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बाल्यावस्था में सामाजिक विकास (Saamaajik Vikaas)

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बाल्यावस्था में सामाजिक विकास ( Social Development in childhood )

बाल्यावस्था में बालक का संपर्क बाहरी शक्तियों से अधिक होता है । इसी के कारण उसका सामाजिक विकास बहुत तेज गति से होता है । इस अवस्था में वह विद्यालय में दूसरे बालकों , अध्यापकों , परिवार के सदस्यों एवं मोहल्ले के सदस्यों से संपर्क करता है , उनके क्रियाकलापों और विचारों से प्रभावित होकर एक नये अनुकूलन करना सीखता है । इस अवस्था में वह मिल – जुलकर खेलना , समूह में रहना अधिक पसंद करता है ।

बालक समूह में रहने के कारण उसमें उत्तरदायित्व , सहायता , सहयोग , दयालुता , ईमानदारी , आत्म – नियंत्रण आदि गुणों का विकास होने लगता है । विद्यालय के जीवन में बालक को अनेक सामाजिक कार्यों में भाग लेना पड़ता है । इसलिए सामुदायिक भावना का काफी विकास हो जाता है, अब उसमें आत्म – विश्वास , आज्ञाकारिता और नेतागीरी की भावना विकसित होने लगती है । इस अवस्था में बालक – बालिकाओं को सामाजिक स्वीकृति की अत्यंत अभिलाषा होती है और वे प्रयास करते हैं कि उन्हें समूह या समाज में पसंद किया जाए । इस अवस्था में यदि उनके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार नहीं किया है तो उनमें नकारात्मक भाव जाग्रत होने लगते हैं ।

इस प्रकार इस अवस्था में बालकों का सामाजिक जीवन विस्तृत होने लगता है और समाज एवं समूह में अपनी अलग पहचान बनाने का प्रयत्न करते हैं । समूह में वे अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहते हैं और इसके लिए कभी – कभी वे अन्यथा आचरण भी कर लेते हैं ।

तो दोस्तों मुझे उम्मीद है कि इस लेख में दी गई सभी जानकारी अच्छी तरह समझ गए होंगे । अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं. [धन्यवाद]

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