संक्रमण , कुछ दवाइयों का सेवन , कैन्सर , रक्त रोग यानि जन्म दोष ( birth defects ) आदि ।

पीलिया के तीन प्रकार मुख्य हैं ;

( a ). पूर्व – यकृती पीलिया ( Pre – Hepatic Jaundice ) :— यह पीलिया मलेरिया या हँसियाकार रुधिराणु रक्ताल्पता ( sickle – cell anaemia ) के कारण होता है ।
( b ). अन्तरा – यकृती पीलिया ( Intra – Hepatic Jaundice ) :— यह हिपैटाइटिस C या ऐल्कोहॉल यकृत सिरोसिस दशा में होता है ।
( c ). पश्च – यकृती पीलिया ( Post – Hepatic Jaundice ) :— यह पथरी के कारण पित्तनली में रुकावट के कारण होता है ।

( 6 ). अग्न्याशयशोथ ( Pancreatitis )

अधिक सुरापान , अग्न्याशयी नलिका के मार्ग के अवरोधन , कैन्सर , विषाणुओं ( viruses ) के संक्रमण आदि से अग्न्याशय को क्षति हो जाती है , या ट्रिप्सिन एन्जाइम अग्न्याशय में ही सक्रिय होकर इसके ऊतक को पचाकर गला देता है यानी इसका लयन ( lysis ) कर देता है । इन सब दशाओं को अग्न्याशयशोथ कहते हैं ।

तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — पाचन तंत्र के विकार? आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें.. [ धन्यवाद् ]

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