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वैदिक साहित्य (Vaidik Saahity)

वैदिक साहित्य (Vedic literature)

वैदिक साहित्य (Vedic literature) — आर्यों के बारे में जानकारी का मुख्य स्रोत वैदिक साहित्य हैं । इस सम्पूर्ण वैदिक साहित्य को 2 भागों में बाँटा जाता है । ये हैं —

( 1 ). श्रुति साहित्य
( 2 ). स्मृति साहित्य । 

श्रुति साहित्य — श्रुति साहित्य में वेदों के अतिरिक्त ब्राह्मण ग्रन्थ , आरण्यक ग्रन्थ तथा उपनिषद् आते हैं। यह साहित्य लम्बे समय तक मौखिक रूप से चलते रहे, तथा बाद में उनका संकलन किया गया ।

स्मृति साहित्य — स्मृति साहित्य मनुष्यों द्वारा रचित है । इसमें वेदांग , सूत्र तथा स्मृति ग्रन्थ शामिल हैं। श्रुति साहित्य स्मृति साहित्य की तुलना में अधिक पवित्र तथा श्रेष्ठ माने जाते हैं ।

( 1 ). श्रुति साहित्य (Shruti Sahitya)

श्रुति साहित्य में वेदों का प्रथम स्थान है । वेद शब्द ‘ विद् ‘ धातु से बना है , जिसका अर्थ होता है ‘ जानना ‘ ; वेदों से आर्यों के जीवन तथा दर्शन का पता चलता है । वेदों की संख्या 4 है । ये हैं — ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद तथा अथर्ववेद ; वेदों को संहिता भी कहा जाता है । वेदों के संकलन का श्रेय महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद – व्यास को प्राप्त है ।

ऋग्वेद (Rigveda)

यह 10 मण्डलों में विभाजित है । इसमें देवताओं की स्तुति में 1028 श्लोक हैं , जिसमें 11 बालाखिल्य श्लोक हैं । ऋग्वेद में 10,462 मन्त्रों का संकलन है । ऋग्वेद का पाठ करने वाले होता या होतृ वर्ग के पुरोहित होते थे । ऋग्वेद का पहला तथा 10 वा मण्डल क्षेपक माना जाता है । 9 वें मण्डल में सोम की चर्चा है । प्रसिद्ध गायत्री मन्त्र ऋग्वेद के तीसरे मण्डल से लिया गया है , जिसमें सवितृ नामक देवता को सम्बोधित किया गया है । 8 वें मण्डल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है । ऋग्वेद की अनेक बातें ईरानी ग्रन्थ अवेस्ता से मिलती हैं । देवताओं में इन्द्र , वरुण , अग्नि , सोम तथा सूर्य प्रमुख माने गए हैं । ऋग्वेद में घोषा , लोपामुद्रा , विश्ववारा इत्यादि विदुषी महिलाओं का उल्लेख है । आजीवन धर्म तथा दर्शन की अध्येता महिलाओं को ऋग्वेद में ब्रह्मवादिनी कहा गया है ।

इस वेद में आर्यों तथा अनार्यों के बीच संघर्ष का उल्लेख है । इसमें प्रसिद्ध दशराज्ञ युद्ध की चर्चा है । आर्यों का प्रसिद्ध कबीला भरत था । भरत ने दाशराज्ञ में आर्यों का नेतृत्व किया । भरत कबीले का शासक युद्ध ” सुदास था , जिसने वशिष्ठ को अपना पुरोहित बनाया ; इसी कारण विश्वामित्र ने अनार्यों का साथ दिया । जंगल की देवी के रूप में अरण्यानी का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है ।

ऋग्वेद की शाखाएँ —

ऋग्वेद की शाखाएँ – शाकल , वाष्कल , आश्वलायन , शंखायन तथा माण्डुक्य हैं ।

राजा के लिए ‘ पुराम्भेत्ता ‘ , यायावर प्रजा के लिए ‘ चर्षणि ‘ शब्द का प्रयोग हुआ है तथा स्थायी निवास करने वालों को ‘ कृष्टि ‘ तथा उत्पादन में सक्षम जनता को ‘ अर्य ‘ कहा गया है । ब्रह्मा को ऋग्वेद में विधातृ , हिरण्यगर्भ , प्रजापति , बृहस्पति , विश्वकर्मन इत्यादि नामों से सम्बोधित किया गया है । इन्द्र को पुरन्दर , दस्युहन , पुरोभिद जैसे नामों से पुकारा गया है । अग्नि को पथिकृत अर्थात् पथ का निर्माता कहा गया है ।

ऋग्वेद की रचना पंजाब के क्षेत्र में हुई थी । पंजाब तथा पश्चिमोत्तर भारत की नदियों की बार – बार चर्चा ऋग्वेद में मिलती है । इसे सप्त सैंधव कहा गया है । सरस्वती ऋग्वेद में एक पवित्र नदी के रूप में उल्लिखित है । सरस्वती के प्रवाह क्षेत्र को देवकृत योनि कहा गया है । ऋग्वेद में आकाश के देवता हैं — सवितृ ( सावित्री ) , सूर्य , ऊषा , पूषन् , विष्णु , नासत्य , उरुक्रम ।

यजुर्वेद (Yajurveda)

यजुर्वेद में अनुष्ठानों तथा कर्मकाण्डों में प्रयुक्त होने वाले श्लोकों तथा मन्त्रों का संग्रह है । इसका गायन करने वाले पुरोहित अध्वर्यु कहलाते थे । यजुर्वेद गद्य तथा पद्य दोनों में रचित है ।

इसके दो पाठान्तर हैं — (1). कृष्ण यजुर्वेद (2). शुक्ल यजुर्वेद ; शुक्ल यजुर्वेद को ‘ वाजसनेमी संहिता ‘ भी कहा जाता है । कृष्ण यजुर्वेद ‘ गद्य ‘ तथा शुक्ल यजुर्वेद ‘ पद्य ‘ में रचित पाठान्तर हैं ।

कृष्ण यजुर्वेद में तैत्तिरीय , मैत्रायणी तथा काठक पाठान्तर हैं , जबकि शुक्ल यजुर्वेद वाजसनेय पाठान्तर में सुरक्षित है । यजुर्वेद में कृषि तथा सिंचाई की प्रविधियों की चर्चा है । चावल का ‘ व्रीही ‘ के रूप में उल्लेख मिलता है । यजुर्वेद में राजसूय , वाजपेय तथा अश्वमेघ यज्ञ की चर्चा है । रत्निनों में ( वैदिक अधिकारियों ) की चर्चा भी यजुर्वेद में हुई है । यजुर्वेद में 40 मण्डल तथा 2000 ऋचाएँ ( मन्त्र ) हैं ।

सामवेद (Samveda)

सामवेद के अधिकांश श्लोक तथा मन्त्र ऋग्वेद से लिए गए हैं । इस वेद से सम्बन्धित श्लोक तथा मन्त्रों का गायन करने वाले पुरोहित उद्गातृ कहलाते थे । सामवेद का सम्बन्ध संगीत से है तथा इसमें संगीत के विविध पक्षों का उल्लेख हुआ है । इसमें कुल 1549 श्लोक हैं , जिनमें से 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं । सामवेद में मन्त्रों की संख्या 1810 है । इसकी तीन शाखाएँ हैं — कौथुम , जैमिनीय एवं राणायनीय

अथर्ववेद (Atharvaveda)

अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी । अथर्ववेद की दो शाखाएँ हैं – शौनक एवं पिप्लाद । अथर्ववेद के अधिकांश मन्त्रों का सम्बन्ध तन्त्र – मन्त्र या जादू – टोनों से है । रोग निवारण की औषधियों की चर्चा भी इसमें मिलती है । अथर्ववेद के मन्त्रों को भारतीय विज्ञान का आधार भी माना जाता है । अथर्ववेद में सभा तथा समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है । सर्वोच्च शासक को अथर्ववेद में एकराट् कहा गया है । ‘ सम्राट ‘ शब्द का भी उल्लेख मिलता है । सूर्य का वर्णन एक ब्राह्मण विद्यार्थी के रूप में अथर्ववेद में हुआ है ।

वेदांग (Vedang)

वेदांगों की संख्या 6 बताई जाती है । ये हैं – शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , छन्द और ज्योतिष । शिक्षा की सबसे प्रामाणिक रचना प्रातिशाख्य सूत्र है । इसमें शुद्ध उच्चारण की पद्धति बताई गई है । कल्प यज्ञों के सम्पादन से जुड़े नियमों की जानकारी देते हैं । श्रौत सूत्र तथा गृह्य सूत्र कल्प की रचनाएँ हैं । व्याकरण की सबसे पहली तथा व्यापक रचना पाणिनी की अष्टाध्यायी है । निरुक्त विषय पर यास्क तथा छन्द पर पिंगल ने मानक रचनाएँ कीं । ज्योतिष में खगोल विज्ञान के अध्ययन का विवरण मिलता है । ज्योतिष का पहला ग्रन्थ , आचार्य लागद्य मुनि द्वारा रचित वेदांग ज्योतिष है । वेदांग ज्योतिष को ‘ वेद की आँख ‘ भी कहा गया है ।

ब्राह्मण ग्रन्थ (Brahmin Book)

की रचना की गई । यह गद्य में है । वेदों की आध्यात्मिक व्याख्या के लिए ब्राह्मण ग्रन्थों ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में 8 मण्डल हैं । प्रत्येक मण्डल में 6 पाठ हैं । इसे ‘ पंचिका ‘ भी कहा जाता है । ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ की रचना ‘महिदास ऐतरेय’ ने की थी । कौशीतकी ब्राह्मण में 30 अध्याय हैं । इसे संख्यायन ब्राह्मण भी कहा जाता है । पंचविश ब्राह्मण में 25 मण्डल हैं । इसे ताण्ड्य ब्राह्मण भी कहा जाता है ।

आरण्यक (Aranyaka)

ऋषियों द्वारा जंगलों में रचित ग्रन्थों को आरण्यक कहा गया है । आरण्यक सभी आरण्यक ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थों से जुड़े हैं । प्रमुख ग्रन्थ हैं — ऐतरेय , शंखायन , वृहदारण्यक , छान्दोग्य , जैमिनी ।

उपनिषद् (Upanishads)

वेदों की दार्शनिक व्याख्या के लिए उपनिषदों की रचना की गई । उपनिषदों की संख्या 108 बताई जाती है । ‘ उपनिषद् ‘ का शाब्दिक अर्थ एकान्त में प्राप्त ज्ञान है । उपनिषदों में आत्मा , जीव , जगत , ब्रह्म जैसे गूढ़ दार्शनिक मतों को समझाने का प्रयास किया गया है । उपनिषदों को वेदान्त भी कहा जाता है । ये वैदिक साहित्य ( श्रुति साहित्य ) की अन्तिम रचनाएँ हैं , जिस कारण इन्हें वेदान्त कहा जाता है । वृहदारण्यक , छान्दोग्य , कठ , मण्डूक इत्यादि प्रसिद्ध उपनिषद् हैं । भारत का सूत्र वाक्य सत्यमेव जयते मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है । यम तथा नचिकेता के बीच प्रसिद्ध संवाद की कथा कठोपनिषद् में वर्णित है । श्वेतकेतु एवं उसके पिता का संवाद छान्दोग्योपनिषद् में वर्णित है ।

(2). स्मृति साहित्य (memory literature)

स्मृति साहित्य के अन्तर्गत स्मृति , पुराण तथा धर्मशास्त्र आते हैं । मनु स्मृति सबसे प्राचीन स्मृति ग्रन्थ है । इसकी रचना दूसरी शताब्दी ई. पू. में शुंगकाल में हुई थी । पुराणों की संख्या 18 है । इनमें मत्स्य , वायु , वामन , मार्कण्डेय , विष्णु इत्यादि प्रमुख हैं । पुराण वस्तुतः ऐतिहासिक प्रवृत्तियों को सामने लाता है । पुराणों के संकलन का श्रेय महर्षि लोमहर्ष तथा उनके पुत्र उग्रश्रवा को दिया जाता है । सबसे प्राचीन पुराण मत्स्य पुराण है , जिसमें विष्णु के दस अवतारों की चर्चा मिलती है ।

रामायण तथा महाभारत धर्मशास्त्र की श्रेणी में आते हैं । रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी । यह संस्कृत भाषा में है । रामायण 7 काण्डों में विभक्त है । इसे चतुर्विंशति सहस्त्री संहिता भी कहा जाता है । महाभारत की रचना वेदव्यास ने की थी । इसमें कौरव तथा पाण्डवों के बीच युद्ध का वर्णन है । महाभारत 18 पर्वों में विभक्त है । इसे ‘ जयसंहिता ‘ या ‘ शतसाहस्त्र संहिता ‘ भी कहा जाता है । श्रीमद्भागवत गीता महाभारत के भीष्म पर्व का अंश है ।

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