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शिक्षा का महत्व (Shiksha ka mahatv)

शिक्षा का महत्त्व (Importance of education)

शिक्षा का महत्व शिक्षा के आधार पर ही बालक पर्यावरण से सामंजस्य स्थापित करने में सफल होता है अतः मानव जीवन में शिक्षा का विशेष महत्त्व है। “विद्याविहीन नरः पशुः समानः।” यानी कि, विद्या के अभाव में मनुष्य पशु समान है। जब बालक का जन्म होता है, तो शिक्षा का भी जन्म उसी समय से हो जाता है बालक जन्म के समय अपने वातावरण के बारे में, अच्छाइयों और बुराइयों के बारे में बिल्कुल भी अनभिज्ञ होता है। लेकिन अपनी आवश्यकता के अनुसार वह परिवार के सदस्यों को जानने लगता है तथा अपनी जरूरतों को पूरा करता है। इस प्रकार शिक्षा के माध्यम से बालक की आवश्यकताओं की पूर्ति बचपन से ही की जाती है।

समायोजन (Adjusting to education)

जब बालक बड़ा होकर वह अपने घर-परिवार से बहार निकलकर अपने आस-पड़ौस में आता है तो वहां रहने वाले छात्रों के साथ खेलता-कूदता है तथा उनके व्यवहार से कुछ-न-कुछ सीखता है। इसके बाद वह विद्यालय में आकर ज्ञान अर्जित करता है और समाज से अपना समायोजन कर लेता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि, शिक्षा व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्यु तक सहायता करती है।

मनीषीगण का शिक्षा पर प्रभाव (Influence of sages on education)

विश्व के मनीषी समय-समय पर शिक्षा पर प्रभाव डालते आये हैं। और हमारे शास्त्रों में लिखा है कि —

“किम् किम् न साधयति कल्पलतेव विद्या ।”
अर्थ “कल्पना के समान विद्या से क्या-क्या प्राप्त नहीं होता?”
यानी कि कल्प वृक्ष वह वृक्ष है जिससे कि व्यक्ति को सब कुछ प्राप्त हो जाता है। यानी कि विद्या से सब कुछ प्राप्त होता है।

स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानन्द ने अपने भाषण में लिखा था — “जो विचार जीवन-निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों, उन्हें ही शिक्षा की संज्ञा दी जा सकती है।”

अरस्तू (Aristotle)

अरस्तू (Aristotle) के अनुसार,– “शिक्षा मानव की वह शक्ति है, विशेषतः मानसिक शक्ति का विकास करती है जिससे कि वह परम सत्यं शिवं तथा सुन्दरम् का चिन्तन करने लायक बन सके।” इस प्रकार शिक्षा बालक के व्यक्तित्व के विकास में सहायत करती है।

एडीसन (Edison)

एडीसन ने लिखा है.— “संगमरमर के पत्थर के लिए जो महत्त्व मूर्तिकार का है, वही महत्त्व आत्मा के लिए शिक्षा का है।”

गाँधीजी ( Gandhi Ji)

गाँधीजी ने शिक्षा के महत्व को बतलाते हुए कहा— “शिक्षा से मेरा तात्पर्य- व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा का विकास है।” अतः शिक्षा व्यक्ति के शरीर, मन, आत्मा के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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